कर्म और भाग्य की लड़ाई|Karm aur bhagya ki ladai episode 5
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चितरंजन दास, रवि सर के बेटे को लेकर जा रहे थे। |
मोना मैम की तीखी वाडी
जहां शब्द मिलते हैं, वहां कहानियां सुनाई देती हैं।
कहते हैं, इंसान अपना भाग्य खुद लिखता है...
लेकिन क्या वाकई?
या फिर भाग्य ही इंसान की राहें तय करता है?
यह कहानी है चितरंजन दास की...एक ऐसा नौजवान, जिसने गरीबी से लड़ने का संकल्प लिया,अपनों के लिए सबकुछ छोड़ दिया...
लेकिन क्या वह अपने भाग्य को बदल पाया ? "यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन समाज की सच्चाइयों से प्रेरित।लेखक: केदार नाथ भारतीय
"कर्म और भाग्य की लड़ाई| चितरंजन दास की संघर्ष गाथा भाग - 5
पिछले भाग में, आपने देखा कि वर्षों से अधूरी प्रेम कहानी को पूरा करने में चितरंजन दास सफल हुए। रवि सर की शादी उनकी ही सेक्रेटरी मोना मैम से हुई, और इस सुखद मिलन का श्रेय भी कहीं न कहीं चितरंजन दास को ही जाता है। अब तक सब कुछ सुंदर और संतुलित ढंग से चल रहा है — एक नई शुरुआत, नए विश्वास के साथ।
अब आगे........
ऑपरेशन सिन्दूर और कराची बेकरी से हमे सीखने, की जरूरत है
सांसारिक भवसागर के असीमित एवं अकूत जल राशि में गोते लगाते हुए, वह समय रूपी पंछी अपने दोनों पंखों को फड़फड़ा फड़फड़ा कर, सारी सृष्टि को भिगोते हुए अपने गंतव्य पथ की ओर इत उत निहारते उड़ा जा रहा था,
इधर रवि सर की शादी के 3 वर्ष बाद, मोना मैम से एक बहुत ही खूबसूरत बच्चे का जन्म हुआ, जिसे पाकर रवि सर ईश्वर को धन्यवाद देते हुए फूले नहीं समाये थे । उस दिन भोर के पांच बजे से बजे से लेकर, सुबह के लगभग सात बजे तक खुब मांगलिक कार्यक्रम एवं सोहर गीत हुए थे । नर नारी ढोल और ताशे बजा बजा कर खुब नाचे गाए थे, वहीं पर अचानक ही पता नहीं कहां से एक गाड़ी भरकर किन्नरों की फौज़ आई थी, जिसे देखकर बच्चे, बूढ़े और नौजवान महिलाएं एवं अगल बगल की सारी नई नवेली दुल्हने, जो अर्ध चंद्रा कार घूंघट में या फिर पूर्ण घूंघट की ओट में हंस हंस कर दौड़ी दौड़ी चली आई थी, किन्नरे अपनी अपनी हथेलियों को पीट पीट कर खुब ठुमके लगाई थी । वहीं कुछ ही दूरी पर खड़े खडे चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार भी मुस्कुरा मुस्कुरा कर मन ही मन उत्सव रस का आनंद ले रहे थे, कि तभी रवि सर अचानक ही भीड़ को चीरते हुए चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार को अपनी बाहों में भरते हुए लगे नाचने गाने । ऐसी थिरकन ऐसी नाचें शायद ही किसी ने कभी देखा हो, चारों तरफ से लोग वाह वाह कर रहे थे, रवि सर को उस समय खुशियों का ठिकाना नहीं था, वे नाचे गाए जा रहे थे, भीड़ उन्हें देख देख कर खूब तालियां बजाएं रही थी ।
भला एक वृद्ध पिता को इससे बड़ी खुशियां और क्या हो सकती है जो अपनी उम्र के जर्जर ढलान सीढ़ी के नीचे उतरते हुए उन्हें जो एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी, क्या वह ईश्वर का दिया हुआ एक वरदान नहीं कहा जा सकता ।
उनके दरवाजे पर आज असहाय गरीब महिलाएं, पीड़ित और भिक्षुक सभी पधारे हुए थे ।
नाउन धोबिन पनिहारिन और वृद्ध काय विधवाएं भी वहां पहले से ही पहुंची हुई थी, सब के सब आज बहुत ही खुश थे, सभी के हाथों में कुछ न कुछ खुशियों के भंडार थे जो कि चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार के हाथों से उन्हें मिले थे । सभी उन्हें और उनके पुत्र रत्न को शुभकामनाओं सहित लंबी उम्र होने का आशीर्वाद दे रहे थे ।
रवि सर इतने प्रसन्न थे, इतने आह्लादित थे कि पूछो ही मत, ऐसे खुशियों के दिन तो, जीवन में कभी-कभार ही आते हैं । शुभता के इस पावन बेला में, वे किसको क्या क्या दे दे, रवि सर, स्वयं में यह निर्णय नहीं ले पा रहे थे । किंतु चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार,जो उनके प्राणों से भी ज्यादा प्यारे थे, ऐसे शुभ वैभव का सारा श्रेय किसी और को न देकर, किसी चिर परिचित को भी न देकर, रवि सर, सीधे चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार को दिए थे ।
वे चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार के अहसानों को भली भांति जानते थे, वे जानते थे कि यदि यह लड़का मेरे साथ ना रहा होता, तो शायद ही मेरे जीवन में इस प्रकार से, हंसती खेलती और खिलखिलाती हुई, सावन भादो जैसी अठखेलियां देखने को नहीं मिलती, और न ही मुझे वह प्यारी सी खूबसूरत पत्नी मोना मिल पाती, और जब मोना हमें न मिल पाती तो क्या यह मेरा पुत्र रत्न लल्ला मुझे कभी मिल पाता, शायद कभी नहीं, कदापि नहीं, असंभव । रवि सर खुशी खुशी जो श्रेय चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार को दे चुके थे, उससे वे पूरी तरह से संतुष्ट थे ।
रवि सर की आत्मा पूर्ण न्यायिक और आत्मविश्वासी थी । वे जो कुछ भी निर्णय लेते थे बहुत ही सोच समझ कर लेते थे ।
खुशी खुशी रवि सर जी ने अपने बेटे का नाम भी बंश कुमार रखा था, और वही चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार ने भी, अपनी तरफ से उस नन्हे मुन्ने शिशु का नाम कान्हा रखा था । किंतु बाद में सभी उस मनमोहक बच्चे को लल्ला लल्ला कहकर बुलाने लगे थे ।
लल्ला जब पांच वर्ष के हुए थे, तब उन्हें मदर टेरेसा कॉन्वेंट स्कूल में राजवंश कुमार के नाम से एडमिशन कराया गया था । उधर इमारत के तीसरी मंजिल के चौथे कमरे को, चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार ने सुबह के 7:00 बजे से लेकर 8:00 बजे तक, एक पारिवारिक संसद बैठने का कक्ष घोषित कर दिया था । वैसे भी वह कमरा पूरी तरह से वातानुकूलित था । चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार इस सदन के मूल नायक थे, उनके अलावा परिवार के मेन मुखिया रवि सर जी, मोना और लल्ला थे जो कि अभी लल्ला अपनी उम्र से बहुत छोटे थे ।
पारिवारिक संसद में सिर्फ वही बातें होगी रहेगी,जो मूल रूप से मानव कर्तव्य के अधीन होकर, कर्मठता के दर्पण में भविष्य के पन्नों पर, एक विकसित भारत, आत्मनिर्भरता के अंतर्गत स्वरोजगार योजनाओं का शोध करके, उसे आकार प्रकार देते हुए मानव जीवन को रोजगार प्रदान कर, उन्हें लाभान्वित करना । साथ ही साथ संसद का मुख्य उद्देश्य एवं कर्तव्य, आपस में सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय को चरितार्थ कर, मन मस्तिष्क को पूरी तरह से व्यायाम करना ।
अब चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार जी अपने मन, वचन और कर्म से, बिल्कुल भी गरीब नहीं रहे । अब तो उनका सारा हाव भाव, चाल चलन, करोड़पतियों जैसे हो गया था । चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार ने देखते ही देखते, रवि कुमार कारपेंटर उद्योग के अतिरिक्त, रवि कुमार गैरेज, रवि कुमार गारमेंट्स शॉप, एवं रवि कुमार किराना स्टोर तक खुलवा दिए, इन सारी दुकानों में वर्करों के रूप में, पंजाब नेपाल और केरला के लोग थे, वह सारे वर्करों को पहले से ही वेतनमान करके लाया था,
वैसे भी वे सारे वर्कर, बड़े ही ईमानदार और आपस में कर्तव्य निष्ठ थे ।
वास्तव में चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार की सारी सोचें इतनी प्रबल थी, इतनी खूबसूरत और इतनी आकर्षण से भरी हुई थी कि वे जो कुछ भी सोचते,जो कुछ भी कहते और जो कुछ भी करते, सब के सब मील की पत्थर हो जाते,उनके संरक्षण में सजी हुई सारी दुकानें, उनके सारे कारोबार, अपनी पूर्ण जवानी में चंचलता से लय बद्ध होकर गतिमान रहते । अभी ठीक से दो महीने भी नहीं हुए थे कि उसने राज्य सरकार से लोन लेकर सेफ्टी टैंक की पांच नई वाहने खरीद कर नगर पालिका को कंस्ट्रक्शन पे दे दिया था ।
आज रविवार था, सुबह के 7:00 बजने को आए थे, इमारत के तीसरे मंजिल के चौथे कमरे को, जिसे वे पहले से ही सदन कक्ष घोषित कर चुके थे,आज उसी कक्ष में प्रथम संसद दिवस के रूप मैं बैठक थी ।
मोना मैम, चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार से पता नहीं क्यों,अभी कुछ महीनों पहले से ही नाराज चल रही थी, उनका मन आज संसद कक्ष में बिल्कुल भी नहीं आने का था किंतु रवि सर के बहुत ही जद्दोजहद करने के बाद वे बड़ी मुश्किल से मानी थी
वे लल्ला को अपनी गोद में लेकर रवि सर के साथ, संसद कक्ष में आकर बड़े ही अनमने भाव में सोफे पर जाकर बैठी थी, बीच में सजा हुआ एक बड़ा ही खूबसूरत टेबल था, जिसके ऊपर एक रजिस्टर और एक पेन भी रखा गया था ।
मोना मैम का चेहरा उद्विग्न भाव में मुरझाया सा झुका हुआ था किंतु रवि सर और लल्ला का चेहरा, सुरम्य आभा में लिपटा हुआ सूर्य प्रकीर्णन के रंग में रंगा, टेबल के उस पार बैठे हुए चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार को अपलक निहारे जा रहे थे, कि तभी चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार से रवि सर ने मुस्कुराते हुए पूछा,
विजय बेटे, क्या तुम थकते नहीं हो दिन रात काम में व्यस्त रहते हो, तुमने हमारे कारोबार को भी इतना विस्तृत कर दिया है कि मुझे यह सब देखकर बड़ा ही आश्चर्य होता है ।
सर, जब आपसे हमारी पहली मुलाकात हुई थी तब आपने ही मुझसे कहा था कि हम अपने सारे कार्य को एक उत्सव समझते हैं । वास्तव में सर जब कर ही एक उत्सव बन जाए तब हृदय भी उत्साहित होकर उसे अल्प समय में पूरा करके प्रफुल्लित हो जाता है, तब ना शारीरिक थकान महसूस होती है और न हीं किसी प्रकार की आत्मग्लानि । लक्ष्य एकदम करीब दिखाई पड़ता है ।
सर, आपके यही शब्द हमारे जीवन के लिए संजीवनी सुधा बन गए ।
बेटे, इसीलिए तो हम तुम्हारे ऊपर गर्व करते हैं, तुम हमारे जीवन के लिए, और हमारे सारे कारोबार के लिए एक अभीष्ट सूत्रधार हो और एक सर्वश्रेष्ठ नायक भी, हम तुम्हारी कितनी भी प्रशंसा करें वह सब बहुत ही कम है । रवि सर ने अपने हृदय का उदगार व्यक्त करते हुए चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार को,अपने आंतरिक केंद्र बिंदु से बार-बार सराहना करते हुए आभार व्यक्त किए ।
सर, आप जैसे श्रीराम भइया को पाकर,मोना जैसी सीता भाभी को पाकर, हमारी सारी जिंदगी सफल हो गई, अब हमें किसी भी प्रकार की चिंता नहीं रहती । आप दोनों ही मेरे लिए परम पूज्य हो, सर हमें आपसे जुड़े होने के कारण, हमारी सारी की सारी जिंदगी स्वर्ग जैसी हो गई । अतः सर, हम आपकी बहु आयामी कार्य कुशलता की नींव को, सच्चे हृदय से प्रणाम करते हैं । कहते हुए चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार अपने दोनों हाथ जोड़ लिए थे । रवि सर मंत्र मुग्ध सी अवस्था में भावुक होते चले गए, रवि सर दो शब्द और बोले थे ।
बेटे विजय, तुमने हमारे सारे कारोबार को अपने हाथों में लेकर जिस ढंग से संचालित कर रहे हो, वह अपने आप में अद्वितीय है किंतु, क्या इतना ढ़ेर सारा पैसा कमाना जरूरी है ।
सर, बहुत जरूरी है, पैसा कभी भी कम नहीं कमाना चाहिए, पैसा आज के सामाजिक परिवेश में बहुत बड़ी प्रतिष्ठा है, पैसा मां और आप है, पैसा स्वयं में एक जिंदगी है । सर, पैसा आप चाहे जितना कमा लें, वह कम इसलिए है कि आपके पैसे में गरीबों का भी हिस्सा होता है मजलूम अपंग विकलांग और मूकबधिर,ये सब आपके कृपा पात्र है इनकी सहायता करना आपका परम धर्म है परम कर्तव्य है, साथ ही साथ गरीब घर की मासूम बहनों की शिक्षा दीक्षा और उनके शादी विवाह का खर्च, ये सब आप जैसे धनिकों के ऊपर ही निर्भर है, अतः सर कमाई किसी की भी ज्यादा नहीं होती, बस कमाई का उपयोग यदि अच्छे ढंग से किया जाए तो हमारा तो हमारा है हमारे साथ हमारा समाज भी पूर्ण तृप्ति पाएगा।
एक बात और सर, जो लोग पैसा कम कमाते हैं दरअसल वे ही पापी होते हैं, क्योंकि जहां पैसा कम कमाया जाता है वहीं पर अत्यधिक कलह और पीड़ा होती है, गरीबी चुपके चुपके जाकर उनके घर के केंद्र बिंदु में अपना पैठ जमा लेती है, इसलिए सर पैसा सबको कमाना चाहिए ।
किंतु तभी मोना मैम ने अपने सोफे से उठते हुए बोली ।
देखिए, अभी-अभी मेरे सर में दर्द होने लगा है मैं अपने कमरे मे जा रही हूं ।
रवि सर ने मोना से विनती करते हुए बोले ।
अभी अभी तो आप कुछ समय तक बिल्कुल ठीक थी किंतु अचानक आपके सर में दर्द, प्लीज रुक जाओ, बस 8:00 बजने वाले हैं क्योंकि यह सदन आज प्रथम दिवस का साक्षी है इसे पूरा सुनकर ही जाएं,
मोना मैम को ऐसे लगा जैसे कि मैं झूठ बोल रही है, रवि सर मेरे सर दर्द को मेरा एक बहाना मान रहे हैं फिर भी वह बोली ।
ठीक है यदि आप कहते हैं तो मैं रुक जाती हूं । मोना मैम सोफे पर पुनः बैठती हुई बोली । की तभी बड़ी देरी से चुप बैठे लल्ला ने अपनी तोतली भाषा में कुछ कहते हुए उठने लगे तो मम्मी मोना ने दुलार जताते हुएं बड़े प्यार से पूछा ।
क्या बात है बेटा, ऐसे उठ क्यों रहे हो,
मम्मी मम्मी मुझे तो आपसे कुछ भी नहीं कहना है, मुझे तो सिर्फ पापा से और अंकल से कहना है ।
क्या बात है कान्हा, मेरे लल्ला । चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार ने बड़े अनुराग भरे लहजे में लल्ला से पूछा ।
अंकल अंकल, मुझे सू सू लगी है मुझे सु सु कराओ न ।
चलो मैं चलती हूं, धीरे-धीरे तुम बड़े शैतान होते जा रहे हो । मोना मम्मी ने कहा की तभी रवि सर ने मुस्कुराते हुए बोले ।
चलो बेटे, हम तुम्हें सु सु कराते हैं ।
ओह नो पापा, मैं आपके साथ भी नहीं चल सकता ।
क्यों, रवि सर ने कहा ।
क्योंकि, अब हम बड़े हो गए हैं आप दोनों से ही मुझे सू सू करने में शर्म लगती है, इसलिए जब आप दोनों मम्मी पापा, मेरे साथ रहते हो न, तब मेरी सु सु नहीं उतरती ।
लल्ला की तोतली भरी बातें सुनकर मोना मैम शर्माती और मुस्कुराती हुई अपने दोनों हथेलियों से अपने चेहरे को ऐसे ढक लिया जैसे की उन्हें कोई देख न लें । चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार ने मुस्कुराते हुए लल्ला को अपनी गोदों में उठाते हुए बाथरूम की ओर लेकर चल पड़े, कुछ दूर जाने के बाद लल्ला ने चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार के कानों में फुसफुसा कर कहा ।
अंकल अंकल अब मुझे यही पर उतार दीजिए, मुझे सु सु थोड़ी ही लगी है, मैं तो आपसे कुछ पूछना चाहता हूं, आप बताइए कि क्या आप बाहरी हैं, क्या आप हमारे घर के नहीं है, क्या आप हमारे घर में डकैती करने के लिए आए हैं । एक दिन आप हमारी सारी संपत्ति को अपने नाम करा लेंगे, हम नहीं ऐसा मम्मी कहती हैं क्या यह सच है कि आप डाकू हैं ।
चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार के ऊपर जैसे चाकी सी गिर गई हो, जैसे कि किसी बहेलिए के बाण ने उनके मासूम हृदय को छलनी कर दिया हो, जैसे की उन्हें आधे आकाश से नीचे जमीन पर गिरा दिया हो, उनके मुंह से बोल तक नहीं फूट रहे थे, उनकी दोनों आंखें अचानक लाल सी हो गई, और फिर देखते ही देखते जल से भर गई कि तभी लल्ला ने उनसे पुनः पूछा,
अंकल अंकल, ऐसे आप खामोश से क्यों हो गए, क्या आप सचमुच में डाकू हैं ।
आपको कैसे लगता है बेटा मेरे कान्हा,
चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार ने बड़ी मुश्किल से अपने आंसुओं को पीते हुए पूछा ।
अंकल अंकल मुझे तो लगता है की आप कोई भगवान है, आप डकैत तो हो हीं नहीं सकते, लेकिन मेरी मम्मी बेवकूफ है जो आपके विषय में ऐसा बोलती है, लल्ला ने कहा ।
नहीं बेटे, मम्मी के विषय में ऐसा नहीं बोलते, आपके घर में आपके लिए ही नहीं, हमारे लिए भी आपकी मम्मी और आपके पापा, भगवान के समान पूज्यनीय हैं, इनका सम्मान करना, भगवान के सम्मान जैसे होता है ।
नहीं नहीं अंकल आप झूठ बोल रहे हैं, मेरे पापा भगवान जैसे हैं और मम्मी भगवान हो ही नहीं सकती, वह तो, वह तो शैतान जैसी है, वह कभी-कभी मेरे अच्छे पापा को भी भला बुरा कहने लगती है, लेकिन अंकल, मम्मी पहले ऐसे नहीं थी वह धीरे-धीरे ऐसे कैसे हो गई, पता नहीं ऐसे क्यों हो गई, यही बात मेरी समझ में नहीं आतीं अंकल ।
कोई बात नहीं बेटा, मम्मी धीरे-धीरे फिर वैसे हो जाएगी जैसे पहले थी । चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार ने लल्ला को समझाते हुए कहा । अच्छा बेटे, सू सू करना है आपको, अगर करना हो तो सू सू कर लीजिए नहीं तो मम्मी पापा के पास चलते हैं, वे सब हमारा और आपका इंतजार करते होंगे ।
ओके अंकल, आप ठीक कहते है, वैसे तो हमने सु सु का बहाना किया था, यदि ऐसा ना करता तो निश्चित था कि मम्मी आपके साथ हमें यहां न आने देती, क्योंकि मम्मी आपके ऊपर अब उतना भरोसा नहीं करती, इसलिए अंकल अब आप अपनी बड़ी वाली उंगली हमें पकड़ा कर,पैदल ही लेकर चलिए ।
ठीक है बेटा, पकड़ो मेरी उंगली और चलो । चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार लल्ला को अपनी उंगली बड़े प्यार से पकड़ाते हुए संसद कक्ष की ओर धीरे धीरे चलने लगे ।
उधर रवि सर जी, मोना मैम से अनुरागासक्त वाणी में, सुधारस घोलते हुए बोले जा रहे थे ।
मेरी मोना, मेरी चंचल चिड़िया, तुम पहले से अब कैसे चिड़चिड़ी होती जा रही हो, बात-बात में रिसिया जाती हो, बात-बात में झुंझला जाती है, आखिर क्या बात है, कहीं इसका कारण वह हमारा विजय बेटा तो नहीं ।
रवि सर मोना मैम के उलझे हुए केशो को, अपनी उंगलियों से सुलझाते हुए बोले थे कि तभी मोना मैम उनके हाथों को झटकते हुए बोली ।
चले जाइए आप यहां से, हमें आपसे कोई बात नहीं करनी, मैं आपकी कुछ भी नहीं लगती, जो कुछ है आपके लिए, वही विजय है विजय, बाकी सब के सब टाइम पास है ।
ये.. ये.. तुम क्या कहे जा रही हो, तुम तो मेरे प्राणों से भी कहीं ज्यादा प्यारी हो, मेरे हृदय की आभा हो तुम । जानती हो, यदि तुम्हारे बाद कोई मुझे प्यारा है तो वह है मेरा पुत्र मेरा नवरत्न लल्ला, मेरी जान, मेरे नैनों का तारा,चांद सितारा । रवि सर ने भावुकता के बहाव में बहते हुए बोले थे ।
तो ये विजय सर कौन है, जिन्हें आप बेटा बेटा कहते हुए थकते नहीं, लगता है आपसे इनका रिश्ता खून का है ।
मोना ने रवि सर को अपनी पैनी दृष्टि से घूरते हुए बोली ।
विजय से मेरा एक मानवीय रिश्ता है, संयोग और एक सौभाग्य का रिश्ता है
जिसे हम आजीवन, एवं आखिरी सांस तक उनके साथ निभाते रहेंगे ।
रवि सर के लहजे में सख्त चट्टान जैसी कठोरता थी ।
तो अपना लल्ला ।
इतना कहते ही मोना मैम चुप सी हो गई, तब रवि सर ने मोना के अधूरे शब्दों को पूरा करते हुए बोले ।
लल्ला तो अपना खून है अपना रक्त है लल्ला । लल्ला हमारा और आपका एक मिश्रित स्वरूप है, वही तो अपनी पहचान है इस विशाल संसार में, हर एक की तुलना में अपना लल्ला सबसे सर्वश्रेष्ठ है ।
जब ऐसी बात है तो आप विजय सर को उनके घर क्यों नहीं भेज देते, आखिर उनका भी तो एक परिवार है एक संसार है, बूढ़े मां-बाप हैं धर्मपत्नी है उनके खुद के दो बच्चे भी हैं, इतना बड़ा पाप आप अपने सर पर क्यों बोझ बनाए हुए हैं, क्या इससे यह स्पष्ट नहीं होता की आप कितने स्वार्थी हैं, कितने खुदगर्ज और मतलब परस्त है, कि उन्हें रोक कर आप अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं, ऐसे कब तक चलता रहेगा ।
नहीं नहीं, वह मेरे लल्ला जैसा है, वह राम है तो मेरा लल्ला लक्ष्मण है, मैं अपने जीते जी लक्ष्मण से अपने राम को अलग नहीं कर सकता । पगली तुझे पता नहीं होगा, हमने अपने विजय बेटे के लिए क्या-क्या सोच रखा है । अगले वर्ष हम दोनों अपने गांव चलकर, वहां की पुश्तैनी जमीन में, एक बड़ा बहुत बड़ा,आलीशान मकान बनवाएंगे जिसमें हम और तुम और अपना प्यारा लल्ला रहेगा ।
फिर यहां कौन रहेगा ।
मोना ने प्रश्न किया । तब रवि सर जी, खुशियां जताते हुए मुस्कुरा कर बोले ।
यहां पर अपना विजय रहेगा, वह भी अपने बूढ़े मां-बाप, और बीबी बच्चों के साथ ।
नहीं नहीं, नहीं ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता,, कदापि नहीं हो सकता, असंभव असंभव असंभव, विजय यहां नहीं रहेंगे उन्हें कल ही उनको उनके गांव भेज दीजिए ।
वह चीखते चिल्लाते हुए बड़ी तेजी के साथ गुर्राई थी, रवि सर अवाक से हक्के बक्के होकर उसे विस्फारित नेत्रों से आश्चर्यजनक भाव में देखते रह गए, वे अति संवेदना के दलदल में धसते हुए बड़े ही विनम्रता से हिम्मत करते हुए बोले ।
तुम धीरे-धीरे इतना क्रूर कैसे हो गई, पहले तो तुम ऐसे नहीं थी, अब कैसे होती जा रही हो, अरे मैं अपने विजय से बहुत प्यार करता हूं, मेरी जान है वह,मैं उसके बगैर एक पल भी जीवित नहीं रह सकता, मोना जरा सोचो यदि वह न रहा होता, तो शायद तुम भी मेरे साथ न रही होती । वह हमारे तुम्हारे रिश्ते का जन्मदाता है, वह कोई विश्वात्मा के समान है उसके प्रति इतना बड़ा घातक अनादर भाव रखकर, जघन्य अपराध जैसा पाप कर्म मत करो । मोना, तुम ऐसे निर्दई कैकेई कैसे बन गई, तुम भली भांति जानती हो कि मैं विजय बेटे के बगैर नहीं रह सकता, नहीं तो मेरे प्राण पखेरू ही उड़ जाएंगे, मैं अपने विजय से अलग होकर एक पल भी नहीं जी सकता ।
जानने की आवश्यकता है,EPS 95 की सच्चाई....
की तभी चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार किसी हारे हुए जुआड़ी की तरह अपने लड़खड़ाते हुए कदमों से, लल्ला को अपनी उंगली पकड़ाए, सदन कक्ष में प्रवेश किया । वह वहां पहुंचते ही बड़े विनम्र भाव में रवि सर से बोला ।
सर, कल हम अपने गांव जा रहे हैं, वैसे भी हमारा और आपका कोई खूनी रिश्ता तो था नहीं, मात्र हम एक मानवता की डोर से बंधे हुए थे जिसे हम और आप एक दूसरे के पूरक होते हुए रेन दिवस बाखूबी अपना धर्म निभाते रहे, अब शायद हमारी और आपकी आवश्यकताए भी एक दूसरे के लिए पूरी हो चुकी है । अतः इसके मध्य कभी भी मुझसे कोई भूल चूक हुई हो तो उसे आप अपना अनुज या एक बेटा समझ कर क्षमा करिएगा । तभी वे मोना मैम की ओर देखते हुए बोले ।
भाभी मां, आपके प्रति भी यदि मुझसे कोई भूल चूक हुई हो, तो उसे क्षमा कर दीजिएगा । संसद के सारे समय समाप्त हो चुके है अतः अब हम चलते हैं ।
न नहीं विजय नहीं, तुम ऐसे मुझे अकेला छोड़कर नहीं जा सकते, मेरे भाई मेरे बेटे, मैं तुम्हारे बगैर एक पल भी जीवित नहीं रह सकता ।
कहते हुए रवि सर, विजय के गले से लगकर फूट-फूट कर रोने लगे, चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार भी उनसे लिपटकर किसी बच्चे की तरह लिपटकर रोने लगे थे । मोना मैम सोफे पर बैठी हुई खामोशी के साथ ऐसे दृश्य को देखकर किसी कॉमेडियन फिल्म को याद करने लगी थी, फिर देखते ही देखते, लल्ला को अपने साथ लिवाकर वहां वहां से जाने लगी ।
आने वाले समय में, पंचायत चुनाव का बड़ा ही टेंशन है, पर किसे ?
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शादी के बाद मोना मैम के बदले हुए व्यवहार ने सभी को चौंका दिया। क्या चितरंजन दास की वर्षों की मेहनत व्यर्थ चली जाएगी?
क्या वह सच में सब कुछ छोड़कर अपने गांव लौट जाने का फैसला कर चुका है?
जानने के लिए जुड़े रहिए...
अगला भाग एक नए मोड़ के साथ आपके सामने होगा एपिसोड 6 ।
‘कर्म और भाग्य की लड़ाई’ – हर शुक्रवार या शनिवार प्रस्तुत किया जाता है, आपके अपने मंच पर Author kedar ।
मत भूलिए — कुछ कहानियाँ अधूरी नहीं रहतीं, बस उन्हें पूरा करने वाला चाहिए होता है!
कर्म और भाग्य की लड़ाई | एपिसोड सीरीज़
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धन्यवाद.... जय हिंद...
एपिसोड 1:
एपिसोड 2:
एपिसोड 3:
एपीसोड 4:
पहले एपिसोड के लिए https://www.kedarkahani.in/2025/03/karm-aur-bhagya-ki-ladai.html
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तीसरे एपिसोड के लिए
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चौथा एपीसोड के लिए
https://www.kedarkahani.in/2025/05/karm-aur-bhagya-ki-ladai-episode-4.html
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