विचित्र दुनिया ' उपन्यास' भाग 3|Vichitra duniya part 3|Author kedar
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"विचित्र दुनिया भाग 3, राघव फंसा गिद्धों के झुंड में" |
आप सुन रहे हैं — Author Kedar, जहाँ हर शब्द में बसी है ज़िंदगी की कहानी,
और हर आवाज़ ले चलती है आपको भावनाओं की गहराइयों तक।
कहानियों का यह जादुई सफर अभी शुरू हुआ है…
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राघव इससे पहले कि कुछ समझ पाता, वह गिद्घ के चंगुल मे फस गया, और गिद्ध उन्हे आकाश मंडल में हिलोरे मारते हुए ले उड़ा .... राघव, जय श्री राम,जय हनुमान का स्मरण कर उन्हे जोर जोर से पुकार रहा था, उनके चंगुलो से छूटने के लिए वह अपनी पूरी ताकत लगा दिया,किंतु वह असफल रहा ।
विचित्र दुनिया — एक ऐसी दास्तान, जो आपकी सोच से परे है।
यह कहानी एक आम इंसान की है... लेकिन एक ऐसी त्रासदी से गुज़रने की है, जिसे सुनकर आपकी रूह कांप उठेगी। यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है, लेकिन इसके हर शब्द में एक सच्चाई की झलक छुपी है।
आप जिस कहानी को पढ़ रहे हैं, उसके लेखक हैं — केदारनाथ भारतीय, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) से।
वेबसाइट: www.kedarkahani.in
सरल स्वभाव और समाज की गहराई से समझ रखने वाले केदारनाथ जी ने इस कहानी को उन सच्चाइयों से प्रेरित होकर लिखा है, जो हमें अक्सर नजर नहीं आतीं
"विचित्र दुनिया" सिर्फ एक कहानी नहीं है ! ये एक अनुभव है, जो आपको अंदर तक हिला कर रख देगा।
पिछले भाग में आपने देखा…
राघव उस अजीब सी जगह पर एक रहस्यमयी देवदूत से मिला — सफेद वस्त्रों में लिपटा हुआ, उसकी आँखों में कोई अलौकिक चेतावनी चमक रही थी। वह बार-बार राघव से कह रहा था,
“यह जगह तुम्हारे लिए नहीं है… अभी लौट जाओ…”
इसी बीच, अचानक हवा में कंपन हुआ। एक अदृश्य पथिक, जो दिखाई नहीं देता था, किंतु उसकी आवाज़ हवा में गूंज रही थी —
“मुझे जाने दो! मैं बिना मरे जीना चाहता हूं! मुझे इस चक्र से मुक्ति चाहिए!”
उसकी चीखें, समय और अंतराल को चीरती हुईं, राघव के हृदय तक पहुंचीं।
और तभी… एक नई दरार खुली उस ज़मीन पर, जैसे धरती खुद कोई रहस्य उजागर करना चाहती हो।
अब आगे क्या हुआ?
कौन था वो अदृश्य पथिक?
क्यों देवदूत राघव को लौटने की सलाह दे रहा था?
और क्या राघव वास्तव में जीवित था… या वह पहले ही एक और संसार की दहलीज पार कर चुका था?
आईए, जानते हैं "विचित्र दुनिया" के इस रहस्यमयी सफ़र का अगला अध्याय...
कालचक्र के चक्रव्यूह में फंसा राघव।
उस सफेद पोस पीतांबर जरित मानव के जाने के पश्चात, राघव वही शून्य की तरफ निहारते हुए कुछ समय तक खड़ा रहा और फिर पता नहीं क्या सोचकर अपनी दोनों हथेलियों से अपने सर को थाम कर बैठ गया । उस क़ाली कलूटी भयावह कालरात्रि मे राघव, गुमसुम सा बैठा हुआ सिसक रहा था। उसे कुछ भी समझ मे नही आ रहा था कि आखिर ओ क्या करे, वहा किससे अपने विचारों को साझा करे। किससे अपना दुखड़ा गाये, किससे अपने जीने मरने का एक एक पल , नरक त्रासदी का वर्णन सुनाए। आखिर उसके अलावा और वहाँ था ही कौन। वह बिचारा अनायास ही काल ग्रह से पीड़ित ,अपने दो विशाल नैनों में जलधारा लिए स्वयं को ही भूल बैठा धीरे-धीरे उसे स्मरण हो रहा कि हमारे दादा कैसे थे हमारे पापा कैसे थे हमारा वह छोटा सा बच्चा कैसा है जिसे हम अपने प्राणों से ज्यादा चाहते थे आज यहां कोई भी नहीं । है भगवान , तुम्हारी यह विचित्र सी दुनिया कैसी है , राघव यह सब सोच सोच कर पीड़ा ग्रस्त हो रहा था,वह एक पत्थर पर बैठा हुआ अपने खास कर रिश्ते नातेदारों भाई बंधु और माता-पिता तथा पुत्र के विषय में अच्छे बुरे कल्पनाओं के सागर में गोते लगा रहा है की तभी अचानक उसे आंधी तूफान के भयानक संवेग की आहटें. सुनाई देने लगी , देखते ही देखते वहा ओलावृष्ट मिश्रित विकराल तूफानों का प्रलय कॉल सा मच गया ,। राघव घबराया, वह इधर उधर अपने बचाव के लिए सुरक्षित स्थान की, तलाश करने लगा किंतु यह क्या! मेघों का आपस में टकराना , एक विशाल विस्फोट का सुनाई देना, जैसे की सारा व्योम मंडल ही आज धरा पर गिरकर चकनाचूर हो जायेगा , सृष्टि का संपूर्ण कलेवर रसातल में डूब जाएगा । डर के मारे राघव का मेरुरज्जु एवंप मेरुदंड पिघलने लगा । वह स्वयं के प्राण रक्षा निमित्त इधर-उधर भागने सा लगा, उसके हिरदय की धड़कने, उसके बस में नही थी। रह रह कर उसके मन मे उन दोनों सफेद पोसो की चेतावनी भरी, मिश्रित हित विनय बाते याद आने लगी थी। पुत्र, जितना जल्दी हो सके तुम यहाँ से चले जाओ, यह स्थान तुम्हारे योग्य नही। आज उन्ही की ये मृदुल हित भरी बाते, राघव को चौका रही थी । ये कहो की आज उसके प्राणो पर सशंकित, जीवन मरण पर आघात पहुँचा रही थी, अतिशयोक्ति नहीं होगा। वह उथल पुथल था। उसका साहस टूट टूट कर तिनके तिनके बिखरने के कगार पर , हांफने सा लगा था,अचानक आसमान से एक महा भयानक विस्फोट हुआ। विजली सी कॉन्धी, बादलों की तीव्र गर्जनाएं भयानक झंझावात चक्रवर्ती तूफानें हाहाकार मचाती हुई अकूत जलवृष्टि की सैलाबे परोसने लगी। वह घबराया वह चिल्लाया वह बेहोश होते होते बचा। हे भगवाँन अब मैं यहाँ से कैसे बचूं। वह अपने ईस्ट श्री हनुमान जी का स्मरण करता है । वह भाग रहा है,वह अपने तीव्र गति से भाग रहा है अपने प्राणों की सुरक्षा हेतु वह पूरी ताकत से भाग रहा हैं । वह प्रयत्नशील, सर पर दोनों पाँव रखकर भाग रहा है। किंतु उससे भागा नही किया जा रहा, जैसे की वह एक स्थान पर जड़वत सा हो गया हो लेकिन वह प्रयासरत है वह हिम्मती है वह साहसी है। परंतु ये क्या ! पलक झपकते ही वहाँ अकूत जल राशि का तांडव, सारा का सारा आकोढा पुर जलमग्न हो जल प्लावित हो रहा है। बड़े बड़े वृक्ष, हाथी घोड़े, घर मकान व सुंदर सजीली इमारते, सब के सब बिना नियंत्रण के बह रहे हैं । बादलों की उदंड गर्जनाएं पसलियों के आर पार हो, मन मस्तिष्क को छलनी कर रही, वह बर्फीली हवाएं पत्थर का भी कलेजा चीरने को आतुर थी। राघव की नजरे फटी की फटी , चतुर्दिक दृष्टिगोचर हो रही थी । उसकी विपन्नताओं मे तरह तरह की विभिन्नताओं का समावेश था । वह रह रह कर सोचे जा रहा था कि कि मैं तो अपने गाव जा रहा था। जहां प्रकृति की वीभत्स विनाश लीला की त्रासदी मची हुई थी। मै यहाँ अंजान जगह कैसे पहुँच गया। हे ईश्वर मेरी रक्षा करें यह मेरा गांव नहीं है बल्कि कोई दूसरा गांव है ।मुझे यहां से निकाले हनुमानजी, हम यहां वीभत्स कालचक्र के चक्रव्यूह में फस चुके हैं। मेरी मदद करें, मेरी सहायता करें प्रभु, तभी उसके हृदय स्पंदन ने विनम्रता का स्वर उगला, अरे राघव यह तुम क्या कह रहे हो यही तो तुम्हारा गांव है यही तो तुम्हारी जन्मजात मातृभूमि है यही,अकोरा पुर गाँव है। यही एकोरा पुर गाँव। दूसरा नही समझे। राघव इससे पहले कि कुछ सोचता और,समझता, तत्पश्चात ही वहाँ एक भयानक आवाज के साथ महा जल प्रलय का स्वर भेदन होने लगा। राघव चिहुँका चोंका और फिर वही ,बड़ी तेजी के साथ एक ही दिशा की तरफ भागने की कोशिश करने लगा किन्तु यह क्या। उसके पैर लड़खड़ाए,भय मिश्रित साँसे उसकी कुछ पल के लिये मानो थम सी गई। वह चिल्लाने की कोशिश की , ननहीं नहीं, नही। ऐसा नहीं हो सकता , किंतु उसकी आवाज भय की स्थिति मे बाहर नही आ सकी। वह अपने स्पस्ट नजरो से अब भी वह दृष्य देखे जा रहा था। वह देख रहा था कि आकाश में अकूत जल बृष्टि के मध्य तमाम हाथी घोड़े खच्चर व कुत्ते हवाओ मे तैरते हुए उस विशाल जल प्रवाह में गिर गिर कर जल प्लावित हो रहे है । कुछ छोटे-छोटे मेंढक भी मनुष्य के आकार के होकर मेंढक बनते जा रहे है। कुछ कुछ तो रंग बिरंगी तितलियों की तरह आकाश में उड़ भी रहे हैं, शेर, शेर को ही खाने की कोशिश कर रहै है।
राघव किसी चलचित्र की भाँति, विचित्र विचित्र प्रकार की हैरतअंगेज दृष्यों को देखकर, भयभीत सा हो उठा । उसे काटो तो खून नही। उसके होंठ वन वृक्ष के सूखे हुए पत्तों की भाँति ठुंठ से हो गये, उसका सारा शरीर पीपल के पत्तों की तरह कांप कांप कर जीवन मरण की सूचनाओ को प्रेषित करने लगा, अब शायद वह जी नहीं पाएगा, वह निश्चित ही मर जाएगा। जैसे कि उसका सारा शरीर लकवा ग्रस्त हो गया। वह कुछ भी समझ नहीं पा रहा था । वह असमर्थ हो गया वह पंगु हो गया, अब वह लकवा ग्रस्त हो गया। जब जीवन आशा हीन, दिशा हीन, साहस हीन और उत्साह हीन हो जाय तो समझो कि जीवन मृत्यु के करीब है । ऐसी ही दशा अब वहां पर राघव की हो गई थी। उसकी धड़कने उसकी पसलियों पर जोर-जोर से बज रहे थे जिसे वह बिना ध्यान लगाए ही आसानी से सुन सकता था, कि तभी वह लड़खड़ाया, क्योंकि उसके ठीक सामने हरे नीले पीले रंगों की सैकड़ों बिच्छिया उसी की ओर अपने अपने डंकों को उठाये हुए चली आ रही है। देखते ही राघव उछल सा पड़ा..... हे भगवान! ये मै क्या देख रहा हु इतनी ढेर सारी बिच्छिया । इनसे बचने के लिए मैं कहां भागू। ये तो हमारी तरफ ही चली आ रही है । हे हनुमान जी इनसे हमारी रक्षा करें। वह प्रभु बालाजी का स्मरण करते हुए भागा । बड़ी तीव्र गति से भागा, किंतु ये क्या..... प्रकृति का पुनह एक महा भयानक तांडव । तड़तड़, तड़तड़ , गढ़गढ़, गढ़गढ़ की एक वीभत्स महाविनाशकारी गर्जना , ऐसे कि जैसे आसमान के संपूर्ण बादल एक दूसरे से टकरा टकरा कर संपूर्ण धरा पर महासागरन उडेलने पर उतावले हो गए हो । बस पलक झपकते ही वहा अतिवेग से समुद्र जैसा उफान हिलोरे मार मार कर पूरे विस्तार के साथ बहने लगी। राघव थर थर कांपते हुए स्वयं को काल के संमुख समर्पित कर दिया ।
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