भारत चला बुद्ध की ओर – एक आध्यात्मिक गाथा "India Walks Towards Buddha – A Spiritual Saga"

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भारत चला बुद्ध की ओर – एक आध्यात्मिक गाथा
 "India Walks Towards Buddha – A Spiritual Saga"




भारत चला बुद्ध की ओर – एक आध्यात्मिक गाथा भाग - 1"India Walks Towards Buddha – A Spiritual Saga part -1"

भारत, जो हजारों वर्षों से ज्ञान, संस्कृति और आध्यात्मिकता की भूमि रही है, उसी महान भूमि पर एक अवतार ने जन्म लिया, जिसने संपूर्ण मानवता को सत्य, अहिंसा और करुणा का संदेश दिया। यह भारत की पवित्र मिट्टी ही थी, जिसने वेदों, उपनिषदों, योग, आयुर्वेद और महापुरुषों को जन्म दिया, और अब इसी धरा पर एक और युगपुरुष अवतरित हो रहा था—राजकुमार सिद्धार्थ।

जब शाक्य वंश के राजा शुद्धोधन और रानी महामाया को वर्षों बाद संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिला, तो पूरे राज्य में हर्ष की लहर दौड़ गई। महामाया अपने मायके देवदह जा रही थीं, तभी लुंबिनी वन में साल वृक्ष की छाया में एक दिव्य संतान का जन्म हुआ।

भारत की धरती की विशेषता रही है कि यहाँ जन्म लेने वाले महापुरुष मात्र अपने लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए कार्य करते हैं। सिद्धार्थ ने जन्म लेते ही सात कदम बढ़ाए, और प्रत्येक कदम के साथ धरती पर कमल खिला। यह संकेत था कि भारत भूमि पर जन्मा यह बालक आगे चलकर पूरी दुनिया को धर्म और शांति का मार्ग दिखाएगा।

भारत की परंपरा रही है कि जब भी कोई महापुरुष जन्म लेता है, तो ऋषि-मुनि उसे पहचान लेते हैं। महर्षि असित, जो वर्षों से तपस्या कर रहे थे, जब उन्होंने शिशु सिद्धार्थ को देखा, तो उनकी आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने घोषणा की—

"यह कोई साधारण बालक नहीं है। यह चक्रवर्ती सम्राट भी बन सकता है, परंतु इससे भी बड़ा यह एक तपस्वी बनेगा, जो न केवल भारत बल्कि पूरे संसार को ज्ञान, प्रेम और शांति का मार्ग दिखाएगा।"

भारत में सदियों से यही परंपरा रही है—राजा भी ज्ञान और धर्म के मार्गदर्शन में चलते हैं। महर्षि असित की भविष्यवाणी ने राजा शुद्धोधन के मन में चिंता भर दी। वे नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र सन्यासी बने, इसलिए उन्होंने उसे महल की चकाचौंध में रखने का निर्णय किया।

भारत की मिट्टी में करुणा और अहिंसा की परंपरा सदियों से चली आ रही है। महर्षि वाल्मीकि के रामायण से लेकर महाभारत के धर्मयुद्ध तक, भारतीय संस्कृति हमेशा धर्म और सत्य को सर्वोपरि मानती आई है। यही संस्कार बालक सिद्धार्थ में भी दिखने लगे।

एक दिन सिद्धार्थ ने देखा कि एक शिकारी ने एक कबूतर को घायल कर दिया। कबूतर तड़प रहा था। सिद्धार्थ उसे उठाकर उसकी देखभाल करने लगे। जब उनके चचेरे भाई देवदत्त ने कहा कि यह उनका शिकार है, तो सिद्धार्थ ने उत्तर दिया—

"भारत की परंपरा में जीवन की रक्षा करने वाला ही सच्चा धर्मी होता है। यह कबूतर अब मेरा है, क्योंकि मैं इसकी रक्षा कर रहा हूँ।"

यह विचारधारा केवल सिद्धार्थ की नहीं थी, बल्कि पूरे भारत की थी। यही वह भूमि थी, जहाँ अहिंसा परमो धर्म: का उद्घोष हुआ था। यही वह भूमि थी, जहाँ राजाओं ने भी धर्म को सबसे ऊपर रखा।

भारत ने हमेशा ऐसे पुत्रों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने ज्ञान और तपस्या से पूरी दुनिया को राह दिखाई। सिद्धार्थ का जन्म भी इसी पवित्र उद्देश्य के लिए हुआ था।

हालांकि राजा शुद्धोधन उन्हें विलासिता में रखना चाहते थे, लेकिन भारत की भूमि ने उन्हें जन्म दिया था—जहाँ तपस्वियों, ऋषियों और महापुरुषों का जन्म होता है। सत्य और धर्म की खोज उनके भीतर स्वाभाविक रूप से जागृत हो रही थी।

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भारत चला बुद्ध की ओर – एक आध्यात्मिक गाथा
 India Walks Towards Buddha – A Spiritual Saga

  

(अगले भाग में: भारतीय संस्कृति में सिद्धार्थ का पालन-पोषण और उनके विवाह का आयोजन)

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