विचित्र दुनिया, भाग -8 (उपन्यास)| धूम्रा की वो गलती जिसने उसे राक्षस बना दिया – सच जानकर कांप जाओगे

आकाश में कई दिनों तक चली भीषण युद्ध की गर्जना…

             धूम्रा और ब्रह्मराक्षस के बीच युद्ध दृश्य 



भीषण युद्ध के बाद की खामोशी


आकाश में कई दिनों तक चली भीषण युद्ध की गर्जना अब शांत हो चुकी थी। ब्रह्मराक्षस का अंत करने के बाद धूम्रा राक्षस धीरे-धीरे आकाश से नीचे उतर रहा था। उसके चारों ओर फैली धुंधली रोशनी और टूटते हुए तारों का दृश्य मानो किसी और ही लोक की कहानी सुना रहा था।


लेकिन उस पल उसकी आँखों में न कोई गर्व था, न विजय का उत्साह — केवल गहरी सोच, मौन और एक पीड़ा का सागर।
क्योंकि वह जानता था — धूम्रा बनने से पहले वह एक इंसान था।


इस भाग में आप देखेंगे धूम्रा राक्षस का अतीत — एक ऐसा इंसान जो कभी प्रेम, विश्वास और करुणा से भरा हुआ था, पर परिस्थितियों ने उसे अंधकार में धकेल दिया।
वो कौन था?
कैसे इंसान से राक्षस बना?
और क्या उसकी आत्मा आज भी मोक्ष की तलाश में भटक रही है?


साथ ही, कहानी आगे एक नया मोड़ लेती है —
क्या ब्रह्मराक्षस राघव को उसकी असली दुनिया में वापस जाने देगा?
और राघव व शशिकला के अलावा वे तीन रहस्यमयी मानव कौन हैं, जो इस विचित्र दुनिया के रहस्यों से गहराई से जुड़े हैं?


इन सभी सवालों के जवाब मिलेंगे —
“विचित्र दुनिया भाग 8 – धूम्रा राक्षस का अतीत”
एक ऐसी काल्पनिक कहानी में, जहाँ हर दृश्य कल्पना से परे है और हर संवाद आत्मा को झकझोर देता है।



विचित्र दुनिया उपन्यास भाग–8 — धूम्रा राक्षस के बनने की कहानी, युद्ध के बाद का दृश्य और मुख्य लेखक का प्रस्तुतिकरण।
लेखक का प्रस्तुतिकरण।











   लेखन: श्री केदारनाथ भारतीय (भुवाल भारतीय)
  • 🎙️ आवाज़: नागेन्द्र भारतीय
  • 🌐 एक प्रस्तुति: विचित्र दुनिया – Kedar Kahani सीरीज़


धूम्रा अंतरिक्ष में खड़े खड़े ब्रह्मराक्षस को देखे जा रहा था
धूम्रा अंतरिक्ष में खड़े खड़े ब्रह्मराक्षस को देखे जा रहा था 









धूम्रा राक्षस का पीड़ा भरा मन

धुम्रा राक्षस कुछ पल तक, वहीँ खड़े-खड़े ब्रह्मराक्षस को, आकाश में, तीव्र गति से हवाओं के साथ जाता हुआ, उलटता पलटता  उड़ता हुआ देखता रहा। उसकी वेदनाओं में निमग्न, करुणा से भरी हुई चीखों को सुन सुन, धूम्रा की दोनों आंखें पश्चाताप के आंसुओं में तैरने  लगी। वह मार्मिक संवेदनाओं से आहत, अपने निचले होठों को दांतों से धीरे धीरे कुचलने लगा । उसे बेहद अफसोस था ।  



धूम्रा कभी श्रवण कुमार हुआ करता था
धूम्रा कभी श्रवण कुमार हुआ करता था 






उसकी आत्मा का अतीत — एक इंसान की कहानी


वह सोच रहा था, कि मुझे, उस शैतान ब्रह्मराक्षस को इतना बड़ा कठोर दंड नही देना चाहिए था। सदा ही बड़ों का छोटों के प्रति, यह कर्तव्य भार होना चाहिए कि उनकी गलतियों को, एक नादान बच्चे की गलतियां समझकर उन्हें क्षमा कर दे अर्थात उनकी गलतियों को नजर अंदाज करते हुए, उनसे आनंद उठाना चाहिए । किन्तु हमने उस ब्रह्मारक्ष को  मृतक समान जो दंड दिया शायद वह उचित नहीं था।


अंतरिक्ष में, रोता हुआ धूम्रा राक्षस
रोता हुआ धूम्रा राक्षस 

 










ऐसा  सोचते सोचते वह,अपनी ही भावनाओं में बहता हुआ  द्रवीभूत होता चला गया। किंतु अब वह,धीरे-धीरे  अपने आप को संयमित करके  खुद को संभालने का प्रयास करने लगा । 
धूम्रा राक्षस बहुत ही सोच विचार के साथ,अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल लिए, आकाश में ही निराधार बैठकर, नीचे क्षितिज की ओर धीरे-धीरे उतरने लगा। उसकी दोनों आंखें अब भी आंसुओं में डूबी हुई थी । 

धूम्रा को देख सारे राक्षसों में खुशी का माहौल
धूम्रा को देख सारे राक्षसों में खुशी का माहौल 












अपने श्रेष्ठ गुरुदेव.धूम्रा राक्षस को धरती की तरफ आते हुए देखकर, सारे राक्षसों में आमोद प्रमोद की स्वर लहरियाँ गूजने लगी। वे तालियां बजा बजा कर, आपस में खूब् नाचने गाने लगे,जोर जोर से कूदते फांदते हुए।
जय गुरुदेव, जय गुरुदेव के नारे भी लगाने लगे। 
उन प्रत्येक राक्षसों की हथेलियों पे, गुरुदेव के स्वागत हेतु,ढेर सारे फूल फूलों की डालियाँ एवं उनकी पत्तियां भी बड़े श्रद्धा भाव से रखे हुए भाव विभोर थे।

सारे राक्षसों के बीच पांच मानव प्राणी,
धुम्रा को आते देख रहे थे।













उधर, वे पांचो मानव प्राणी भी, राघव, शशिकला और तीन अन्य।आकाश की ओर दृष्टि जमाए, धूम्रा राछास पर ध्यान केंद्रित करके, कुशलता पूर्वक उन्हें नीचे उतरने का इंतजार कर रहे थे उनके हाथों में भी बड़े-बड़े पुष्पहार एवं फूलों के गुच्छे थे किंतु उनकी दृष्टियों में ,आश्चर्यजनक के  भाव, डूबते उतिराते हुऎ संचालित अवस्था में, पूर्ण सक्रिय सतर्क थे।



वे पांचो, आपस में ही एक दूसरे से, धूम्रा और ब्रह्मराक्षस के बीच हुए युद्ध को, बड़े  ही हैरतअंगेज भाव में, आश्चर्यता से भरा हुआ वीभत्स और रोमांचकारी बता रहे थे। 
अब उन्हे वहाँ उस टोनी पहाड़  पर, किसी भी प्रकार के, संदेह मिश्रित डर भय नही दिखाई पड़ रहा था,धीरे-धीरे वे तीनो मानव प्राणी भी, जो अब तक राघव और शशिकला से दूरी बनाकर छिपे हुए थे। 


अब वे सब के सब उनके निकट आकर उनसे काफी घुल मिल चुके थे। किन्तु वे आपस में एक दूसरे से वार्तालाप करने में पूर्ण असमर्थ थे, चूकिं उनकी भाषाओं में काफी भिन्नता थी, फ़िर भी वे आपस में एक परिवार की भांति इकठे होकर वहाँ अपने उस फरिस्ते, धूम्रा राक्षस को, नीचे उतरने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। 





काश, कोई धूम्रा राक्षस की अंतरात्मा में ,उठते हुए पश्चाताप के भूचाल को समझ पाता। आज तक वह अपने हाथों कभी भी, हिंसक बनकर,किसी भी प्राणी के साथ हिंसा नहीं किया था, किसी का दुर्व्यवहार नहीं किया था, किसी भी असहाय का तिरस्कार नहीं किया था। 



किंतु आज ! आज वह अनाचार दुराचार और व्यभिचार के ऊपर, कितनी निरंकुश्ता के साथ,उसी के आयुध से हिंसक बनकर,उसी पर हिंसा करके, उसी को मृत्यु दंड दे बैठा । कहते हैं, भूल बस चाहे जितना भी भयानक पाप,किसी भी प्राणी के हाथों हो जाए, चाहे वह पाप कर्म, जाने अनजाने मैं हो या फिर चाहे जिस भी परिस्थिति में हो।

धूम्रा: को छोटे के प्रति बड़ों को स्नेह जताना चाहिए
धूम्रा: को छोटे के प्रति बड़ों को स्नेह जताना चाहिए 












उसके लिए पश्चाताप के दो बूँद आंसू ही उस पाप को धो डालने में समर्थ होते हैं । लेकिन यह सब जानते हुए भी, वह धूम्रा राक्षस, अपने नेत्रों के आंसुओं पर, लेस मात्र का भी लघु विराम नहीं लगा पाया था।


श्रवण कुमार अपने मां बाप की सेवा करते हुए
श्रवण कुमार अपने मां बाप की सेवा करते हुए 






 





उसकी दोनों आंखें अब भी अविरल जलधार में डूबी हुई पश्चाताप की अग्नि में झुलस रही थी । धीरे-धीरे वह शून्य से होते हुए टोनी पहाड़ की दिशा में आते आते, अपने स्वयं के अतीत में प्रवेश करता  चला गया । 

वह अपने बूढ़े मां-बाप का, इकलौता श्रवण कुमार था, आज्ञाकारी कर्तव्य निष्ठ और धर्म परायण था । 

ईमानदार अहिंसक तथा ईश्वर का परम भक्त था, वह कभी भी अपने जीवन में झूठ नहीं बोला था। सदा ही वह आठों याम, ईश्वर भक्ति और अपने बूढ़े मां-बाप की सेवा करने वाला, आज्ञाकारी और दयालु लड़का रहा।


एक काली छाया श्रवण कुमार को मारने की कोशिश
एक काली छाया श्रवण कुमार को मारने की कोशिश 







एक काली छाया और श्रवण कुमार का अंत


सभी उसे बहुत ही प्यार किया करते थे। एक दिन वह प्रतिदिन की भाँति,, ब्रह् मुहूर्त में उठकर, स्नान ध्यान करने के पश्चात, अपने बूढ़े मां-बाप के लिए जल्दी-जल्दी भोजन बनाने हेतु रसोइयें  में जाकर चूल्हा जलाने लगा,कि तभी उसे विचित्र आवाज में, कुछ मानव स्वर  घरघराते हुए लय में सुनाई पड़े।
वह डर के मारे अचानक थर थर कांपते हुए, आवाज की दिशा में मुडा। परंतु ये क्या..? उसके ठीक पृष्ठ भाग के ऊपर, किसी क़ाली छाया ने, अचानक ही अप्रत्याशित  हमला करके, उसे जोर से एक लात  मारी,और  वह धड़ाम से आगे की और मुह के बल जाकर गिर पड़ा। 


इसके पश्चात लात मारने वाली वह काली छाया... पत्थर का एक भारी  टुकडा उठाकर, उसके सिर पर तीव्र, गति से प्रहार किया, और फ़िर पलक झपकते ही वहां से गायब भी  हो गई । पत्थर की चोट इतनी भयानक थी कि वह गिरते ही मरणासन हो गया । उसके मां बाप चीखते  चिल्लाते हुए भागकर, तत्क्षण  पर्णकुटी के  अंदर आये, आते ही वे, अपने बेसुध घायल लाल को देखकर, जोर जोर से रोने लगे । 


उनकी हृदय विदारक चीखों को सुनकर, उनके अड़ोस पड़ोस में रहने वाले लोग,तुरन्त ही वहाँ  दौड़ते भागते हुए आ पहुंचे । वे तत्क्षण ही उसे गोद में  उठाये हुए,  घायल अवस्था में लेकर,वही बगल में रह रहे, नीम हकीम के   पास घबराये हुए पहुँचे।  


सर के पिछले भाग से काफी रक्त बह रहा था। नीम हकीम ने सबसे पहले उसके सर से बहते हुए रक्त को.रोकने का प्रयास किया, कितु उसमे भी अतिशीघ्र सफलता नही मिल सकी और रक्त काफी समय तक सर से निकलता रहा तदुपरांत ही वे नीम हकीम साहब, सिल लोढ़े की मदद से कुछ जड़ी बूटियों को पीसकर, उसका लेप सर के पिछले भाग में लगाकर आवश्यक खुराक मुंह के रास्ते पिलाने लगे।


श्रवण कुमार का इलाज चलता हुआ
श्रवण कुमार का इलाज चलता हुआ 













किंतु यह औषधियां  भी बड़ी मुश्किल से गले के अंदर उतर पाईं। अंत्तोगतवा उस लड़के का इलाज 20 दिन तक चलता रहा, लेकिन इन बीस  दिनों में वह एक बार भी नहीं बोल सका था और एक दिन बिना बोले ही रात्रि के समय संसार को छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए चल बसा। 


पुत्र वियोग में उसके मां-बाप की जैसे जान ही निकल गई। दिन रात तड़प तड़प कर  हाहाकार मचाते रहे , जो जो भी उनके करुण विलापों को सुनता उसका कलेजा मुह को आने लगता। इसके कूछ समय बाद, उस धूम्रा रूपी लड़के को आभास हुआ की मेरे मां बाप, मुझे पकड़ कर क्यों रो रहे है। 

श्रवण कुमार की आत्मा –अपने आप को जीवित करने की कोशिश
श्रवण कुमार की आत्मा –अपने आप को जीवित करने की कोशिश 







शरीर को देखकर आत्मा का रोना

अरे मैं दो कैसे...! एक तो मैं यहाँ खड़ा हूं और और,,,,,ओ,,,,,  दूसरा,,,,दूसरा, कौन है, जो चारपाई पर लेटा हुआ है ।  

वह घबराते हुए चारपाई के नजदीक आकर उसे पहचानता है , 


अरे ये तो मैं हूं,,,ल,,,,लेकिन,,,लेकिन मैं दो कैसे,,,,क.  कहीं मेरी मृत्यु तो नहीं हो गई,,,,,वह घबराते हुए बड़ी तेजी के साथ चिल्लाया,,,,,,. न नही नही नही ऐसा नही हो सकता यदि ऐसा हुआ तो मेरे मां-बाप को कौन संभालेगा मेरे बाद उनकी देखरेख कौन करेगा उनकी सेवाएं कौन करेगा।


वह एक पल अपने आप को बड़ी तेजी के साथ झंझोरा कहीं मैं सोते हुए स्वप्न तो नहीं देख रहा, वह अपने  शरीर को अपने दांतों से कई कई जगह काटा, अपनी उंगलियों के नाखूनों से अपने ही शरीर को खुरच खुरच कर थक गया, आखिरकार वह  अपने आपको मृतक समझ कर जोर-जोर से रोने लगा । 

तीन मृत दोस्तों की वापसी

तभी वह वहां अचानक चोंका, अरे तुम दोनों, दीपक और कुमार, यहां कैसे, ,,,,तुम सब तो मर चुके थे ना फिर यहां कैसे आ गए, क्या तुम सब जीवित हो,,,,,.।,न नहीं हम सब तो उसी दिन मर गए थे जब हमारी नौका बीच मझधार में पलट कर डूब गई थी।

दो आत्माएं तीसरे आत्मा को,  याद दिलाए हुए की वह मर चुका था
दो आत्माएं तीसरे आत्मा को,
 याद दिलाए हुए की वह मर चुका था 













 क,,क्या,,,,,। वह वही उछल सा पड़ा, जैसे उसे हजारों बिच्छुओं ने एक साथ डंक मार दिया हो । हां मेरे भाई हम सब मर चुके हैं,,,,,दीपक और कुमार ने एक साथ कहा,,,,,, और आप भी तो मर चुके हो ना भैया,,,। 

वैसे आपको हमी दोनों ने मिलकर मारा था क्योंकि हम दोनों के मर जाने के बाद यहां हम दोनो का कोई दोस्त नहीं था इसलिए हम सभी ने आपको अपना अच्छा दोस्त समझ कर आपको मार डाला अब हम सब यहां एक साथ मिल कर खेलेंगे,, खूब मजा आएगा । 


धूम्रा अब बेचैन हो चुका था अपने जीवित माता पिता को लेकर
धूम्रा अब बेचैन हो चुका था अपने जीवित माता पिता को लेकर 






इतना सुनते ही वह डूम्रा लड़का गुस्से में चिल्ला पड़ा।


न,,,,नहीं,,,,। ऐसा नहीं हो सकता तुम सब मुझे डराना चाहते हो तुम सब झूठे हो झूठे,,,,,। तुम दोनों यहां से चले जाओ। झूठों से मेरी कोई दोस्ती नहीं हो सकती,,,,,,। 


अच्छा हम सब झूठे हैं अगर हम सब झूठे हैं तो वह कौन है,,,,,,जो चारपाई पर सो रहा है, वह तो आप ही हो ना,,,उधर चारपाई पर भी आप, और.इधर भी आप, और इधर हम सभी से बात भी कर रहे है आप....!


इतना कहते हुए दोनों जोर-जोर से अट्टहास करते हैं फिर थोड़ा रुकते हुए बोले, 


दीपक और कुमार ने श्रवण कुमार (धूम्रा)  को यकीन दिलाते हुए कि वह मर चुका था।
दीपक और कुमार ने श्रवण कुमार (धूम्रा) 
को यकीन दिलाते हुए कि वह मर चुका था।














यदि यह सब झूठ है तो आपके मां-बाप क्यों रो रहे हैं उन्हें जाकर चुप कराइये, उनसे कहिए कि आप सब क्यों रो रहे हैं मैं जिंदा हूं जिंदा हूं । और उधर देखिए जो चारों तरफ से भिड़े लगी हुई है उन्हें जाकर समझाइए , तब आपको पता चलेगा कि हम जीवित है या मर चुके हैं । 


धूम्र लड़का बदहवास सा अपने मां-बाप के पास जाकर उन्हें चुप कराने की कोशिश करता है उन्हें पड़कर रोता है चिल्लाता है, समझाता है किंतु सब कुछ व्यर्थ वह भीड़ में एक-एक व्यक्ति के पास जाकर चिल्लाता है उन्हें समझाता है किंतु सब कुछ व्यर्थ । 


श्रवण कुमार के डेड बॉडी को देखते लोग और उसकी आत्मा..
श्रवण कुमार के डेड बॉडी को देखते लोग
और उसकी आत्मा..













अंत्तोगतवा वह स्वयं को मृतक मानकर जोर-जोर से रोते हुए, वही शांत होकर एक जगह बैठ जाता है धीरे-धीरे वह हिचकियां ले लेकर अपने मां-बाप के विषय में उन दोनों से कहता रहा,,,,,। 

तुम सब यहां से अब चले जाओ हम किसी से कुछ भी बातें नहीं करना चाहते, तुम लोगों ने मुझे मारकर मेरे माता-पिता को बड़ा दुःख दिया है, पुत्र वियोग का उन्हें संताप दिया है । हम तुम सभी को, अपनी दोनों आंखों से देखना भी नहीं चाहते  ।


 इसके पश्चात भी दीपक और कुमार उसे वहां अकेला छोड़कर नहीं गए । तब वह वहां से स्वयं ही उठकर  चुपचाप, कुछ दूरी पर शांत मन से असीम वेदनाओ को पीते हुए एक शिला पर जाकर बैठ गया। उन सभी से  वह कोई लड़ाई झगड़ा या तकरार नहीं किया  । 

श्रवण कुमार की आत्मा दूसरी दुनिया में प्रवेश करता हुआ
श्रवण कुमार की आत्मा दूसरी दुनिया में प्रवेश करता हुआ 






अगोचर लोक और ब्रह्मराक्षस का रहस्य

कुछ समय के बाद जब उसे अगोचर की दुनिया के नियमों का पता चला, तब वह पितृ भक्त, अपने माता-पिता की सेवार्थ, वहां के अभीष्ट देवता ब्रह्मराक्षस का तन मन से सेवा करना शुरू कर दिया । 


उनके सेवा के हर एक साल बाद,,,,,,। यहां  हम आपको बता दे कि यह ब्रह्मराक्षस वह ब्रह्मराक्षस नहीं है , जिसने उस  शशि कला का अपहरण करके, उससे मन चाहा अपना कार्य सिद्ध किया था।

अगोचर की दुनिया  में, अलग अलग तरह के,,,,और अलग-अलग विचारधारा के ब्रह्मराक्षस होते हैं,,,,कोई पापी छलिया होता है , तो कोई  सरल स्वभाव का करुणामई ब्रह्मराक्षस होता है और कोई कोई तो दया धर्म हृदय.के होते हैं और दूर दूर,तक, हर स्थानों पर पूजे जाते हैं । 


धूम्रा राक्षस देवेत्या रूप लेते हुए
धूम्रा राक्षस देवेत्या रूप लेते हुए 












ये अलौकिक ब्रह्मराक्षस,,अपनी अपनी सिद्धियों के साथ, अपने-अपने स्थानों पर, सदा ही विराजमान रहा करते है , और ये पूर्ण समर्थ सर्व शक्तिमान भी होते है । 

जब इनकी मुक्ति  का समय आता  है, तब ये  पूर्ण ब्रामः के समान, वर दाता बन जाते है, उस छड़  ये किसी भी मृतक को जीवन प्रदान करके उसे दीर्घायु  भी  बना सकते हैं । ब्रह्मराक्षस अपने मुक्तिधाम जाने से पहले, ,अपने स्थान पर किसी सक्षम और विवेक शील शिष्य  को, पूरे राजकीय सम्मान के साथ अपना कार्यभार सौंपते हुए, ,उसे राज सिंहासन पर  सुशोभित करके परमधाम को चले जाते हैं । 


टोनी पर्वत एक शैतानी जगह
टोनी पर्वत एक शैतानी जगह

टोनी पर्वत पर उतरता हुआ धूम्रा राक्षस
टोनी पर्वत पर उतरता हुआ धूम्रा राक्षस 













टोनी पहाड़ पर धूम्रा की वापसी

तभी अचानक धूम्रा राछासं बड़ी तेजी के साथ चोंका था, जैसे कि वह नींद से जागा हो। क्योकि अब वह टोनी पहाड़ के काफी निकट आ चुका था,,,,। उसके कानों में मंडल की आवाज जोर जोर से सुनाई पड़ रही थी, जो की यह उनका सबसे बड़ा प्यारा शिष्य था, वह चिल्ला रहा था,,,,, स्वामी स्वामी, स्वामी जी आपकी जय हो, आपकी जय हो आपकी जय हो ।


धूम्रा राक्षस के स्वागत में सारे राक्षसी आत्माएं
धूम्रा राक्षस के स्वागत में सारे राक्षसी आत्माएं




 







अद्भुत कोलाहल सुनकर धूम्रा राछास   की वान्छे खिल गई, धीरे-धीरे उसका स्वरूप देवत्व रूप लिए पूर्ण आभा  से  दमकता हुआ कांतिमय हो उठा  । उसके शरीर से उठने वाले सुगंध को, आप चंपा चमेली, जुहू एवं गुलाब की सुगंध कह सकते हैं  । अब वह मुस्कुराता हुआ टोनी पहाड़ के क्षितिज पर, बस एक या दो पल में अपने सुकोमल चरण  को रखने वाला था   । वहां वे सभी खुशियों आंगन में मस्त मगन थे ,,,,,, ,,,  ।


लेखक का संदेश
लेखक का संदेश







लेखक का संदेश

क्रोध को प्रेम से, अंधकार को प्रकाश से और राक्षस को मनुष्य के भाव से हराया जा सकता है।

जैसा कि ..जिस दिन तुम अपने भीतर के राक्षस को पहचान लोगे,
उस दिन तुम सच्चे इंसान बन जाओगे।”


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