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कर्म और भाग्य की लड़ाई|Karm aur bhagya ki ladai episode 4

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रवि सर और मोना की शादी की एक दृश्य रवि सर और उनके पुरानी प्रेमिका से शादी। कहते हैं, इंसान अपना भाग्य खुद लिखता है... लेकिन क्या वाकई?  या फिर भाग्य ही इंसान की राहें तय करता है?  यह कहानी है चितरंजन दास की... एक ऐसा नौजवान, जिसने गरीबी से लड़ने का संकल्प लिया, अपनों के लिए सबकुछ छोड़ दिया... लेकिन क्या वह अपने भाग्य को बदल पाया?" "यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन समाज की सच्चाइयों से प्रेरित। लेखक: केदार नाथ भारतीय" कर्म और भाग्य की लड़ाई| चितरंजन दास की संघर्ष गाथा भाग - 4 पिछले भाग में आपने देखा कि रवि सर, जो चितरंजन दास को पुत्र समान स्नेह देते हैं, अब भी अपने अतीत की अधूरी प्रेम कहानी के साथ जी रहे हैं। वर्षों शहर में बिताने के बाद, चितरंजन गांव लौटने का निर्णय लेते हैं। पर इस बार उनका उद्देश्य केवल वापसी नहीं, बल्कि एक अधूरी कहानी को मुकम्मल अंजाम देना है — उन्होंने ठान लिया है कि वे रवि सर का विवाह उनकी पुरानी प्रेमिका से कराकर, उन्हें वह सुख लौटाएंगे जिसे समय ने उनसे छीन लिया था। अब आगे ..... ! चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार की बल बुद्धि विद्या और ज्ञान से भरी हुई कर्मठत...

कर्म और भाग्य की लड़ाई|Karm aur bhagya ki ladai episode 3

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चितरंजन दास की संघर्ष गाथा भाग - 3 चितरंजन दास की खुला भाग्य। कहते हैं, इंसान अपना भाग्य खुद लिखता है... लेकिन क्या वाकई?  या फिर भाग्य ही इंसान की राहें तय करता है?  यह कहानी है चितरंजन दास की... एक ऐसा नौजवान, जिसने गरीबी से लड़ने का संकल्प लिया, अपनों के लिए सबकुछ छोड़ दिया... लेकिन क्या वह अपने भाग्य को बदल पाया?" "यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन समाज की सच्चाइयों से प्रेरित। लेखक: केदार नाथ भारतीय" कर्म और भाग्य की लड़ाई| चितरंजन दास की संघर्ष गाथा भाग - 3 पिछले भाग में चितरंजन दास और कारपेंटर उद्योग रवि कुमार से मुलाकात एक स्टेशन पर हुई। अब आगे .... जैसे ही रवि कुमार के साथ चितरंजन दास उर्फ विजय कुमार, ट्रेन से नीचे उतरकर, संगमरमर के स्निग्ध फुटपाथ पर कदम रखे, वैसे ही वहां पहले से ही मौजूद  गोपीचंद्र  नाम का व्यक्ति जो रवि कुमार की विशेष क्वालिस गाड़ी का सर्वश्रेष्ठ ड्राइवर था वह खाकी वर्दी पहने हुए उन्हें  'जोरदार सैल्यूट मारा',सर, गुड  मॉर्निंग।  मॉर्निंग, रवि कुमार ने औपचारिकताओ को पूर्ण करते हुए गोपीचंद्र  से  पूछा , क्या समाचार है गोप...

कर्म और भाग्य की लड़ाई|Karm aur bhagya ki ladai episode 2

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रवि सर चितरंजन दास को खाना भेट करते हुए। चितरंजन दास चला शहर की तरफ एक नई उम्मीद लेकर। कहते हैं, इंसान अपना भाग्य खुद लिखता है... लेकिन क्या वाकई?  या फिर भाग्य ही इंसान की राहें तय करता है?  यह कहानी है चितरंजन दास की... एक ऐसा नौजवान, जिसने गरीबी से लड़ने का संकल्प लिया, अपनों के लिए सबकुछ छोड़ दिया... लेकिन क्या वह अपने भाग्य को बदल पाया?" "यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन समाज की सच्चाइयों से प्रेरित। इसके पात्र और घटनाएँ किसी भी जीवित व्यक्ति या स्थान से मेल खा सकती हैं, पर यह केवल एक संयोग होगा। लेखक: केदार नाथ भारतीय" कर्म और भाग्य की लड़ाई| चितरंजन दास की संघर्ष गाथा भाग - 2 वह उत्साह के कौतूहलता में डूबा हुआ बिना पीछे मुड़े,आगे की तरफ बढ़ता ही चला जा रहा था, जिसके कर्म गति के साथ साथ उसका भाग्य भी जुड़ा हुआ, बहुत ही सरल सहज और सुगमता के साथ चुपके चुपके कर्म लेखा का हिसाब किताब लगाते हुए संघ संघ चल रहा था, उसे क्या पता था कि कर्म कितना भी महान हो  बलवान और तेजस्वी हो, फल और पुण्य से लवरेज हो किन्तु यदि भाग्य रेखा में अशुभता या दोष की लेशमात्र भी कहीं छाया आ गई हो,...

करेंसी एक महायुद्ध | currency ek mahayudh| rupaya vs dollar

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Currency ek mahayudh |Hindi stories  "रुपया vs डॉलर" – भाग 1: जब रुपया था king 🦁! (यह कहानी ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है, लेकिन इसमें कुछ कल्पनाएँ जोड़ी गई हैं। उद्देश्य केवल जानकारी और मनोरंजन है।) साल 1947। लाल किले से तिरंगा लहराया गया। आज़ाद भारत की पहली सुबह थी। लोगों की आँखों में सपने थे, और जेब में रुपया। तब भारतीय रुपया किसी से कमजोर नहीं था— 1 रुपया = 1 अमेरिकी डॉलर। उस दौर में भारत की अपनी शान थी। कोई विदेशी कर्ज नहीं था, और दुनिया में हमारी अर्थव्यवस्था की अपनी अलग पहचान थी। लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि आज रुपया डॉलर के सामने घुटने टेक चुका है? क्या यह सिर्फ आर्थिक उतार-चढ़ाव की कहानी है, या इसके पीछे कोई बड़ा षड्यंत्र था? एक मजबूत शुरुआत आजादी के समय भारत के पास मजबूत सोने का भंडार था। हमारा कृषि और हथकरघा उद्योग काफी ताकतवर था। लेकिन देश को आगे बढ़ाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर, उद्योग, और शिक्षा में निवेश करना जरूरी था। सरकार ने विकास के लिए योजनाएँ बनाईं, और इसके लिए बाहरी देशों से मदद लेने की जरूरत पड़ी। यही पहला मोड़ था जहाँ भारत ने विदेशी कर्ज लेना शुरू कि...