कर्म और भाग्य की लड़ाई|Karm aur bhagya ki ladai episode 1

Karm - aur -bhagya
कर्म और भाग्य की लड़ाई - केदार की कलम से 
















चितरंजन दास और उसकी गरीबी


कहते हैं, इंसान अपना भाग्य खुद लिखता है... लेकिन क्या वाकई? 
या फिर भाग्य ही इंसान की राहें तय करता है? 
यह कहानी है चितरंजन दास की...
एक ऐसा नौजवान, जिसने गरीबी से लड़ने का संकल्प लिया,
अपनों के लिए सबकुछ छोड़ दिया...
लेकिन क्या वह अपने भाग्य को बदल पाया?"
"यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन समाज की सच्चाइयों से प्रेरित।
इसके पात्र और घटनाएँ किसी भी जीवित व्यक्ति या स्थान से मेल खा सकती हैं, पर यह केवल एक संयोग होगा।
लेखक: केदार नाथ भारतीय"

कर्म और भाग्य की लड़ाई| चितरंजन दास की संघर्ष गाथा


चितरंजन दास, ठीक 30 साल बाद,,,,। अथक मेहनत परिश्रम और संघर्ष के दौरान, अपने उत्साह को समेटे हुए आखिरकार अपने गांव चमकीपुर पहुंच ही गया । उसके सर के बाल और चेहरे की दाढ़ियां, श्वेत चांदी के समान,जटा जूट से लदी हुई, किसी ऋषि मुनियों की भांति बड़ी ही लोमहर्षक और संत स्वरूप लग रही थी । देखने में तो उसकी उम्र 70 साल के करीब थी किन्तु वह अभी 55 साल के पार भी नहीं पहुंच सका था । उसके चेहरे की एक-एक झुर्रियां, दूर से ही स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रही थी । दंत बत्तीसियों में जो ऊपरी वाले जबड़े के 16 दांत थे, अब वे पूरी तरह से झड़ चुके थे । निचले जबड़े में भी अभी कुछ न कुछ अतिरिक्त शेष खिड़कियां खुली हुई नजर आ रही थी । जिससे विदित होता है कि अब वह अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव पर, पहुंच चुका है । जब वह अपने बीवी बच्चों के बीच में था तब उसकी उम्र यही कोई 24 या 25 वर्ष की रही होगी । बिचारा, वह अपनी शादी शुदा जिंदगी को छोड़कर, अपने मासूम बच्चों के तन को बड़े लाड प्यार से स्पर्श करके,, चारपाई पर सोई हुई अपनी पत्नी को निहार निहार बड़े ही चुपके से, घर के अंदर बैठी हुई है उस दरिद्रनी गरीबी का समूल नाश करने के लिए, आगे की तरफ कदम बढ़ाता हुआ घर से बाहर निकलता चला गया । बिचारा चितरंजन दास,,,,। जब उसकी शादी हुई थी,



 तब उसकी उम्र यही कोई लगभग, लगभग तेरह या 14 वर्ष की रही होगी । उसकी धर्मपत्नी का नाम दुलारी देवी था । उस समय चितरंजन दास हाई स्कूल का मेधावी छात्र था, पत्नी भी बड़ी सीधी साधी और गुणवान थी, सभ्य थी सुशील थी,
एवं रूप लावण्य में ढली हुई, किसी से कम नहीं थी । किंतु उसके सास ससुर बहुत ही गरीब थे । घर में खाने पीने के हमेशा ही लाले पड़ा रहा करते थे, गांव गांव जाकर बूढ़े सास ससुर, सदैव ही मेहनत मजदूरी किया करते थे, कभी-कभी अपनी सासू मां के साथ, वह भी मेहनत मजदूरी करने के लिए जाया करती, जिसे देखकर चितरंजन दास का कलेजा मुंह को आने लगता, उसके मन में असीम चिताओं का जन्म हो जाता, चिंता तो विशेष तब होने लगती, जब उसकी धर्मपत्नी दुलारी देवी, अपने सास ससुर के साथ मजदूरी करने के लिए उनके पीछे-पीछे भागी हुई चली जाती,, वह दूर से ही देखता रहता किंतु उसकी हिम्मत नहीं पड़ती थी कि वह उन्हें रोक सके । वह अपनी धर्मपत्नी को जाते हुए देखकर
मन मसोस कर रह जाता । घर की दुर्दिनता बड़ी ही भयावह हो चली थी, कभी-कभी घर में खाने पीने की, इतनी दिक्कत होती थी कि उन्हें उपवास भी करना पड़ जाता ।
चितरंजन दास एकांत में बैठकर,जब अपने घर की स्थिति परिस्थिति के विषय में सोचता, तो उसका गला भर जाता, मन मस्तिष्क शून्य सा
होने लगता, हृदय की धड़कने बढ़ने लगती, कभी-कभी उसको ऐसा लगता, जैसे कि उसका गला ही अब पूरी तरह से सूख कर मरुस्थल बन जाएगा, वह बार-बार अपनी सूखी हुई जिह्वा से अपने होठों को तर करने की कोशिश करता, वह अपने घर द्वार की विपन्नता से मायूस सा हो उठता, उसके दोनों नेत्र सजल हो जाया करते थे,वह घण्टों एक ही जगह बैठकर अपनी दोनों आंखें बंद करके,पता नहीं क्या-क्या सोचने लगता, वह पढ़ने लिखने में बड़ा ही तेजस्वी था, कभी-कभी ना चाहते हुए भी वह, गांव के अंदर परिस्थित बस मजदूरी करने के लिए चला जाता, यदि उसे दुर्भाग्य बस वहां काम न मिल पाता तो वह बड़ा ही चिंतित हो जाता, उसका गला वहीं खड़े-खड़े सूख कर ठूंठ सा होने लगता, वह स्वयं से ही झेंप खाकर अपने आप को कोसता । किंतु पलक झपकते ही उसके सुंदर सुमन जैसे मन में,अखंड आशाओं के दीप प्रज्वलित हो उठते, और तब, उसके उर स्थल के केंद्र पर, जो पहले से ही नकारात्मक और सकारात्मक के बीच भयानक गृह युद्धें चल रही थी, उन दोनों पर अविलंब ही वह विजय प्राप्त कर लेता, जिसमें सकारात्मक विचार जीत जाता,और नकारात्मक धूसरित हो जाती, तब उसके अंतः स्थल में दबी हुई शेरे हिंद की जीवटता शोर मचाने लगती । तत्क्षण ही चितरंजन दास रहस्यमय ढंग से मुस्कराने लगता, फिर वह लंबे-लंबे डग भरता हुआ दृढ़ता से अपने गंतव्य पथ की ओर बढ़ने लगता । उधर समय रूपी पंछी भी, अपने दोनों पंखों को फड़फड़ाते हुए, सुख दुख से रहित, स्वच्छंद चैतन्य अवस्था में, संपूर्ण ब्रह्मांड के भीतर व बाहर, शांत चित मन से, निरंतरता की गति पकड़े, अपनी यात्रा में निमग्न था । इसी बीच उसकी धर्मपत्नी दुलारी देवी को दो संताने पैदा हुई, जो एक लड़का और एक लड़की थी, ये दोनों बच्चे बहुत ही खूबसूरत थे, लड़के का नाम वह बड़े प्यार से दीपक और लड़की का नाम रोशनी रखा था । किंतु उसकी गृहस्थी का केंद्र बिंदु पूरी तरह से खाली-खाली निर्बल एवं बलहीन था लाचार था असहाय था । अन्न धन उपज से अनाथ, मेहनत मजदूरी से आबाद, एक भी विश्वा जमीन न होने के कारण सारी गृहस्ती कंगाल थीं ।
चितरंजन दास, धीरे-धीरे अपनी घर गृहस्ती के हालात से, बहुत ही चिंतित और परेशान होने लगा । उसकी विशेष प्रकाश से चिंता यह थी कि उसकी वह वीभत्स कंगाल गृहस्ती, कुछ ही दिनों में उसके परिवार को, अवनति का डंक चुभो चुभो कर मार डालेगी, या फिर यह दरिद्रनी सुरसा डायन की तरह मुंह फैलाए हुए उसके सारे परिवार को एक ही झटके में, निष्ठुरता पूर्वक निगल जाएगी । या फिर यह निशाचरनी, कुलभक्षिनी, कुल घातिनी, यदि वह जीवित भी रहा तो उसके ऊंचे ऊंचे प्रगतिशील सपनों को साकार नहीं होने देगी । दिन रात उसे उन फुटकर की जिंदगियों में उलझाए हुए रखेगी, जैसे कि उसका बीता हुआ बचपन का अतीत, जो एक एक कौड़ियों में, उलझा हुआ था, किंतु अब वह इसमें उलझना नहीं चाहता था । चाहे उसे इस दारिद्रिक सदन को ही छोड़ना पड़े, अंततोगत्वा वह इस अकिंचन अंधकूप से निकलने के लिए, सोचते विचारते,स्वयं में ही दृढ़ निश्चय कर लिया, कि अब वह अति शीघ्र ही, धन कमाने के लिए परदेस जाएगा , तब तक के लिए, जब तक की उसके घर में सदियों से बसेर ली हुई उस डायन गरीबी की निर्ममता से वध करने के योग्य नहीं हो जाता । अब वह इस दारिद्रिक घर में रहकर कीड़ों मकोड़ों की तरह जिंदगी नहीं जीना चाहता । अतः वह मन ही मन घर छोड़ने का निश्चय कर ही लिया । वह स्वयं में ही बड़बड़ाने लगा, मुझे जाना ही होगा, मैं अपने मान सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा के लिए निश्चित ही परदेस जाऊंगा बनवास जाऊंगा खुद को मिटा करके भी धन कमाऊंगा, धन संग्रहित करके, महाधन आयुध तैयार करूंगा, जो अनंत होगा अक्षय होगा, और तब मैं उसी से अपने घर मैं बैठी हुई,जो युगों युगों से मेरी पीढ़ियों को खाए जा रही है, उस दुष्ट गरीबी दरिद्रनी का, हंसते-हंसते वध कर दूंगा, तब मेरी आत्मा को शांति मिलेगी और मुझे सच्चा सुख,,,, हा हा हा हा हा हा हा,,,,। मेरे उच्च कोर्ट के सारे प्रगतिशील सपने साकार होंगे । तभी उसके किसी कोने से उसकी आंतरिक आत्मा ने उससे संवाद छोड़ा,,,। अरे मूर्ख ये तुम क्या कह रहे हो, तुम्हारी जिंदगी से जुड़ी,प्रकृति के सारे लेखा-जोखा और उसकी रचना के
विपरीत, धूप और छांव को कैसे मिटा सकते हो, अपने शरीर के परछाई से तुम कैसे अलग हो सकते हो, लाभ हानि,जीवन मरण, यश अपयश, ये तो विधि का खेल है इसे तुम कैसे बदल सकते हो, हां तुम इतना जरूर कर सकते हो, तुम धन कमा सकते हो किंतु सुख नहीं कमा सकते, तुम औषधि खरीद सकते हो, किंतु स्वास्थ्य नहीं खरीद सकते, तुम अच्छे-अच्छे मकान बना सकते है, किंतु शांति नहीं, तुम बिस्तर खरीद सकते हैं किंतु नींद नहीं, तुम सच्चे मन से कर्म कर सकते हो किंतु फल की प्राप्ति नहीं, तुम भौतिक संसार में बहुत कुछ बदल सकते हो किंतु अपनी विधि भाग्य हस्तरेखा नहीं,,,। लेकिन इसके पूर्व तुम जो कुछ भी निर्णय लिए हो उसे मैं निरर्थक नहीं कह सकता । तुम्हारे संकल्प यदि दृढ़ है, अपने सच्चे कर्म पर तुझे विश्वास है तो तुम अपनी इस गरीबी में परिवर्तन ला सकते हो । चितरंजन दास,,, हम तुम्हारे विचारों और सोचो पर, बहुत गर्व करते है, ऐसी गरीबी को सदा सदा के लिए परिश्रम करके दूर कर देना ही श्रेष्ठ कर है । जिस गरीबी के कारण तुम्हारे और तुम्हारे घर के सदस्यों के सपनों में व्यवधान हो, जिस दुष्ट गरीबी के कारण तुम्हारे जीवन के सर्वश्रेष्ठ विचार,मान सम्मान और स्वाभिमान पानी पानी होते जा रहे हो, जिस गरीबी के कारण, तुम्हारे सर की पगड़ी,, समाज के किसी भी कोने में उतरवा ली जाती हो, ऐसी गरीबी से युद्ध करना,अब तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ कर्तव्य बन गया है, तुम्हें इसमें देरी लेस मात्र भी नहीं करनी चाहिए, मैं तुझे देखता हूं मैं तेरी एक-एक आवाज सुनता हूं, तुम्हारे ऊपर मुझे बहुत तरस आता है मुझे खुद तुम्हारे साथ रहकर बड़ी ही घुटन महसूस होती है, अतः तुम आज अभी और इसी क्षण, अपने गंतव्य पथ की दिशा में कदम बढ़ाओ , किंतु याद रहे, कर्तव्य और कर्म से बड़ा एक विधि भाग्य भी है जिसे झूठ लाया नहीं जा सकता, अतः तुम इसे सदैव याद रखना ।


चितरंजन दास ने अपना सबकुछ छोड़कर एक नया सफर शुरू किया...

लेकिन क्या यह सफर उसे सफलता की ओर ले जाएगा?
क्या वह अपनी गरीबी को मात देकर अपने परिवार का जीवन संवार पाएगा?
या फिर... भाग्य उससे कोई और खेल खेलने वाला है?
"जानने के लिए इंतजार कीजिए अगले भाग का, जहां होगा संघर्ष, बलिदान और एक नए मोड़ की शुरुआत..."
कहानियाँ जो दिल से निकलती हैं, उन्हें सुरक्षित रखना हमारी ज़िम्मेदारी है। Stories that come from the heart, protecting them is our responsibility.
 
"हमारे WhatsApp चैनल से जुड़ें और ऐसी ही प्रेरणादायक कहानियाँ सीधे अपने फोन पर पाएं! यहाँ क्लिक करें"


🛒 "अगर आप सफल जीवन जीने और आर्थिक स्वतंत्रता पाने के बारे में और जानना चाहते हैं, तो यह बेहतरीन बुक ज़रूर पढ़ें: अभी खरीदें"

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कर्म और भाग्य की लड़ाई|Karm aur bhagya ki ladai episode 2

भारत चला बुद्ध की ओर – एक आध्यात्मिक गाथा "India Walks Towards Buddha – A Spiritual Saga"

कर्म और भाग्य की लड़ाई|Karm aur bhagya ki ladai episode 3

भारत चला बुद्ध की ओर - वैभव से वैराग्य तक की यात्रा" "India Moves Towards Buddha – A Journey from Grandeur to Renunciation"

Emotional Shayari with Roadside Image | by Kedarkahani.in

कर्म और भाग्य की लड़ाई|karm aur bhagya ki ladai apisode 7| Ravi sir aur chitaranjandas