ऑपरेशन सिन्दूर और कराची बेकरी|Operation Sindoor | Karachi Bakery Controversy.|

ऑपरेशन सिन्दूर और कराची बेकरी

ऑपरेशन सिन्दूर और कराची बेकरी| देश की लहर या अशिष्णुता की लहर?
जब देश की सीमाओं पर जवान जवाब देते हैं, तब देश के भीतर जनता भावनाओं से भर जाती है। लेकिन जब वही भावनाएँ अंधभक्ति या असहिष्णुता में बदलने लगें, तो क्या हमें ठहरकर सोचने की ज़रूरत नहीं?
'ऑपरेशन सिंदूर' ने आतंकवादियों को उनके अंजाम तक पहुँचाया। लेकिन इस ऑपरेशन की छाया में एक घटना और घटी – हैदराबाद की कराची बेकरी पर हमला।
क्या यह केवल एक नाम पर गुस्सा था, या हमारी सामाजिक चेतना में कोई बड़ी दरार?
ऑपरेशन सिन्दूर|शौर्य का प्रतीक
7 मई, 2025 - वह दिन जब भारत ने दुनिया को फिर यह जता दिया कि हम अपने नागरिकों की हत्या को कभी नहीं भूलते।
22 अप्रैल को हुए एक आतंकवादी हमले में 26 निर्दोष भारतीयों की जान चली गई। इसके जवाब में भारत ने पाकिस्तान और पोलैंड में आतंकवादी ठिकानों पर कुल 24 मिसाइलें दागीं।
इस सर्जिकल स्ट्राइक में 70 आतंकी मारे गए, और भारतीय नौसेना की पनडुब्बियों ने दुश्मन के समुद्री अड्डों पर हमला करते हुए 600 से अधिक आतंकियों का सफाया किया।
भारतीय सेना की इस निर्णायक कार्रवाई ने देशवासियों के दिल में गर्व और एकता की भावना भर दी।
कार्यालयों में "जय हिंद" की गूंज थी, लोग देशभक्ति से ओतप्रोत दिखे, और सोशल मीडिया भारतमय हो गया।
लेकिन इस गर्व के बीच एक सवाल भी खड़ा हो गया...
1953 में हैदराबाद के रेजिडेंसी क्षेत्र में स्थापित कराची बेकरी अचानक एक विवाद का केंद्र बन गई। कुछ लोगों ने इसके नाम में "कराची" देखकर इसे पाकिस्तान से जोड़ दिया और इस पर हमला कर दिया।
लेकिन क्या यह सच में पाकिस्तान के समर्थन की प्रतीक है?
बिलकुल नहीं।
यह बेकरी एक सिंधी भारतीय परिवार द्वारा शुरू की गई थी, जो 1947 के भारत-पाक बंटवारे के दौरान कराची से विस्थापित होकर भारत आए थे। उन्होंने भारत को अपना नया वतन माना, यहीं बस गए और कराची बेकरी के नाम से अपनी यादों और विरासत को सहेजा।
यह नाम उनके अतीत की एक भावनात्मक स्मृति था — कोई राजनीतिक बयान नहीं।
तो क्या एक विस्थापित परिवार द्वारा अपने अतीत को याद करना राष्ट्रविरोध है?
या फिर, यह भी एक प्रकार की राष्ट्रभक्ति है — जहां अपनी ज़मीन खोकर भी उन्होंने भारत को अपनाया और यहां की मिट्टी में रच-बस गए।
देशभक्त या अंधभक्ति
ऑपरेशन सिन्दूर के बाद लोगों में गुस्सा होना स्वभाविक है। लेकिन अगर सत्ता की शक्ति छीन ली जाए, तो वह राष्ट्रभक्त नहीं रह जाता - वह केवल लोकतंत्र बन जाता है।
कराची बेकरी पर हमला करने से क्या ख़त्म होगा?
या फिर हम अपने ही देशवासियों को नया दर्जा दिला रहे हैं?
यह प्रश्न केवल एक दुकान तक सीमित नहीं है। यह हमारी सोच, हमारे गुण और सहनशीलता का भी परीक्षण है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
सरकार ने ‘ऑपरेशन सिन्दूर’ को एक बड़ी सफलता बताया।
सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने एक स्वर में सेना के निदेशक की नियुक्ति पर सहमति जताई।
लेकिन जब बात कराची बेकरी पर हुए हमले की आई तो, राजनीतिक मतभेद उभर आए।
आख़िर क्यों?
क्या आज हिंसा के खिलाफ नाम लेकर बोलना इतना कठिन हो गया है?
मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका
टीवी चैनलों ने 'ऑपरेशन सिन्दूर' को गौरव का प्रतीक बना दिया — और वह बनना भी चाहिए।
लेकिन जब कराची बेकरी पर हमला हुआ, तो वही मीडिया उसे 'एक छोटी खबर' बताकर आगे बढ़ गया।
क्या वाकई ये एक छोटी खबर थी?
या फिर हम अब भी सच का सामना करने से डरते हैं?
हम किससे लड़ रहे हैं ज़्यादा?
सरहद पार के दुश्मनों से,
या अपने ही देशवासियों की पहचान से?
हमारे युवा सरहद लांघकर जान की बाज़ी लगा रहे हैं,
और हम शहरों में, संस्थानों में — शक की तलवारें लहरा रहे हैं।
राष्ट्रभक्ति का अर्थ है – शत्रु को पहचानना,
ना कि अपने ही लोगों को शक की निगाह से देखना।
अगर ऑपरेशन सिन्दूर हमारी सुरक्षा का प्रतीक है,
तो कराची बेकरी विवाद हमारे समाज की चेतावनी है।
हमें सोचने की ज़रूरत है ,कहीं हम अपनी एकता खो तो नहीं रहे?
लेखक: नागेन्द्र भारतीय
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