कर्म और भाग्य की लड़ाई|Karm aur bhagya ki ladai episode 3

Karm aur bhagya ki ladai episode 3
चितरंजन दास की संघर्ष गाथा भाग - 3





चितरंजन दास की खुला भाग्य।

कहते हैं, इंसान अपना भाग्य खुद लिखता है... लेकिन क्या वाकई? 
या फिर भाग्य ही इंसान की राहें तय करता है? 
यह कहानी है चितरंजन दास की...
एक ऐसा नौजवान, जिसने गरीबी से लड़ने का संकल्प लिया,
अपनों के लिए सबकुछ छोड़ दिया...
लेकिन क्या वह अपने भाग्य को बदल पाया?"
"यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन समाज की सच्चाइयों से प्रेरित।
लेखक: केदार नाथ भारतीय"
कर्म और भाग्य की लड़ाई| चितरंजन दास की संघर्ष गाथा भाग - 3
पिछले भाग में चितरंजन दास और कारपेंटर उद्योग रवि कुमार से मुलाकात एक स्टेशन पर हुई।
अब आगे ....



जैसे ही रवि कुमार के साथ चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार, ट्रेन से नीचे उतरकर, संगमरमर के स्निग्ध फुटपाथ पर कदम रखे, वैसे ही वहां पहले से ही मौजूद  गोपीचंद्र  नाम का व्यक्ति जो रवि कुमार की विशेष क्वालिस गाड़ी का सर्वश्रेष्ठ ड्राइवर था वह खाकी वर्दी पहने हुए उन्हें  'जोरदार सैल्यूट मारा',सर, गुड  मॉर्निंग। 
मॉर्निंग, रवि कुमार ने औपचारिकताओ को पूर्ण करते हुए गोपीचंद्र  से  पूछा , क्या समाचार है गोपीचंद? आपको हमारा विशेष इंतजार तो नहीं करना पड़ा, क्या हम लेट हैं, । गोपीचंद्र  झेंपते हुए मुस्कुरा कर बोले ।
अरे सर नहीं, सब ठीक है, आइए गाड़ी बाहर पार्किंग में लगी है, और 
 फिर बिना समय गवाए ही रवि कुमार सर के हाथों से वह बड़ा सा बैग जो उनके कंधों से होकर कमर तक झूल रहा था , उसे लेते हुए वह आगे की तरफ स्टेशन के बाहर होता चला गया। रवि कुमार ने चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार को समझाते हुए बड़े प्यार से बोले ,"बेटे" यह जो मेरा सामान लेकर आगे - आगे बढ़े जा रहे हैं। वे हमारी गाड़ी के सबसे अच्छे ड्राइवर है। उनका नाम गोपीचंद है ।"वे हमारा सम्मान करते हैं और हम उनका सम्मान करते हैं''। ये बड़े ही ईमानदार हैं। ये हमारे कारखाने में शुरुआती दौर से ही लगे है, पन्द्रह साल बीतने को आए हैं, न ये हमसे ऊब रहे हैं और न हीं हम इनसे ऊब रहे हैं। महीने की तनख्वाह भी इनकी ज्यादा नहीं है। बस  चौदह हजार, और खुश रहते हैं । हमारे ही फ्लैट में इनका खाना पीना सोना जागना सब होता है, इनका एक भी रुपए तनख्वाह से नहीं कटने पाता।  सारा का सारा खर्च हमारे ऊपर ही निर्भर है। रवि कुमार साहब, इससे पहले की और कुछ बोलते, की तभी चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार बीच में ही बोल पड़े !
सर.. क्या मैं एक बात पूछ सकता हूं ?
हां पूछो ! क्या पूछना चाहते हो ? 
सर, शायद हमारी और आपकी मुलाकात एक संयोग है, किन्तु इतने शीघ्र एक दूसरे पर विश्वास भी कर लेना क्या यह उचित है । आपने हमारे विषय में इतना तक नहीं सोचा कि यह अपरिचित लड़का चोर भी हो सकता है, चरित्रहीन भी हो सकता है, या फिर सनकी या कोई मुजरिम भी हो सकता है । सर बिना सोचे समझे आपने मुझ, जैसे अभागे के ऊपर, इतना भरोसा करके स्नेह से भरा, दया और प्यार - दुलार जताया, क्या आप ऐसे गिरगिट समाज, जो स्वार्थ में डूबा हुआ पूरी तरह से । ऐसी स्थिति में आप यह सब जानते हुए भी, इतनी शीघ्र मुझ जैसे अभागे पर विश्वास करके, क्या आप यह सब उचित समझते हैं। यदि आप यह सब उचित समझते हैं, तो आप अपने शब्दकोश की डिक्शनरी में इसे क्या शब्द देंगे । मेरी समझ में यही सब बातें नहीं आ रही है। कहते-कहते चितरंजन दास अचानक  रुक से गए,और रवि कुमार सर , आश्चर्य भरी दृष्टि से उस निश्चल पुंज आत्मा को निहारते रह गए, उसकी मार्मिक अति प्रिय वाणी सुनकर वे फूले नहीं समाए । मन ही मन मुदित मयूर बन, आमोद प्रमोद के साथ, अपने हृदय झनकार को नियंत्रित करते हुए गंभीर मुद्रा में,गहरी सांस ले रवि कुमार सर ने मुस्कुराते हुए कहा, विजय, हमारी और आपकी मुलाकात एक संयोग नही, बल्कि एक सौभाग्य है, तुम्हारा भाग्य ही ऐसा था, कि मुझसे भेंट हुई, और हमारा सौभाग्य ऐसा था कि आप जैसे हीरे मोती हमें मिले । बेटे, हीरे की पहचान सदा जौहरी ही करता है ।

तुम जैसे कोहिनूर  की पहचान तो हम दूर से ही कर लेते हैं, इतना अनुभव  यदि मेरे पास न रहा तो  कूप के गर्त में, गिरकर जीवन भर हांफते कांपते और तड़पते रह जाते । वैसे जितने भी आपके पावन विचार हमने सुने, वह सब आज के परिवेश में अभीष्ट सच्चाई है, किंतु यही सच्चाई हमारे ऊपर भी लागू होती है, हम भी तो दलाल हो सकते हैं, हम भी तो चोर उचक्के और बदमाश हो सकते हैं, यहां तक कि आप जैसे बच्चों का किडनैपर भी हो सकते हैं । किंतु नहीं हम हमेशा सकारात्मक रहे हैं, ना हम खराब हैं और न हीं तुम खराब हो, "बेटा" यह हमारी गारंटी है कि हम दोनों अपने अपने स्थान पर सर्वश्रेष्ठ है परफेक्ट है 
आओ चले ड्राइवर हम सभी का इंतजार करता होगा, और हां हम अपने कार्य को एक उत्सव के समान बड़े ही मनोरंजन के साथ संपन्न करते हैं, जब कार्य एक उत्सव बन जाता है तब उस कार्य में कोई अपूर्णता शेष   नहीं रहती, आइए मेरे साथ।
चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार रवि सर की बात सुनकर बहुत ही प्रभावित हुआ और फिर उनके पीछे-पीछे चलता बना । वह मन ही मन सोचे जा जरा था कि हम सर जी का दामन कभी नहीं छोड़ेंगे पूरी ईमानदारी और  आत्म समर्पण के साथ, हम इनके हर एक कार्य को संपन्न करेंगे, उनके हृदय स्थल पर निवासित आत्मा में ही प्रवेश कर जाएंगे ।
ड्राइवर गोपी ने गाड़ी का फाटक खोल कर बड़े ही शालीनता के साथ रवि सर को और चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार को बैठाता है, पलक झपकते ही गाड़ी हिचकोले खाती हुई अपने सही दिशा की तरफ चल पड़ी,कुछ दूर जाने के बाद रवि सर ने ड्राइवर गोपी को आदेश दिया।
गोपी, आप गाड़ी आराम से चलाइए । आगे एक टीकमगढ़ी मार्केट है वहां एक निधि गारमेंट सेंटर अभी नया-नया खुला है जो की वह हमारे गांव कस्बे से तालुक रखता है, वहां हम आपके लिए और अपने चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार बेटे के लिए शॉपिंग करेंगे, उसके बाद हम सीधे फाइव स्टार होटल चलेंगे वही स्नान ध्यान पूजा पाठ खाना पीना सब होगा । 
ओके सर।  किंतु सर इनका परिचय जो आपके बगल में बैठे हैं। गोपीचंद ने बड़े अदब के साथ पूछा, तो रवि सर ने कहा अपना ही बच्चा है गांव से आए हैं, तुम्हें आगे चलकर सब मालूम हो जाएगा, ओके। 
ओके सर।  इतना कहते ही गोपीचंद हल्के से क्वालिस वैन के एक्सीलेटर पर दबाव बनाते हुए आगे बढ़ता चला गया ।

जैसे ही गोपी ने कारपेंटर उद्योग के सामने क्वालिस वैन को रोका, वहां कुछ कस्टमरो की भीड़े जमा थी, जिसके चारों तरफ इक्का दुक्का ट्रक ट्रैक्टर टेंपो एवं जेसीबी खड़ी थी, जिनके टूटे-फूटे पार्टों की मरम्मत या फिर नवीनीकरण करना था । बैन से नीचे उतरने के बाद रवि सर और चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार, बातचीत करते हुए साथ-साथ चल रहे थे । कारखाने के ठीक सामने एक बड़ा सा बोर्ड भी लगा हुआ था जिसमें बड़े अक्षरों में रवि कुमार कारपेंटर उद्योग लिखा था । कारखाने कें अंदर जैसे ही वे दोनों दाखिल हुए वहां बड़ी-बड़ी मशीने, चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार को देखने को मिली, जहां पर बड़े-बड़े हथौड़े, छेनी रिंच ग्रिल एवं छोटी बड़ी आरियां रखी हुई थी, चितरंजन दास की नजरे, मशीनरी वस्तुओं को निहारे जा रही थी। तभी रवि सर जी, संतोष कुमार के पास जाकर खड़े हो जाते हैं । संतोष कुमार कोई साधारण व्यक्ति नहीं था। वह अपने आप में एक अजूबा था, शिल्प कला में माहिर, लंबा चौड़ा कद काठी, सावला चेहरा एवं मृदुल स्वभाव का मिलन सार जिंदा दिल इंसान था । कारखाने की मशीने कैसी भी हो यदि वे बिगड़ जाती हैं तो, वह बहुत ही कम समय में उसे बनाकर चालू कर देता था । रवि सर को सामने देखते ही वह चौक सा पड़ा, वह खड़े होते हुए, रवि सर को बड़े ही शालीनता से अभिवादन किया, जिसका जवाब रवि सर ने अभिवादन से ही दिया, उसके बाद रवि सर ने कारखाने के विषय में तमाम बातों की पूछताछ की, संतोष ने उन्हें अपने शब्दों से आश्वस्त करते हुए कारोबार और मजदूरों के विषय पर सब कुछ ठीक-ठाक बताया, रवि सर ने चैन की सांस लेते हुए, चितरंजन दास के तरफ इशारा करते हुए, उनसे उनका परिचय कराया। और साथ ही साथ ही विषय में उनको जानकारी दिए कि यह लड़का मेरे बेटे के समान है । और इस कारोबार का छोटा मालिक भी, अब ये ही कुछ दिनों के बाद पूरा कारोबार संभालेंगे। साथ ही साथ हम आपसे यह आग्रह करेंगे , किन्तु छोटे मालिक के विषय में हम पूरा समझ नहीं सके । संतोष कुमार ने अपनी जिज्ञासा रवि सर के सामने रखी तो रवि सर,ने कहा !
जितना कम सवाल करेंगे आप उतना ही हमें आराम मिलेगा । अपने छोटे मालिक के साथ रहते - रहते सब कुछ जान जाओगे ओके ।
ओके सर, महेंद्र ने कहा, तभी चितरंजन दास ने, रवि सर को एकांत में चलने के लिए कहा, और रवि सर एकांत की तलाश में आगे की तरफ बढ़ गए, जैसे ही उन्हें एकांत मिला, उसी जगह ओ रुक गए ।
कहिए बेटा कुछ कहना चाहते थे, रवि कुमार ने चितरंजन दास से उत्सुकता बस पूछा !
हां सर मेरा कहना ये है कि अभी-अभी हम गांव से आए हैं,
  मेरा अनुभव भी इस कारोबार में लेशमात्र भी नहीं है, अभी तो हम चाहते हैं कि इस कारोबार को, कुछ महीनो तक बड़े ही बारीकी से हम समझे, साथ ही साथ मेरा उद्देश्य भी यही है कि हम अल्प समय में ही इसे संपूर्णता के अंत तक समझ लें ।
वेरी गुड, मुझे तुमसे यही उम्मीद है विजय बेटे,  रवि सर ने चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार का पीठ थपथपाते आगे बढ़ गए । चितरंजन दास अब गरीब नहीं दिख रहे थे, उनके शरीर पर अब महंगे महंगे वस्त्र थे, ऊंचे क्वालिटी के सबसे महंगे जूते और मोजे भी उनके पांव में पड़े थे । अंततोगत्वा धीरे-धीरे समय बीतने लगा, वह किसी यांत्रिक मशीन की तरह दिन रात काम करने में जुट गए । रवि कुमार सर चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार के दिन रात परिश्रम को देखकर भगवान को धन्यवाद करते थे । ऐसा होना भी चाहिए, जब मालिक अपने विश्वसनीय पात्र से खुश होने लगे, उसके दिल दिमाग का मानसिक तनाव हरण होने लगे, तो समझ लेना चाहिए की ऐसा कार्य करके दिखाने वाला भी कोई मामूली कर्मवीर नहीं हो सकता । 
Ravi Kumar apane aap se baat karate haye
रवि कुमार अपने आप से बात करते हुए 


पांच साल बीतने को आए थे। चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार, रवि सर का दिल ही नहीं दिमाग भी जीत चुके थे । ऐसे एक दिन रवि सर, अपने कमरे में बैठे हुए सांसारिक मोह माया, और उसके आवागमन के विषय में, बड़े ही गहराई से सोचने लगे, कि तभी उनकी आत्मा ने उनसे संवाद छेड़ा।
  रवि कुमार जी जरा सोचिए, आप अपने जीवन से आज तक क्या पाए, धन दौलत अपार शोहरत, और बड़ों का साथ, फिर भी रवि तुम अकेले ही अकेले हो, तेरी उम्र भी  62 साल के करीब पहुंच चुकी हैं, यदि शादी ब्याह किया होता तो, तुम्हारे खुद के अपने बच्चे होते, पत्नी होती, घर आंगन सजा रहता पंछियों की भांति बच्चे तुम्हारे साथ आगे - पीछे कलरव करते, तुम्हें कितना अच्छा लगता, तुम उनके साथ रहकर कितना खुश रहते , आज शायद तुम्हें चितरंजन दास की जरूरत न पड़ती, अरे उसका क्या,, वह आज है कल चला जाएगा क्योंकि वह शादीशुदा इंसान है, उसके जाने के बाद तुम्हारा क्या होगा, तुम फिर से अकेल जाओगे, अभी तो तुम्हारे पास कुछ बल पवरूख है धन है दौलत है बड़ी-बड़ी इमारत है लेकिन जब तुम बुजुर्गवस्था में पहुंचोगे, तब तुम्हारी सेवा कौन करेगा । वैसे भी यह जीवन क्षणभंगुर है कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता, यदि तुम्हें कल कदाचित कुछ हो ही गया तो तुम्हारे इस अकूत संपत्ति का क्या होगा, कौन वारिस होगा, कौन इसे लेगा । पांच वर्ष हो गए चितरंजन दास को तुम्हारे साथ रहते हुए , आखिर उसे भी तुमने आज तक कुछ भी नहीं दिया, और न हीं एक आखर उससे पूछे भी, कि चितरंजन, तुझे अपने बीवी बच्चों से मिलने जाना है कि नहीं । तुम्हारे बीवी बच्चे इस समय किस हाल में होंगे, क्या यह सब चितरंजन दास से तुम्हारा पूछने का कोई कर्तव्य फर्ज नहीं बनता।
नहीं नहीं नहीं।  मैं अपने चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार को कहीं नहीं जाने दूंगा, मेरी जान बन चुका है ओ, मेरी आत्मा बन चुका है । मैं उसके बगैर एक पल भी नहीं जी सकता । रवि सर मन ही मन चिल्लाये, मैं आज ही अपने बेटे के नाम 50 लाख का भारतीय जीवन बीमा कराऊंगा, जिसकी किस्ते मै भरूंगा । और हां जीवन यहां किसी का स्थाई नहीं है यदि मुझे कुछ हो जाता है तो वह अपने धन के साथ, अपने गांव जाएगा, हमारी सारी संपत्ति भी उसी के नाम होगी, वह मुझे बताया है कि उसके दो बच्चे भी हैं एक लड़का और एक लड़की, लड़के का नाम दीपक है, और उसकी लड़की का नाम रोशनी है, मैं उसके लड़के को नामनीय बनाऊंगा । मैं अभी भारतीय जीवन बीमा के निदेशक से बात करता हूं, मैं अपने चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार को कभी अकेला नहीं छोड़ सकता कभी नहीं । तभी उसकी अंतरआत्मा ने उसे पुनः झकझोरा ।
 अरे पगले, उस मोना के विषय में भी कभी कभार सोच लिया कर, जो तुम्हारी सेक्रेटरी है, भरी जवानी में बिचारी विधवा हो गई थी, उसका कोई सहारा नहीं, तुमने उसे दिल से भी चाहा था कि यदि मैं कभी भी शादी किया तो वह लड़की मोना ही होगी, मोना ही मेरी परिणीता होगी, मेरी दुल्हन होगी । क्या कभी उसके लिए भी अपने काम से 10 मिनट समय निकाला, जब भी तुम उसके पास कभी होते हो, तो वह बेचारी छुई मुई पौधे की तरह शर्मा जाती है । तभी रवि सर को पछतावा आया, वे भर्राये हुए कंठ से अपने आप से बोले ।
अब तो सब कुछ पुराना हो चुका है, मेरी उम्र भी 60-62 साल की हो चुकी है और वह अभी 45 वर्ष से भी ज्यादा की नहीं हुई, ऐसी स्थिति में हम पहले भी अपनी उम्र के कारण नहीं बोल पा रहे थे और अब तो मेरे पास शादी ब्याह करने की कोई उम्र ही नहीं बची कि तभी चितरंजन दास, अचानक आकर दरवाजे पर दस्तक देने लगे, फौरन दरवाजा खोला, सामने चितरंजन दास।
क्या हुआ बेटे, सब ठीक तो है, रवि सर ने आश्चर्य भरे लहजे में चितरंजन दास से पूछा ।
सर ऐसी कोई बात नहीं है, बात सिर्फ इतनी सी है कि यदि मैं भविष्य में कभी आपके लिए कोई गिफ्ट लेकर आया तो क्या आप उसे खुशी-खुशी स्वीकार कर लेंगे, इनकारेंगे तो नहीं । यदि इनकारेंगे तो मेरा दिल टूट जाएगा। आपसे मैं बहुत नाराज हो जाऊंगा। यहां तक की आपके सामने ही मैं फूट-फूट कर रोने भी लगूंगा, इसलिए आप मुझे वचन दीजिए की आप हमारी पसंद, कभी भी इनकार नहीं करेंगे ।
ओके बाबा ओके। रवि सर, अपने दोनों हाथों से चितरंजन दास के गालों पर प्यार की थपकी लगाते हुए, भावुक अंदाज में मुस्कुरा कर बोले !
बेटे, आज तो आपने हमें डरा ही दिया, हम आपको वचन देते हैं,आप जब भी कोई गिफ्ट हमारे पर्सनल लाइफ के लिए लाएंगे तो हम उसे जरूर पसंद करेंगे,यह मेरा वचन है ओके ।
ओके सर, चितरंजन दास ने कहा और फिर वहां से चलता बना ।
भला दुनिया का ऐसा वह कौन पत्थर दिल व्यक्ति होगा, जो परदेस जाने के बाद, लम्बे अरसे बीत जाने तक, अपने बीवी बच्चों को याद न करता हो, अपने गांव शहर के चिर परिचितों से भेंट करने के लिए या फिर उनसे मिलने के लिए उतावला न होता हो । अपनी मातृभूमि की वादियों में विचरण करने के लिए व्याकुल न होता हो, ऐसे ही कुछ चितरंजन दास के जीवन में भी घटित हो रहा था । जो अपने बीते हुए इन पांच सालों में कितनी बार अपने गांव, अपने घर परिवार और शहर जाने के लिए बेचैन हुआ था, या फिर अपने बीवी बच्चों से मिलने की लालसा लिए , खून के आंसू पी - पी कर दिन रात काटा था, वह बड़ी मुश्किल से ऐसे समय में अपने आप को संभाला था । वह चाहता तो अपने घर बड़े आराम से जा सकता था किंतु उसकी बेबसी, रवि सर का अकेलापन, और उनसे जुड़ी प्रेम प्रगाढ़ता की पवित्र वात्सलता थी, वह उसके घर जाने की यात्रा के आगे, अक्सर ही आड़े आ जाया करती थी, तब वह पूरी तरह से अंदर ही अंदर टूट जाता । पचपन वर्करों से संचालित वह कारपेंटर फैक्ट्री, जिसे कल रवि सर, चलाया करते थे किंतु आज, आज तो चितरंजन दास जी उर्फ विजय कुमार चला रहे थे, जिनके ऊपर कर्तव्य निष्ठा एवं ईमानदारी का भारी बोझ था, ऐसी स्थिति में वह अपने रवि सर को अकेले छोड़कर, घर के लिए पलायन कैसे कर सकते थे । इसी उधेड़बुन में चितरंजन दास जी ने,अपने 5 वर्ष बिता दिए किंतु सकारात्मक निर्णय तक नहीं पहुंच पाये, लेकिन आज, आज चितरंजन दास जी ने अपने कठिन मेहनत और प्रयास से जो निर्णय लिया वह निर्णय सर्वश्रेष्ठ परिणाम देने वाला था । इसी निर्णय की शुद्धता के लिए, गुप्त रूप में अपने उन तमाम वर्करो से उन्होंने पता लगाया था कि रवि सर का लगाव अपने इस कारखाने में कार्यरत किसी एक लेडिज से है या नहीं, यदि है तो वह किस रूप में और कितना है । तब उन्हें पता चला था कि वह लड़की मोना है जिसे रवि सर बहुत प्यार करते हैं किंतु अन्य लोगों को इसका अनुभव मात्र है । बिचारी मोना, अभी कुछ साल पहले ही विधवा हुई थी, जिसे रवि सर चोरी छिपे बहुत चाहते थे । तब चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार ने उसी क्षण अपने मन में यह संकल्प लिया था कि एक दिन अपने सर की शादी मोना मैडम से कराकर रहूंगा, क्योंकि इस शादी से सर जी को प्रथम दृष्टिया उनकी प्रेमिका मिल जाएगी,साथ ही साथ उनका घर परिवार बस जाएगा, और फिर देखते ही देखते उनका अकेलापन भी दूर हो जाएगा । यदि बाद में ईश्वर ने चाहा तो उन्हें एक बेटा भी मिल जाएगा, तब मेरे सारे सपने साकार हो जाएंगे और मैं पूर्ण स्वच्छंद आजाद होकर एक दिन खुशी-खुशी सर जी के चरण स्पर्श करके अपने गांव चमकी पुर लौट जाऊंगा । चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार, यही सब कुछ सोचते हुए रवि सर से होकर सीधा मोना के ऑफिस पहुंच गया, उस वक्त मोना अपने मोबाइल से इंटरनेट के माध्यम से कुछ सर्च कर रही थी कि अचानक उसके दरवाजे पर दस्तक हुई वह चौक कर उठते हुए जैसे ही दरवाजा खोली, उसकी आंखें फटी की फटी रह गई, वह हड़बड़ाते हुए बोली, सर आप ।
चितरंजन दास,मोना मैडम और रवि कुमार की शादी की बात करते हुए
चितरंजन दास,मोना मैडम और रवि कुमार की शादी की बात करते हुए 


हां मैडम कुछ आपसे ऐसे ही काम आ गए थे । चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार इजी चेयर पर बैठते हुए मुस्कुरा कर बोले ।
सर आपके लिए कुछ, क्या लेंगे ! मोना ने मुस्कुराते हुए बड़ी मृदुलता से पूछा ।
नहीं मैं कुछ नहीं लूंगा, बस आपसे यूं ही दो चंद बातें करने आया था, क्या आप तैयार हैं। चितरंजन दास ने बड़े ही सहजता और शालीनता से पूछा ।
हां सर, पूछिए किंतु ऐसी क्या बात हो सकती है, कहीं मुझसे कोई गलती तो नहीं हो गई । वह मंद मंद मुस्कुराते हुए सहम कर बोली।
नहीं - नहीं ऐसी कोई बात नहीं।  चितरंजन दास बड़े बेबाकी से कहा, दरअसल बात ये है कि आपको अब रवि सर से शादी कर लेनी चाहिए, हमारे सर, अपने जीवन के एकांकी पन से काफी ऊब चुकें हैं, उन्हें इंकार मत कीजिए नहीं तो उनका दिल टूट जाएगा क्योंकि ओ आपसे पहले भी प्यार करते थे आज भी प्यार करते हैं और जिंदगी भर प्यार करते रहेंगे, बस कमी सिर्फ उनकी इतनी सी थी कि ओ संकोच बस आपसे कभी भी अपने प्यार का इजहार नहीं कर सके थे अब उन्हें आपकी जरूरत है इसलिए आप इंकार मत कीजिएगा, वैसे आपको भी तो अकेलापन अखरता होगा।
किंतु सर मैं एक विधवा हूं, दुनिया क्या कहेगी, वैसे भी मुझे अपनी चिंता नहीं, चिंता तो मुझे अपने सर की है, उन्हें यह संसार क्या कहेगा, कहीं उनके मान सम्मान और मर्यादा पर चोट तो नहीं पहुंचेगी।
नहीं ऐसी कोई बात नहीं, मैडम जरा सोचिए, जब बादल पानी बरसता है तो यह सारी दुनिया जान जाती है, लेकिन जब किसी के आंसू निकलते हैं तो कोई भी नहीं जान पाता, अधर मुस्कुराते हैं, चेहरे पर गुलाब के फूलों जैसे सुंदर निशान छोड़ देते हैं, दुनिया सोचती है कि ये जनाब बहुत खुश हैं और बहुत सुखी हैं किंतु मैडम जनाब के दिल के भीतर क्या चल रहा है, दुख या सुख उसे कोई नहीं जान पाता। इसलिए मैडम यह जरूरी नहीं होता की हर मुस्कुराने वाले अधर, अपनी अंतरात्मा से सुखी होते हो, ऐसे ही हमारे सर और आप हो, जिसे दुनिया देखकर यह अनुभव करती है कि आप दोनों बहुत ही सुखी हो, अतः इस दुनिया के कारण, अपने जीवन के अच्छे फैसले बदल दिए जाय तो यह कहां का न्याय संगति होगा, दुनिया अपना कार्य कर रही है, आप भी तो अपना कार्य कर रही हैं, अपने जीवन के फैसले बगैर किसी के दबाव में आकर स्वेच्छा से ले सकती हैं, इसमें आपका पूर्ण अधिकार है,,,,। चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार ने मोना मैडम को जो भी बातें बताई, वह पूर्ण सत्य थी ।
सर यदि आप कहते हैं तो मैं इस विषय में सोच कर, आपको कल बताऊंगी। मोना मैडम ने चितरंजन दास को स्पष्ट जवाब देते हुए बड़े विनीत भाव में कहा ।
कल क्यों, अभी क्यों नहीं, क्या कल में आपका विश्वास ज्यादा है। चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार ने मोना से बड़े ही शालीनता और सुगमता के साथ मुस्कुराते हुए पूछे ।
नहीं सर ऐसी बात नहीं है। वह मंद मंद मुस्कान अपने अधरों पर तैराती हुई बोली, दरअसल, शादी विवाह की बातें इतनी सरल और सहज नहीं होती, यह संपूर्ण लाइफ से जुड़ी हुई होती है इसलिए इस पर हां करने से पहले, स्वयं से कुछ तर्क वितर्क तो कर ही लेना चाहिए । 
जैसे आपकी इच्छा। चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार ने मोना मैडम को अपनी मोटी मोटी आंखों से निहारते हुए आगे कहा । 
तर्क वितर्क तो लोग वहां करते हैं जहां कुछ संदेह हो, जहां अंजाना और अनदेखा गंतव्य हो । इसलिए मेम, मैं आपसे यही कहूंगा कि आप आने वाली 5 तारीख को पूरी तरह से अपने आप को तैयार रखिएगा, क्योंकि इसी तारीख पर, हमने पंचतारा होटल भी बुक करा लिया है, यार मित्रों को और अपनी समिति के जितने भी वर्कर भाई और महिलाएं सम्मिलित हैं सभी को हमने निमंत्रण भी दे डाला है, सर जी के दूर-दूर के जितने भी दोस्त है, हमने उन्हें आने वाली 5 तारीख को एक बहुत बड़ा शादी का उत्सव बता कर इनवाइट किया है, किंतु इतना ध्यान रहे हम आपको अपने सर जी के लिए एक बहुत बड़ा सरप्राइज गिफ्ट्स देना चाहते हैं जिसे आप सर जी को बताइएगा नहीं, अन्यथा मेरा इस उत्सव से दिल टूट जाएगा। कहते हुए चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार अपने दोनों हाथ मोना मैडम के आगे जोड़ लिए, तदुपरांत ₹20000 का चेक भी काटकर मोना मैडम को पकड़ा दिए, साथ ही साथ चितरंजन दास ने कहा, मैडम यह चेक आपके नाम, आपके लिए, शॉपिंग करने में काम आएंगे । यदि इसके अलावा भी कोई दिक्कत आए तो आप हमें फोन से जरूर अवगत कराइएगा, हम वहां तत्क्षण पहुंच जाएंगे, किंतु इतना याद रहे, मेरे सर जी को इस शादी के विषय में, आपको कुछ भी नहीं बताना है, आपसे मेरा यही विनम्र प्रार्थना है, अब मैं चलता हूं । क्योंकि अभी मेरे ऊपर बहुत ढेर सारा काम भी है, इतना कहते ही चितरंजन दास एक झटके के साथ सोफे से उठते हुए बाहर की तरफ निकलते चले गए ।
मोना क्या रवि से शादी करेगी
मोना क्या रवि से शादी करेगी


  • अब आगे क्या होगा, क्या चितरंजन दास मोना मैडम और रवि कुमार की शादी करा पाएगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए — कर्म और भाग्य की लड़ाई का अगला भाग, भाग 4!
  • अगर आपको हमारी ये कहानी पसंद आई हो तो वीडियो को लाइक करें, चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें, और बेल आइकन दबाएं ताकि अगली कहानी की घंटी सबसे पहले आप तक पहुँचे!
  • कहानियाँ जो दिल से निकलती हैं, उन्हें सुरक्षित रखना हमारी ज़िम्मेदारी है। Stories that come from the heart, protecting them is our responsibility.
  • पहले एपिसोड के लिए https://www.kedarkahani.in/2025/03/karm-aur-bhagya-ki-ladai.html
  • दूसरे एपिसोड के लिए https://www.kedarkahani.in/2025/04/karm-aur-bhagya-ki-ladai.html

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कर्म और भाग्य की लड़ाई|Karm aur bhagya ki ladai episode 1

कर्म और भाग्य की लड़ाई|Karm aur bhagya ki ladai episode 2

भारत चला बुद्ध की ओर – एक आध्यात्मिक गाथा "India Walks Towards Buddha – A Spiritual Saga"

भारत चला बुद्ध की ओर - वैभव से वैराग्य तक की यात्रा" "India Moves Towards Buddha – A Journey from Grandeur to Renunciation"

Emotional Shayari with Roadside Image | by Kedarkahani.in

कर्म और भाग्य की लड़ाई|karm aur bhagya ki ladai apisode 7| Ravi sir aur chitaranjandas