उपन्यास:विचित्र दुनिया भाग 7|Will the Brahmarakshas succeed in sacrificing Raghav?


विचित्र दुनिया भाग 7 हिंदी उपन्यास – क्या ब्रह्मराक्षस राघव की बलि देने में सफल होगा? Author Kedar द्वारा लिखित फैंटेसी थ्रिलर
विचित्र दुनिया भाग 7" – रहस्य और रोमांच से भरा उपन्यास।
क्या ब्रह्मराक्षस राघव की बलि देने में सफल होगा?
✍️ लेखक: Author Kedar | Coming Soon






🎙️ विचित्र दुनिया – भाग 7 (लेखक: केदारनाथ भारतीय | आवाज़: नागेन्द्र बहादुर|Author Kedar YouTube channel 

विचित्र दुनिया उपन्यास भाग 7 लेखक: केदार नाथ भारतीय
लेखक: केदार नाथ भारतीय उर्फ भुवाल भारतीय 











विचित्र दुनिया भाग 7– ब्रह्मराक्षस और राघव की बलि का रहस्य

राघव, एक फाइव-स्टार होटल की आरामदायक कुर्सी पर बैठा हुआ, अपने हाथों में थामे अख़बार के पन्नों को पलट रहा था। लेकिन तभी एक खबर ने उसके दिल की धड़कनें रोक दीं—

"अकोढापुर गांव, भूकंप से पूरी तरह नष्ट… कोई जीवित बचने की उम्मीद नहीं।"

यह वही गांव था, जहां उसकी जड़ें थीं, उसका बचपन बसा था। बिना एक पल गंवाए, राघव ने अपने गांव की ओर निकलने का फैसला किया। मगर किस्मत ने उसके लिए कुछ और ही तय कर रखा था।

रास्ते में कुछ ऐसा हुआ, जिसे कोई समझ नहीं सकता। वह गांव तक कभी नहीं पहुंचा। इसके बजाय, वह पहुँच गया एक अनजानी, विचित्र दुनिया में—एक ऐसी जगह जहाँ आत्माएं, शैतान, और प्रेतों का शासन था।

कैसे वह इस दूसरी दुनिया में पहुँचा, यह रहस्य आज भी अनसुलझा है।

छह भागों की इस अद्भुत यात्रा के बाद, आज हम लेकर आए हैं भाग 7।

याद रखिए—यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है, लेकिन इसके हर मोड़ पर आपको नए रहस्य, भावनाएं और रोमांच का अनुभव होगा।

👉 कहानी को ध्यान से सुनें और महसूस करें—यह कोई साधारण भूतिया कथा नहीं, बल्कि रहस्यमय और अनोखी दुनिया की झलक है।

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जुड़े रहिए, क्योंकि विचित्र दुनिया का यह सफर अभी जारी है…

लेखक: केदार नाथ भारतीय उर्फ भुवाल भारतीय 

विचित्र दुनिया उपन्यास भाग 7...

ध्रुमा राक्षस...।  पांड्या  पहाड़ के ऊपर, शिव  मन्दिर के   निकट, एकांतवास लिए समाधिस्त है । रात्रि के अब नौ बजने वाले है । आज की रात्रि अमावस की प्रथम प्रहर की काली रात्रि है । आज ही  उसे अपने इस राक्षस योनि से सदा सदा के लिए मुक्ति मिल जाने  वाली है।  उसके चारों तरफ दिव्य प्रकाश की चंचल किरणे, अपनी तेजोमय आभा लिए पूर्ण आह्लादित हैं ।

तभी उसके करीब उसके मुखमंडल के संमुख, एक सफेद परिधान पहने, अलौकिक दिव्यता से परिपूर्ण, सत्पुरुष का आगमन होता है वह  मंद मंद मुस्कान बिखेरे हुए धूम्रा राक्षस को संबोधित करता है...।

हे धूम्रे, हम विधाता के  भेजे हुए देवदूत हैं।  हम आपसे कुछ अवशयक बातें करना चाह रहे हैं, आप अपनी आँखें खोलिए । 

देवदूत के तीसरे संबोधन में धूम्रा राक्षस ने, अपनी दोनों आंखें खोलकर आश्चर्यजनक दृष्टि से, देवदूत को निहारने लगा।  देवदूत ने अति विशिष्ट भाव में मुस्कुराते हुए कहा..।

हे भद्र,  अब आप बैकुंठ लोक के अधिकारी बन चुके हो, अब आपकी यह राक्षस योनि, जिसमें तुम हजार हजार कल्पों से निवास कर रहे हो। इससे अब तुम्हे मुक्ति मिलने वाली है। ईश्वरी आदेसानुसार आज रात्रि, 12:00 बजे  तक का समय, आपके कायाकल्प के लिए सुनिश्चित किया गया है। अतः आप इसके मध्य जो भी कार्य करना चाहेंगे, उसे आप अविलाम्ब ही सफलतापूर्वक पूर्ण कर सकते हैं, आपके मन के अनरूप आपके सोचे हुए सारे कार्य मिस्कंटक  रूप से संपन्न होंगे....। इसके पश्चात यदि आपके मन में कोई जिज्ञासा हो तो उसे  निःसंकोच पूछ सकते हैं।

देवदूत का एक-एक शब्द पारदर्शी एवं सत्य पूर्ण था जिसे सुनकर धूम्रा राक्षस ने आभार व्यक्त करते हुऎ बड़ी विनम्रता के साथ बोला...। 

हे देव, आपने हमारे उपर बड़ा ही  छोभ किया है, हम इतने अल्प समय में जो भी निर्णय लें,  वह पूर्ण सत्य हो...।  

तथास्तु...।

इतना  कहते हुए  देवदूत ने अपने होठों पर अति मधुर मुस्कान बिखेरते हुए अंतर्ध्यात हो गये  । अब धुम्रा राक्षस को पूर्ण यकीन हो गया, कि उसके जाने का समय आ चुका है वह तेजी के साथ सोचने लगा था कि इतने अल्प समय में वह क्या-क्या करें । वह तत्क्षण बिना एक पल का समय गवाये हुए।  अपने योग मंत्र से टोनी पहाड़ पर गये हुए साथियो के विषय में जानकारी जुटाने लगा। अचानक वह चौंका...।

हें, यह  क्या...। मंडल सहित हमने कुछ साथी गणों को उस टोनी पहाड़ पर जो भेजे थे, वे सब के सब, ब्रह्मराक्षस  के प्रभाव से भेड़ बकरी और बैल बन चुके है। अफसोस, अफसोस की, वह धूर्त इन सभी की बलि भी देना चाह रहा है। मेरे साथी रूहों को शरीर प्रदान करके उन्हें घोर यातना देकर मार देना चाहता है। और तो और उन दोनों मासूम बच्चों को भी आज ही की रात्रि, कुछ समय बाद उनका भी काम तमाम कर देगा...।

 न–नहीं, नहीं नहीं....।  मैं ऐसा हरगिज भी  नहीं होने दूंगा, याद आया मंत्र योग के बल से जो मैं पहले देखा था, आज वही मुझे मेरे सामने प्रत्यक्ष रूप में दिखाई पड़ने लगा है ....।  किंतु मैं ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूंगा मैं आ रहा हूं वहीं आ रहा हु । जहां तुम जैसे बनावटी जादूगर सत्य और धर्म को सदा सदा से ही लज्जित  करते आ रहे हो, मैं वहीं आ रहा हूं।

मूर्ख मेरे उन धर्म  राक्षसो, को अपने  जादू के प्रभाव से बंदी बनाकर उनका अपमान क्यों कर रहा है। अब तेरे पाप का घड़ा भर चुका है। तुम दंड के पूर्ण अधिकारी बन चुके हो अतः अब तेरे कारण मुझे शपथ लेना ही पड़ गया कि तेरी भी मुक्ति मेरे साथ हो जाए तो कुछ भी बुरा नहीं होगा मैं बैकुंठ लोक जाने से पहले ही,  जिस पाप के आयुध् से तुम उन्हें काट रहे हो उन्हें मार रहे हो उन्हें घायल कर रहे हो, तेरे उसी आयुध्  से तेरा विनास् न कर दिया, या तुझे दंड न दे दिया तो मेरा भी नाम  धूम्रा राक्षस नहीं...।

हम वैसा नहीं होने देंगे, जैसा कि तुम चाह रहे हो ब्रह्मराक्षस।

हम उन्हें बचाएंगे....। और तुम जैसे नरभक्षी पापी को उचित दंड भी देंगे।

अचानक वह धूम्रा राछासं अपनी बंधी हुई शिखा को एक झटके के साथ खोल दिया, और फिर अचानक उसके मुख से भयानक गुर्राहट निकलने लगी।

हा हा हा हा हा अरे दुष्ट ब्रह्मराक्षस ...। अब तुम्हें बचाने के लिए तेरा कोई भी तंत्र-मंत्र काम नहीं आएगा । हा हा हा हा हा हा ह...।

उसकी लाल-लाल सुर्ख आंखें जैसे रक्तों से भरी हुई, अब बाहर की तरफ निकलने वाली हों। वह अपने आसन से अचानक उठते हुए अपने सर को एक तीव्र झटका दिया, और फिर जोर-जोर से अट्टहास करने लगा ।

हा हा हा हा हा हा हा हा हा...।

मगर  ये क्या..?  धूम्रा राक्षस के चारों तरफ अचानक  ही धुओं का  गुब्बार उठने लगा, शुरू शुरू में सफेद धुआं का और फिर  बाद में काले काले धुओं का तांडव उसके चारों  तरफ भयावह   दिखाई पड़ने लगा । किंतु यह क्या...?  समझ से परे है , वह धूम्रा राक्षस, धुओं के मध्य एक गोलाकार परिधि  बनाकर उसी में विलीन होते हुए धुओं के साथ आकाश के दक्षिण दिशा में उड़ता हुआ गायब हो गया।

पता नहीं क्यों उसके जाने के पश्चात भी उस  पांड्या पहाड़ पर  देवदूतों के होने की पुष्टि हो रही थी। वहां  ऐसा लग रहा था, जैसे की नभ बृंदारकों की कुछ टोलियाँ, आपस में संसद जुटाये किसी विशेष विषय पर विशेष संवाद एक दुसरे से छेड़ने पर  तुले हुए हों, उस  सुरम्य  वातावरण में ओम नमः शिवाय का स्वर भेदित् हो  रहा था।

वहां मानव श्वेतांबर धारण किए कुछ आकृतियां दूर-दूर तक दिखाई पड़ रही थी वहां विशिष्ट सुगंध चारों तरफ  मन  को आकर्षित करते हुए हृदय को भाव विभोर कर रही थी । देवदार, नारियल और बबूल के कुछ ऊचे ऊचे पेड़ बड़े ही मनोहारी लग रहे थे की तभी वहाँ हंसों के कुछ जोड़े अपने परों को फड़फड़ाते हुए अनायास ही उस पहाड़ की चोटी पर आकर बैठ गये, वे देखने में अति सुंदर लग  लग रहे थे...।  उस दुर्गम स्थान पर कोयल जैसी पंछी तथा नीलकंठ भी मौजूद थे।

जो अपने मधुरकंठों से उस वातावरण में झंकार भर रहे थे वही एक डाल पर बैठा हुआ एक रात्रिचर प्राणी उल्लू, बड़े ही ध्यान भाव से उनके रस गानों को  सुन सुन कर अपने पंख फड़फड़ा रहा थादूर से देखने पर वह पहाड़ सफेद संगमरमर की भाँति बड़ा ही मनोहारी लग रहा था जहां पांड्या पहाड़ था उसके चारों तरफ बर्फीली हिमपात की चादरें बिछी हुई प्रतीत हो रही थी! रात्रि होने के पश्चात भी वहां दिन का प्रकाश जैसा एक गोलाकार दूधिया स्तंभ दिखाई पड़ रहा था जिसे पांड्या पहाड़ होने का एक दुर्लभ श्रेष्ठ गौरव कहा जाता था।

मध्यांतर

आज उस टोनी पहाड़ पर, महा उत्सव का विस्तार था । पहाड़ के चारों तरफ,, जैसे आकाश मंडल की समस्त तारा बलिया उतर कर झालर मोतियों की भाँति बिजली की गति लिये वहाँ चमक रही हो । राघव और शशि कला को, नहला धुलाकर एक नए वस्त्रों में श्रृंगार रत कर, उन्हे मंडप में बैठा दिया गया है । उनके चारों तरफ तरह-तरह के परिधानों से सुसज्जित महिलाएं, उनके स्वागत में तत्पर तैयार हैं। वहां विवाह के शुभ मंगल गीत गाए जा रहे हैं सभी अपने अपने आमोद प्रमोद में मस्त मगन है । सामने बैठा हुआ बिप्र, अपनी पोथियों को आगे करके कुछ मंत्रो का उच्चारण कर रहा है।

शशि कला अपनी लाल सुर्ख चुनरी पहने हुए राघव के बाएं दिशा में बैठी हुई घुंघट के अंदर मुस्कुरा रही है । वहां मंद मंद गति से शहनाइयों के स्वर हृदय के तार को झंकृत कर रहे हैं । कि तभी....वहां ब्रह्मराक्षस अपने कुछ साथियों को लेकर अचानक पहुंचता है, उसको देखकर वहां उपस्थित सभी स्त्री पुरुष भयभीत होकर कांपने लगते हैं, कुछ क्षण के लिए गीत संगीत का गान रुक जाता है। शशिकला और राघव तत्क्षण अपने स्थान से उठकर उसके स्वागत में खड़े हो जाते हैं, और वहीं पर बैठा हुआ ब्राह्मण वह भी खड़ा हो जाता है। अपने सम्मान में ब्रह्मराक्षस ने जब ऐसी कौतूहलता देखी तो वह खुशी से झूम उठता है वह वही खड़े-खड़े मंद मंद मुस्कुराते हुए सबको संबोधित करता है...।

मेरे गुलामों, जैसा कि हमने आप सबको पहले ही बता दिए हैं कि आज शशिकला बेटी और राघवेंद्र इन दोनों का यहां ब्याह होगा, इसके पश्चात इन दोनों की इसी स्थान पर बलि भी चढ़ाई जाएगी, जिससे की हम सब शशिकला और राघवेंद्र के शरीर को टुकड़े-टुकड़े करके उसे  बटुए मे पका सकें, और फिर दारु शराब के साथ इनके पके हुए मांस को खा–खाकर आनंद ले सकें।जिससे हमारा यह उत्सव आनंद से भर जाए।

ल..लेकिन बाबा हम सब कैसे खाएंगे हम सभी की तो आप बलि चढ़ा देंगे।

कैसे खाएंगे....हा हा हा हा हा हा हा...।

बताओ ना बाबा... हम सब कैसे खाएंगे। 

शशि कला ने रूहाँसे भाव में, ब्रह्मराक्षस से पूछा....।इतना सुनते वह ब्रह्मराक्षस जोर-जोर से ठहाका मारते हुए शशि कला से कहा...!

बेटे शशि... पहले अपनी इस लड़के से शादी रचाओ उसके बाद, इसके साथ तुम अपने आप को बलिदान हो जाओ,हा हा हा हा हा हा हा.. यही हमारा हुक्म है। हा हा हा हा हा हा हा... फिर तुम दोनों के रूहों से हम पुनः शादी रचाएंगे....। समझी, क्या समझी...। हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा...। उसके बाद तुम दोनों, अपनी ही शरीर का गोश्त, बड़े ही शौक से खा सकोगे।  हा हा हा हा हा हा हा ... दारु शराब के साथ अपना स्वादिष्ट मांस चखोगे। हा हा हा हा हा हा हा हा हा.... समझी क्या समझी। हा हा हा हा हा हा हा हा...।

 ह..हम इसके लिए तैयार है बाबा।

राघवेंद्र और शशि कला दोनों ही साथ में बड़े ही प्रसन्नचित से बोले थे । सम्मोहन मंत्र की शक्ति टोनी पहाड़ के जर्रे जर्रे में समाहित था सभी उसके बस में थे क्या मानव शरीर...? क्या शरीर रहित आत्माएं ?

वह पुनः जोर जोर से गरजा।

हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा....जल्दी से जल्दी इन दोनों की शादी रचाई जाए और साथ ही साथ मांस पकाने वाले जितने भी लोग हैं सब अपने-अपने कामों में लग जाए, खून के प्याले तैयार रखे जाय । तथा.... मेरे बलि चढ़ाने के पहले सभी , अपनी अपनी तलवारें, म्यान से बाहर निकाल कर उसे खूब जांच पड़ताल कर ले । 

किन्तु...तभी वहां शादी कराने वाला ब्राह्मण, ब्रह्मराक्षस से बड़े अदब के साथ बोला।

मेरे आका,  बस इन दोनों की सात भंवरिया घूमने दीजिए, फिर उसके बाद आप इन दोनों की बलि चढवा दीजिएगा। और फिर हम इन दोनों की रूहों, रूहों से शादी कराने के लिए, यही पर तत्पर तटस्थ खड़े रहेंगे।

सर्वश्रेष्ठ...अति सर्वश्रेष्ठ....।

ब्राह्मण को शाबाशी देते हुए ब्रह्मराक्षस ने खुशी-खुशी कहा....

हे विप्र, तुम्हारी ऐसी बातें सुनकर मुझे अच्छा लगा, अब तुम जल्दी-जल्दी इन दोनों की शादी कराओ.... ।

हम उस घड़ी का इंतजार करेंगे, जब इनकी भंवरी हो जाने के बाद।  हम  अपने इन दोनों हाथों से, इनकी  बलि चढ़ा देंगे।  समझा....क्या समझा...?

हा हा हा हा हा हा हा हा...। 

हम वही करेंगे  आका....  जो आप चाहते है।

इतना कहते  ही वह ब्राह्मण उन दोनों की भंवरी, घुमाने की तैयारियों में जुट गया।

इधर बड़े-बड़े हथियार जैसे लम्बी–लम्बी तलवारें, कटारिया, बड़ी-बड़ी तेज धार छूरीयाँ, हाथों में लिए हुए तमाम दुष्ट आत्माएं, अपने–अपने कार्य भारों में जुट गये। वे आपस मे विनोद भाव करते हुए, एक दूसरे के ऊपर जोर आजमाइश भी करते हैं।

आज वे बहुत ही चित प्रसन्न है । दूसरी तरफ बड़ी बड़ी  कराहियाँ और बड़े–बड़े भगोने, साफ सुथरा करके, चूल्हों के ऊपर रखे जाने लगें थे। उनकी हंसी मजाक भी बहुत अजीब थी।

जिसे सुनकर बड़े-बड़े सूरमाओं के भी रोंगटे खड़े हो जाए। उनका रूप स्वरूप भी कल्पना से परे, महा भयानक था। तभी उसे खबर लगती है की सात फेरों वाली भंवरी अब पूर्ण हो चुकी है।

आंध्र नाम का एक शैतान, अपने दाहिने हाथ में एक तेज धार कटारी और बायें हाथ में एक बड़ा सा कटोरा लिये हुए दौड़ पड़ता है। वह खुशी-खुशी में उछलता हुआ पता नहीं अपने मुंह से क्या-क्या बके जा रहा है जिसकी भाषा तेलुगू तमिल या कन्नड़, हो सकती है।

किंतु अपनी भाषा में वह खुशी-खुशी चिल्लाये जा रहा था।

आज मैं मनुष्य का खून पियूंगा, बड़ा मजा आएगा।

हा हा हा हा हा हा हा हा....।

तभी उस  ब्रह्मराक्षस की आवाज उन शैतानों के कानों में गूँजी।

हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा...।

आज मेरी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। इस भयानक काली अमावस्या की रात्रि में हम इनकी बलि चढ़ा देंगेl उसके बाद सारे विश्व में, हमारी इस अगोचर की दुनिया में, अभूतपूर्व जादूगरी की विजय मानी जाएगी। तब मुझे कोई भी नहीं जान पाएगा, पाएगा, कि मै दानव हूं, की मानव हूं।

हा हा हा हा हा हा हा हा ह...।

एक दिन ऐसा समय आएगा कि मैं सारी दुनिया पर राज्य करूंगा चाहे वह गोचर हो या फिर अगोचर हो, हा हा हा हा हा हा...। हम अपना मनचाहा कार्य करेंगे, हमें कोई नहीं रोक सकता।  

हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा...।

वह बड़ी ही कुटिलता से बोले जा रहा था।

बेटी शशि और  बेटे  राघवेंद्र, तुम दोनों एक दूसरे की बाहों को अपनी अपनी बाहों में भरकर, सर को झुकाये हुए खड़े हो जाओ।

जिससे कि मैं तुम दोनों की गरदन एक ही झटके में धड़ से अलग कर दूं।

इतने में दौड़ी दौड़ी वहां, हजारों शैतानी आत्माएं, नाचती कूदती कौतूहल करती हुई, उन्हे चारों तरफ से घेर लेती हैं।

राघव और शशिकला अपने-अपने गरदन को झुकाए हुए, एक दूसरे की बाहों को पकड़े, एक जगह स्थिर हो खड़े हो जाते हैं। तथा वहीं कुछ दूरी पर , धुम्रा राक्षस के तमाम साथी गण भी, जो ब्रह्मराक्षस के प्रभाव से भेड़ बकरियां और बैलें बने हुए थे।

वे सब भी वहीँ आकर एक स्थान पर इकट्ठे होकर,अपने नेत्रों में,  अश्रु धारा भरे, चुपचाप एक दूसरे को देखते हुए सर लटकाए खड़े हो जाते हैं।

तभी वहां, धीरे-धीरे बे मौसम हवाएं चलने लगते हैं, साथ ही साथ धुओं  का सैलाब भी आसमान में स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगता है। इधर, ब्रह्मराक्षस ब्राह्मण के ऊपर भयानक आवाज में चिल्लाया।

अरे मूर्ख....! मंत्र उच्चारण क्यों रोक दिया, तेरा दिमाग तो सही है। देवी के श्री चरणों में बलि देने का श्लोक तो शुरू कर। हा हा हा हा हा हा हा हा...।

ब्राह्मण उसका क्रोध देखकर थर थर कांपने सा लगा, वह धीरे धीरे डरते हुए बोला।

म मेरे आका, "ये" बे मौसम हवाएं कैसे चलने लगी। और यह धुआं धुआं जो दिख रहा, यह सब क्या है।  म मुझे तो बड़ा डर लग रहा है कहीं अनहोनी की संभावना तो नहीं बन रही। कहीं वह दुश्मन तो नहीं...।

इतना सुनते ही वह ब्रह्मराक्षस घबराया, तत्पश्चात ही वह अपने हाथ में लिया हुआ तलवार राघव और शशि के गर्दन पर जैसे ही चलाना चाहा, मगर ये क्या...?

वह तलवार अचानक ही उसके हाथ से छूटकर हवा में लहराती हुई पता नही कहाँ विलीन हो गई। साथ ही साथ जितनी भी वहां माया शक्ति थी। क्षण मात्र में ही विलुप्त सी हो उठी। धीरे-धीरे वहां की सारी शैतानी आत्माएं, घर महल वैवाहिक कार्यक्रम की महिलाएं दानव राक्षस शैतान सब के सब भूत प्रेत गायब हो गए। किंतु वहाँ पहले से ही  बैठी भेड़ बकरियां और बैलें जो थी, वह सब के सब धूम्रा राक्षस के वफादार साथी थे। जो देखते ही देखते अपने असली रूप,में.... यानी की राक्षस रूप में आ गये। किंतु वहाँ, पलक झपकते ही  ऐसा बदलाव हुआ, जिसे आप अद्भुत चमत्कार भी कह सकते हैं। पालछिन् मात्र में ही वहां की सारी भीड़ भरी उत्सव लीलाएं। ऐसे गायब हो गई जैसे की गधे के सर से सींग गायब हो जाती है।

अब वहां राघव और  शशि के अलावा अन्य  तीन,और, मानव प्राणी थे।  इनके अलावा वहां सिर्फ इकलौता टोनी पहाड़ था.. ..राघव शशि की भाँति वे तीनों भी, उनसे कुछ दूर हटकर आकाश में तैर रहे एक बलिष्ठ राक्षस को देखे जा रहे थे। जो ब्रह्मराक्षस को अपनी भुजाओं में कसकर दबोचे हुए एक गोलाकार परिधि बनाये गिद्धों की भांति वही चक्कर काट रहा था। वह और कोई नहीं था, बल्कि वह धूम्रा राक्षस था। जिसके बाहु पास मे जकड़ा हुआ ब्रह्मराक्षस दर्द के मारे छटपटा रहा था.. चिल्ला रहा था। उसके बलिष्ठ भुजाओं में फंसा हुआ वह तड़प रहा था।

वह धूम्रा राक्षस गिद्धों की भांति आकाश में  मंडराता हुआ  उससे कठोर वाणी में गरजते हुए चिल्ला रहा था...।

अरे मूर्ख, तेरा नाम ब्रह्मराक्षस कैसे पड़ गया?  ब्रह्मराक्षस का  मतलब जानता है। नीच, नरभक्षी,दूषित विचारधारा का जीव, नर पिचास,अधम, बोल तेरे साथ, मैं कैसा व्यवहार करूं...?

म.. मुझे  छोड़ दीजिये,। 

वह चिल्लाया।

म..मुझे क्षमा कर दीजिए...ऐसे मुझे मत मारिए....आह आह आह....मेरी और आपसे कोई दुश्मनी नहीं है। आप कहें तो मै यह टोनी पहाड़ भी सदा सदा के लिए छोड सकता हूँ, कहीं अन्यत्र स्थान पर जाकर बस  सकता हूँ ।  किंतु....किन्तु.....मुझे इस अनंत आकाश में ऐसे तड़पा तड़पा कर मत मारो...म..मुझे यहाँ...ब..बहुत डर लग रहा है...।

वह ब्रह्मराक्षस धूम्रा राक्षस के बाहुपास मे जकड़ा हुआ चिल्ला रहा था.. रो रहा था..असहाय प्राणियों की भांति गिड़गिड़ा रहा था। किन्तु धूम्रा राक्षस उसके दर्द को समझते हुए भी,नजर अंदाज करके बोला.......।

तुमने अपने जीवन में ऐसा कौन  सा भला  काम किया है, जो मैं तुझ पर तरस खाकर,सहानु भूति दरसाऊँ...। तुमने तो अपने जीवन में निर्दोष प्राणियों के ऊपर, अत्याचार ही  किया है, उनकी जिंदागी से खिलवाड किया है उनके जीवन में मीठे जहर का प्रयोग करके उनकी जिंदगी ही छिन लिया है।

इसलिए, तुम छमा के योग्य नहीं हो सकते।  तुम जहां से आए हो...अब वही तुम्हें जाना होगा, यहां तेरा रहने का कोई अधिकार नहीं...। तू...जा...जा...वहीँl ...जा...उस बंगाल की खाडी मे जा।

जहाँ  से तू आया था...अब वही जा।

इतना कहते ही वह धूम्रा राक्षस, चार से पांच किलोमीटर की ऊचाई से, धक्का देकर उसे बडी तीव्र गति से किसी गेंदे की भांति हवा में पूर्वी दिशा की तरफ उछाल दिया...... । किन्तु ये क्या...?  ब्रह्मराक्षस...पुनः बिना एक पल गंवाए, हवाओं में कलाबाजी खाता हुआ, धूम्रा राक्षस के सर के ऊपर मंडराने लगा। वह जोर-जोर से अट्टहास करता हुआ गुस्से में  चीखा...।

हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा..... धुम्रा...। मैं मनुष्य नहीं हूं...न  ही मैं जादूगर हूं..... हा हा हा हा हा हा हा हा..... तुमने मुझे पहचानने में देरी कैसे लगा... कैसे लगा दिया।  मैं तो राक्षस हूं... राक्षस...। हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा....। मै  वहीं राक्षस हूँ, जिसको सम्मान पूर्वक यह दुनिया ब्रह्मराक्षस के नाम से पुकारती है! जो तुम हो वही मैं हूं अर्थात तुम्हारी बिरादरी का हूं......। हा हा हा हा हा हा हा हा हा.... मैं ब्रह्मराक्षस हूं...ब्रह्मराक्षस । ब्रह्मराक्षस.... ब्रह्मराक्षस.... हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा....। धुम्रा... तुम यहां से चले जाओ, तुमसे हमारी कोई दुश्मनी नहीं है तुम अपने पांड्या पहाड़ पर रहो और हम अपने इस टोनी पहाड़ पर रहते है। 

ब्रह्मराक्षस की आवाज में अब भी लचीलापन था, किंतु उसकी जिद थी कि मैं अपने इसी टोनी पहाड़ पर रहूं।इसके लिए चाहे मुझे युद्ध ही क्यों करना पड़े।    ब्रह्मराक्षस की वापसी देखते ही धुम्रा राक्षस को आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। वह गुस्से में लाल पीला होते हुए चिल्लाया...।

मूर्ख..... तुझे तो मैं बंगाल की खाड़ी में फेंका था किंतु यहां तुम बचकर कैसे  वापस आ गया  । ब्रह्मराक्षस ने ठहाका मारते हुए चिल्लाया...।

हा हा हा हा ह हा हा हा हा हा हा हा हा....  तुझे इतना भी नहीं मालूम, कि मै कैसे वापस आ गया।

हा हा हा हा.... क्योंकि मैं सर्व शक्तिमान हूं मेरा नाम ब्रह्मराक्षस है मैं पिचासों का पिचास, और शैतानों का, शैतान हूं । भूत प्रेतों का बादशाह और  दुश्मनो का काल हूं.... हा हा हा हा हा ह....। इसलिए अब भी कहता हूं कि तुम अपने स्थान पर चले जाओ और हमें यही टोनी पहाड़ पर रहने दो।  तुमसे हमारा कोई बैर भाव नहीं है, यदि मेरी बात नहीं मानते तो तुम मुझसे युद्ध कर सकते हो।

धुम्रा राक्षस, आग बबूला होते हुए चिल्लाया..।

अरे दुष्ट...! मैने तुझे ठीक से समझा नहीं, वास्तव में तू नीच प्रजाति का महामूर्ख शैतान है... तू नीच है अधम है। इसीलिए तेरे रोम–रोम से दुर्गंध आती है।  तू कामी कुटिल और व्याभीचारी है, तू मेरी दृष्टि के सामने से हट जा....अन्यथा....।

धुम्रा राक्षस की एक-एक वाणी जैसे मुख से चबाई गई हो। वह अनवरत बोले जा रहा था।

अरे नरभक्षी, पैचाशिक् आत्मा, नर देहों का रुधिर पीने वाले, तुम ब्रह्मराक्षस कैसे बन गए? ब्रह्मराक्षस तो सदा ही  न्यायिक होते हैं, उनकी सोचें पूर्ण सकारात्मक और शाकाहार होती हैं, वे किसी को सताती नहीं है l वे किसी का रक्त नही पीती। वे किसी को अनायास परेशान नही  करती। वे धार्मिक  होती हैं। उनकी कर्तव्य परायणता प्रकृति के अनुकूल होती है।  ब्रह्मराक्षस सदा ही ईमानदार और कर्तव्य निष्ठ होते हैं, वे अपने वचनों के पालक होते हैं। किंतु अफसोस... इतने गुणों में भी, तुम्हारे पास एक भी गुण नहीं है। जिसे हम तुम्हे ब्रह्मराक्षस कह सकें। तू ब्रह्मराक्षस नहीं, एक घिनोना आदमखोर राक्षस है, घिनोना शैतान है तू । अब तू निश्चित ही मेरे लिए दंड का पात्र बन चुका है,  तेरा संहार करना ही मेरे लिए अब मेरा कर्ताव्या बच चुका है..... ।

की तभी एक तेजधार आयुध से, ब्रह्मारक्ष...ने...धूम्रा राक्षस के ऊपर अचानक तीव्र गति से प्रहार कर दिया, किन्तु ये क्या...? धुम्रा राक्षस ने खिसियाकर, उसके आयुध प्रहार को अपने हाथों से लपक लिया, और फिर पलक झपकते ही उसी का आयुध उसी के ऊपर चला दिया, वह चूका, इससे पहले की वह इस भयानक कटार से बच पाता, कटार सीधे उसकी छाती में प्रवेश करती हुई उसके आर पार हो गई। वह ब्रह्मराक्षस वही असीम पीड़ा से छटपटाते हुए चिल्लाया, की तभी धूम्रा राक्षस बिना एक पल गवाएं, उसके ऊपर छलांग लगा दिया। इसके पहले की वह कुछ समझ पाता, ब्रह्मारक्ष उसकी बलिष्ठ भुजाओं में कैद हो चुका थ ।

वह असीम दर्द से छत्पटाया, गिड़गिड़ा कर रोते हुए बोला...।

म...मुझे छोड़ दो.... म...मै आपको वचन देता हूँ। मै इसी छन इस स्थान को छोड़कर किसी अन्यत्र स्थान को चला जाऊंगा। फ़िर दुबारा लोटकर कभी नहीं आऊंगा।

इसलिए म...मुझे छोड़ दो...।

नहीं.. नही, इस बार मैं नही छोड़ सकता तुझे...।

धुम्रा राक्षस ने गरजते हुए कहा...।

लेकिन तू घबरा नहीं,  इस बार तुझे बंगाल की खाडी में नही, बल्कि तुझे काशी में काल भैरव के पास भेजूंगा।

जहाँ तेरी सदा–सदा से लिए मुक्ति हो जायेगी। ये....ले..।

 कहते ही वह , तत्क्षण ब्रह्मराक्षस को, वराणसी के काशी घाट उत्तर प्रदेश की तरफ हवा में उछाल दिया।

Nagendra Bahadur bharatiy विचित्र दुनिया उपन्यास भाग 7



आवाज: नागेन्द्र बहादुर भारतीय यूट्यूब चैनल Author Kedar 

बुद्ध ने कहा है कि....

प्राण हर एक जीव में समान है। जब हम किसी को मारकर उसके शरीर को भोजन बनाते हैं, तो यह केवल हिंसा नहीं, बल्कि उस दया और करुणा का हनन है, जिसे जीवन का आधार कहा गया है। ऐसा कर्म हमें उस अंधकारमय मार्ग की ओर ले जाता है, जहाँ ब्रह्मराक्षस जैसी विकृत आत्माएँ भटकती हैं।

राघव का सफर अब और भी रहस्यमय हो चुका है। क्या वह इस विचित्र, भूत-प्रेतों से भरी दुनिया से बाहर निकल पाएगा?

क्या वह अपनी असली दुनिया में लौटेगा—जहाँ उसके लोग, उसकी यादें और उसका अकोढापुर गांव उसका इंतजार कर रहे हैं?

इन सवालों के उत्तर छिपे हैं विचित्र दुनिया – भाग 8 में।

आपके विचार हमारे लिए अनमोल हैं—

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                    ।।जय हिंद, जय भारत।।

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