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Karm aur bhagya ki ladai |
रवि सर और चितरंजन दास की वार्तालाप ।
नमस्कार और स्वागत है!
आप देख रहे हैं Author Kedar, जहाँ शब्दों से ज़िंदगी बदलती है और कहानियाँ दिल को छू जाती हैं।
आज हम लेकर आए हैं "कर्म और भाग्य की लड़ाई" की अगली कड़ी – एक ऐसी कहानी, जहाँ हर मोड़ पर सवाल उठता है ।
जहां शब्द मिलते हैं, वहां कहानियां सुनाई देती हैं।
कहते हैं, इंसान अपना भाग्य खुद लिखता है... लेकिन क्या वाकई?
या फिर भाग्य ही इंसान की राहें तय करता है?
यह कहानी है चितरंजन दास की...एक ऐसा नौजवान, जिसने गरीबी से लड़ने का संकल्प लिया।
अपनों के लिए सबकुछ छोड़ दिया...
लेकिन क्या वह अपने भाग्य को बदल पाया ?
यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन समाज की सच्चाइयों से प्रेरित।
आप जिस कहानी को पढ़ रहे हैं, उसके लेखक हैं — केदारनाथ भारतीय, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) से।
सरल मिजाज और गहरी सामाजिक समझ रखने वाले केदारनाथ जी ने इस कहानी को समाज, देश और दुनिया की सच्चाइयों को देखते हुए रचा है।
इस प्रेरक कथा का शीर्षक है — 'कर्म और भाग्य की लड़ाई: चितरंजन दास की संघर्ष गाथा'।
यह है भाग – 7।
हर मोड़ पर चितरंजन दास की ज़िंदगी एक नए सवाल से टकराती है,
और हर जवाब में छुपी है समाज के आईने की
सच्चाई।
पिछले भाग में ,
आपने देखा कि मोना मैम ने चितरंजन दास के साथ प्यार का दिखावा करते हुए एक गलत रिश्ता बनाने की कोशिश की। यह सब भावनाओं की बजाय किसी छुपे मकसद का हिस्सा लग रहा था।"
✨ चलिए, अब शुरू करते हैं आगे की कहानी...
पत्थर जैसा बनकर चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार वही जड़वत से खड़े हो गए । जैसे की उनके पैरों तले से अब जमीन ही न रही हो । क्योंकि चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार के ठीक सामने, रवि सर बड़े ही लाचारगी भाव मे खड़े थे । चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार जैसे ही रवि सर को अपने सामने परेशान हाल में देखे तो उनकी घिग्घी सी बंधती चली गई,और वे बड़ी मुश्किल से उनसे बोले थे ।
सर आप, इतनी रात गए अभी तक सोए नहीं, क्या बात है, मैं तो अभी अभी आपके इन सारे सुख वैभवों को छोड़कर, दो बजे से पहले ही यहां से जाने वाला था, किंतु विदा होने के पूर्व आपके और भाभी मां के श्री चरण कमलों को अपने आंतरिक मन से स्पर्श करके तब अपने गांव को प्रस्थान करता । यदि आपको मुझसे कोई जरूरी काम आ गए थे, तो आप मुझसे कह सकते थे या फिर फोन लगा कर बता सकते थे, या किसी से संदेशा भिजवा सकते थे, मैं नंगे पांव ही आपके पास दौड़ा दौड़ा चला आता ।
चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार, बड़े ही आत्मीयता के साथ भावुकता के बहाव में बहते हुए बोले थे । तब रवि सर ने, उन्हें अपने गले से लगाकर फफक पड़े थे ।
बेटे, मेरे बच्चे, मेरे प्राण । रवि सर का कंठ भर्रा सा उठा था, उनके मुंह से अपरिमेय शब्द फूट पड़े थे । वे बड़े ही विनीत भाव में अपने दोनों हाथों से, अश्रुपूरित नैनों को पोंछते हुए बोले थे,
तुम कहीं भी नहीं जाओगे, यूं ही मुझे अकेला छोड़कर तुम अकेले कहीं भी नहीं जाओगे । मैं तुमसे पहले भी कहा था और आज भी कह रहा हूं कि मैं तुम्हारे बगैर एक पल भी नहीं रह सकता । तुम जैसे इतने दिन यहां रुके, वैसे ही अब चार पांच वर्ष और रुक लो, क्योंकि जो सपने हमने अपने मन में संजोए हुए हैं, उनको पूरा होने से पहले ही यदि तुम अपने गांव, अपनी मातृभूमि को चले जाओगे तो मैं अपने आप को कभी भी क्षमा नहीं कर सकूंगा । बेटे हम चाहते हैं कि हम अपने जीवन के सारे कर्तव्यों का इति श्री करके, वह भी तुम्हारे सामने, उसके बाद हम चाहे जब अपने दोनों नैनों को चिर निद्रा में लीन करके सदा सदा के लिए सो जाएं मुझे कोई शोक नहीं होगा । और तब मेरी दिवंगत आत्मा भी परम लोक में पूर्ण शांति पाएगी ।
रवि सर, चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार के प्रति इतने भावुक हो उठे थे कि वे अपने निजी अनुराग सागर के अवरोही प्रेम में डूबकर, स्वयं को ही भुला बैठे थे । वे एक लंबी सांस लेते हुए पुनः बोले थे ।
बेटे, हम अपनी मोना वाइफ के लिए और उनकी सारी गुस्ताखियों के लिए, अपने दोनों हाथों को जोड़कर आपसे माफी मांगते हैं कि आप उन्हें क्षमा कर दीजिए, और अपने घर अभी मत जाइए ।
चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार, रवि सर की ऐसी दारुणता से भरी हुई,मार्मिक प्रसंगों को सुनकर, इतना आहत हो उठे थे कि आरोही और अवरोही प्रेम धाराओं में डुबकी लगाते हुए अचानक खुद को भुला बैठे, वे रवि सर के सीने से जा लिपटे और लगे फूट-फूट कर रोने । रोते बिलखते हुए वे दोनों राम भरत जैसे भाई, उस भव्य कमरे के अंदर दाखिल हुए । कमरे के अंदर पूरी तरह से स्वच्छता थी । दूधिया रंग के प्रकाश से सारा कमरा नहाया हुआ था । चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार,रवि सर को एक भगवान की तरह स्वागत करते हुए उन्हें इजी चेयर पर बैठाए थे और खुद ब खुद उनके सामने एक हल्की-फुल्की कुर्सी पर बैठ गए थे । अचानक रवि सर चौंकते हुए चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार से बोले ।
बेटे, तुम्हारे कमरे की उस दीवार घड़ी में क्या कोई मिस्टेक है जो उसकी पेंडुलम नहीं चल रही है, इसमें समय तीन बजे है जबकि हमारी अपनी इस घड़ी में बारह बजकर सताइस मिनट हो रहे हैं ।
नहीं सर घड़ी बिल्कुल सही है, धूल माटी की वजह से शायद पेंडुलम का चलना बंद हो गया है, हम इसे अभी साफ कर देंगे तो वह पुनः ठीक ढंग से चलने लगेगी ।
वैसे सर, आपकी नजरे बहुत तेज है ।
चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार ने उन्हें हंसाने का प्रयास करते हुए आगे बोले ।
सर , मोना भाभी मां के मन मस्तिष्क में ऐसी कौन सी बात समा गई है जो मुझ जैसे निष्कलंक के ऊपर किसी भी प्रकार का विश्वास नहीं करती । यह कैसी परीक्षा है सर, मैं अपने घर भी जाना चाह रहा हूं फिर भी अपने घर नहीं पहुंच पा रहा ।
रवि सर, चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार की बातें सुनकर, थोड़ा खुद में नर्वस होते हुए बोले ।
बेटे विजय, एक समय युग वैसा था जहां स्त्रियों की परीक्षाएं पुरुष समाज के लोग लेते थे,किंतु आज के समय में आज के परिवेश में स्त्रियां पुरुषों की परीक्षाएं लेती हैं, जो पुरुष स्त्रियों की परीक्षाओं में सफल होते हैं, उनका परिवार सुचारु रूप से चलता रहता है और जो इसमें विफल होते हैं, उनका परिवार नरक यात्राओं के दलदल में फंस कर जीने मरने लगता है । अतः आज के परिवेश में स्त्रियों से सामंजस्य बैठाकर और उन्हें उचित सम्मान देते हुए, अपने अपने घर ग्रृहथी को चलाना श्रेयस्कर है । वैसे बेटे, तुम मुझसे अक्सर कहा करते थे की, मनुष्य का दिमाग एक विचारों की फैक्टरी होती है, उसका मंथन जितना ही किया जाए, वह उतना ही सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है । आज मैं तुम्हारे उसी वैचारणिक फैक्ट्री के उत्पादन को देख कर खुश हूं कि आपके आने से हमारे घर मकान और भविष्य की नींव जो करोड़ों में मजबूत हुई है यह हमारा सौभाग्य है और तुम्हारा यहां से जाना मेरे लिए कितना बड़ा दुर्भाग्य बनेगा, यह मुझसे अधिक कोई नहीं जानेगा । इसीलिए हम आपसे यह बार-बार अनुरोध कर रहे हैं बेटा, कि तुम कुछ वर्ष और यहां रुक जाओ, जिससे हमें पूर्ण तृप्ति के साथ मेरे इस तुच्छ जीवन को आराम मिल सके ।
ठीक है सर, यदि आप कहते हैं तो मैं निश्चित ही रुक जाऊंगा किंतु भाभी मां को आप ।
ठीक है बेटा, आप उनकी चिंता मत कीजिए, मैं उन्हें समझा लूंगा । रवि सर ने कहा और देखते ही देखते वे भावुक होते चले गए । चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार, रवि सर के ऊपर ऐसा कौन सा प्रेम बाण चला दिए थे या फिर कोई कर्म बाण जो अदृश्य और अनंत है । विनिमय प्रेम की सुगंधें उस कमरे में ऐसे बिखर चली थी, जैसे कि सारा कमरा ही सम्मोहन के आकर्षण से खुशबूदार इत्रों जैसा महक उठा हो । वे दोनों फिर से एक दूसरे के प्रति इतने आकर्षित हो उठे थे कि वे अपने अवरोही प्रेम में डूबते उतिराते, आंखों में अनुराग का अश्रु जल लिए गले मिलते चले गए । कि तभी रवि सर के मोबाइल पर मोना मैम का फोन आता है और वे घबराते हुए, चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार से विदा होते हैं ।
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- इंतजार कीजिए जल्द होगा। अगला भाग एक नए मोड़ के साथ आपके सामने होगा एपिसोड 8 ।
- ‘कर्म और भाग्य की लड़ाई’ – हर शुक्रवार या शनिवार प्रस्तुत किया जाता है, आपके अपने मंच पर Author kedar ।
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- कर्म और भाग्य की लड़ाई | एपिसोड सीरीज़
- यह कहानी मेरे ब्लॉग पर पढ़े:
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धन्यवाद.... जय हिंद...
कहानियाँ जो दिल से निकलती हैं, उन्हें सुरक्षित रखना हमारी ज़िम्मेदारी है।
Stories that come from the heart, protecting them is our responsibility.
पांचवा एपिसोड के लिए
https://www.kedarkahani.in/2025/05/karm-aur-bhagya-ki-ladai-episode-5.html
6th एपिसोड के लिए
https://www.kedarkahani.in/2025/06/karm-aur-bhagya-ki-ladai-episode-6.html
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