कर्म और भाग्य की लड़ाई|Karm aur bhagya ki ladai episode 2

रवि सर चितरंजन दास को खाना भेट करते हुए। चितरंजन दास चला शहर की तरफ एक नई उम्मीद लेकर। कहते हैं, इंसान अपना भाग्य खुद लिखता है... लेकिन क्या वाकई? या फिर भाग्य ही इंसान की राहें तय करता है? यह कहानी है चितरंजन दास की... एक ऐसा नौजवान, जिसने गरीबी से लड़ने का संकल्प लिया, अपनों के लिए सबकुछ छोड़ दिया... लेकिन क्या वह अपने भाग्य को बदल पाया?" "यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन समाज की सच्चाइयों से प्रेरित। इसके पात्र और घटनाएँ किसी भी जीवित व्यक्ति या स्थान से मेल खा सकती हैं, पर यह केवल एक संयोग होगा। लेखक: केदार नाथ भारतीय" कर्म और भाग्य की लड़ाई| चितरंजन दास की संघर्ष गाथा भाग - 2 वह उत्साह के कौतूहलता में डूबा हुआ बिना पीछे मुड़े,आगे की तरफ बढ़ता ही चला जा रहा था, जिसके कर्म गति के साथ साथ उसका भाग्य भी जुड़ा हुआ, बहुत ही सरल सहज और सुगमता के साथ चुपके चुपके कर्म लेखा का हिसाब किताब लगाते हुए संघ संघ चल रहा था, उसे क्या पता था कि कर्म कितना भी महान हो बलवान और तेजस्वी हो, फल और पुण्य से लवरेज हो किन्तु यदि भाग्य रेखा में अशुभता या दोष की लेशमात्र भी कहीं छाया आ गई हो,...