उपन्यास: विचित्र दुनिया 2025 भाग–6|The Brahmarakshas turned all the ghostly spirits into animals.

जादूगर सभी प्रेत आत्माओं को जानवर बना रहा है
जादूगर सभी प्रेत आत्माओं को जानवर बना रहा 

















The Brahmarakshas turned all the ghostly spirits into animals.|ब्रह्मराक्षस ने सभी प्रेत आत्माओं को जानवर क्यों बनाया..?




जिसे सच्चाई समझ बैठे थे हम।

वो तो  एक भ्रम जैसा था...।।

और जो सपना जैसा  लगता था।

वो शायद हकीकत था या विचित्र दुनिया।।

नमस्कार

दोस्तों केदार नाथ भारतीय द्वारा रचित उपन्यास विचित्र दुनिया उर्फ राघव की यात्रा में आपका स्वागल है आपने भाग 1 से लेकर पांच तक यदि कहानी को नहीं देखा तो आप बहुत बड़ी भूल कर रहे हो आपको ये मालूम नहीं चलेगा कि राघव को कैसे पता चला उसके गांव में भूकंप आया है। और जब वह वहां पहुंचा तो सब कुछ बदल चुका था अचानक गिद्ध उसे आकाश में ले जाते हैं जब राघव गिद्धों के चंगुल से छूटता है तो वह ऐसे जगह गिरता है जहां उसे शशिकला नाम की एक सुंदर लड़की से मुलाकात होती है चलिए देखते है शशिकला और राघव एक ऐसे जादूगर के जाल में फंस चुके हैं जहां से निकलना नामुमकिन लग रहा है चलिए शुरू करते हैं विचित्र दुनिया उपन्यास का अगला भाग 6

दो महीने बाद .......। वह अति विशाल, विराट, गगन चुंबी के समान स्वच्छ विस्तार लिये, एक दुर्गम एवं भाव पूर्ण रस में डूबा हुआ,विशिष्ट  मनोहारी  पहाड़ था । इतिहास के पन्नों में वह पांड्या पहाड़ के नाम से सुविख्यात था । देखने में वह अलौकिक था , हजार हजार किलोमीटर दूर-दूर तक, वहां एक भी पहाड़ नही था, वह स्वयं में इकलौता और स्वाभिमानी पहाड़ था । उसके तराई भूभाग में चारों तरफ से वन क्षेत्र का सघन विस्तार था, पहाड़ के निचली सतह में कुछ ऐसी ऐसी भयानक सुरंगे थी।  जिसे एक बड़ा सा गांव कह  लेना अतिशयोक्ति नहीं होगा। पहाड़ के अंतिम  उच्च शिखर पर ,भगवान शिव की एक पुरानी किंतु दुर्लभ मंदिर थी।

जिसकी पूजा अर्चना धूम्रा  राक्षस अपने साथियों संग किया करता था,वह बड़ा ही धार्मिक विचार का था।  उसी  सुरंग में वह सत्य धर्म का पुजारी न्याय प्रिय एवं कुशल  शासक के रूप में रहता था। जिसकी राक्षस लोक में एक सार्वभौमिक ,अटूट  धर्म सत्ता का साम्राज फैला था। धूम्रा राक्षस के बनाये हुए कुछ ऐसे ऐसे सिद्धांत थे। जिसे मील का पत्थर कह लेना अनुचित नहीं होगा। उसके सिद्धांत के अनुरूप यदि कोई भी राक्षस जाति,किसी भी मानव प्राणी के ऊपर, अत्याचार अनाचार और दुराचार करता है, अनायास ही उसे मानसिक क्षति पहुँचाता  है, अधर्म और अन्याय करता है, तो यह धूम्रा राक्षस, उससे युद्ध करके, उसे परास्त करता है और उसको उचित दंड देता है।

इसके लिए चाहे जो भी परिणाम उसके सामने आ जाये। यहां  पर धूम्रा राक्षस  को मानव जाति  के लिए, एक फरिश्ता कह लेना, निश्चित ही  सर्वश्रेष्ठ बात होगी।  वह हजार कल्पों से इस राक्षस योनि की प्रताड़ना से ऊब चुका था, अब वह अच्छा और नेक सत्कर्म करके सीधा बैकुंठ लोक के मार्ग पर जाना चाह रहा था। जिससे इस योनि से उसे शीघ्र ही छुटकारा मिल सके इसीलिए वह अपने साथियों सहित स्वयं धार्मिक शतपथ का अनुसरण कर रहा था उसकी मुक्ति का भी समय अब निकट था। अतः वह सदैव ही नित्य प्रति अपने साथियों को न्याय आन्याय की खोज में सदा ही उस पहाड़ के चारों दिशाओं में भेजा करता था। लेकिन आज...। आज उसे दो सप्ताह से कहीं ज्यादा का समय हो गया है उस दरिंदे को ढूंढने में, जिसने उसके पहाड़ की तराई से एक घायल व्यक्ति को  किसी मानव कन्या के हाथों उठवा कर उसे अदृश्य पहाड़ पर ले जाकर रखा था, वह कोई राक्षस  नहीं था।  न ही वह कोई दानव था, वह तो सिर्फ, सिर्फ एक नरभक्षी, नर पिचास था..। किंतु  वह , जादूगरी का सबसे बड़ा सम्राट था।

उसके सामने जब भी कोई दुश्मन जाता तो वह उसे भेड़ बकरियां बना देता और कुछ ही दिनों में उन्हें वह खा जाता । वह इसी ढंग से टोनी पर्वत पर रहकर अपना अधिकार जमाए हुए था । लेकिन धूम्रा  राक्षस को उस युवक मानव के विषय में अब भी याद है, जब उसके पहाड़ के निचले हिस्से में वह घायल अवस्था में गिरा था। तो उसके शरीर से पूरे राक्षस जाति को, एक जीवित मनुष्य  होने की उपस्थिति की गंध आई थी।

तभी से धूम्रा राक्षस के सभी साथी उसे ढूंढने में लगे हुए थे, लेकिन आज,  आज वह,  धूम्रा राक्षस, जो विशाल शरीर का लंबे लंबे बाल व दाढ़ी मूछें काले सघन निराले थे, वह अपने सभी साथियों के बीच एक विकराल रूप धारण करके भयानक ढंग से गरजते हुए दहाड़ा था।

मूर्खों, मैं अपने ज्ञान योग के मंत्रो के प्रभाव से उसे देख रहा हूं कि वह दुष्ट कहां रहता है। किंतु मुझे इस बात का अफसोस है की बिना हमारे तुम सब कोई भी कार्य अपनी पूर्ण निष्ठा से नहीं कर पाते हो...। मेरे साथियों, तुम सब यह भली भांति जानते हो कि जब भी  मैं भ्रमण पर रहता हूं तो उस समय मेरे साथ धुओं का काला बादल और आंधी तूफानों का सैलाब उमड़ा रहता है...। एक दिन मैं , बिना बताएं तुम सभी को , उस टोनी पर्वत पर पर्यटन करने  के लिए चला गया था, उस समय मुझे विलंब हो रहा था लेकिन मेरे नथुनों में किसी मनुष्य के होने का वहां गंध टकराया था । मेरा मन चाहा था कि मैं वहाँ रुक कर उस असहाय मनुष्य का  पता लगाऊं, जो  उस दुष्ट जादूगर के कब्जे में है किंतु समय के अभाव के कारण मैं ज्यादा समय तक वहां नही ठहरा ।

तत्पश्चात मंडल नाम का एक राक्षस बड़ी हिम्मत करके धूम्रा से पूछा था।

स्वामी उस दुष्ट नरभक्षी का नाम बताइए इस समय वह कहां मिलेगा, क्या वह टोनी पर्वत पर ही है या फिर और कहीं, अपने ध्यान योग से उस दुष्ट का पता लगाएं,  हम सब अभी इसी क्षण , उस स्थान पर जाएंगे जहां आप बताएंगे ,और हम सब मिलकर उसे बंदी बनाकर आपके सामने प्रस्तुत करेंगे।

वहां की सारी राक्षस भिड़े एक साथ गर्जना करती हुई अपने साथी मंडल राक्षस के विचारों पर सहमति देते  हुए कोलाहल मचाने लगे धुर्मा राछास् सभी की समवेत अखंड गर्जना सुनकर भाव विभोर सा हो उठा, वह सभी को शांत कराते हुए बोला।

आप सब कुछ छड़ रुकें, हम मंत्रों योग से उसका अभी पता लगते हैं

इतना कहते हुए धूम्रा राछास् अपने दोनों नेत्र मूंद कर वही बैठ जाता है तत्पश्चात कुछ क्षण बाद वह अपनी दोनों आंखें खोलते हुए बोला।

साथियों उसका नाम ब्रह्मराक्षस है वह कर्म से हीन पूर्ण नर पिचास है वह मनुष्य होकर भी मनुष्य को खाता है वह नरभक्षी है उसके संरक्षण में तमाम जीवात्माएं उसकी देखभाल करती हैं, इस समय शशि कला नाम की एक मानव कन्या और उसके साथ में एक वहीं युवक जो हमारी पहाड़ियों के नीचे तराई भूभाग में अचेत गिर पड़ा था,उसका नाम मानव कुल से,राघव राय है उसकी आत्मा सृष्टि लोक में भ्रमण कर रही है । राघव राय नाम के उस नवयुवक से शशि कला नाम की कन्या के साथ उसका विवाह होने वाला है किंतु अमावस्या की काली अर्ध रात्रि में विवाह होने से पहले उस राघव नाम के युवक की बलि दी जाएगी और फिर उसका मांस भक्षण किया जाएगा,शादी तो उसका एक बहाना है । इसलिए मेरे साथियों... वहां  जाओ, अति शीघ्र ही वहाँ जाओ, उसदुष्ट को बंदी बनाकर यहां लाओ, क्योंकि अब वहां उत्सव की तैयारियां शुरू हो गई है।

अचानक वहां समवेत अखंड गर्जना का कोलाहल मच गया।

हम तैयार हैं, हम तैयार हैं, हम तैयार हैं।

वहाँ सभी मानव भेष में रंग-बिरंगे परिधान पहने , चहल कदमी करते हुए नजर आ रहे थे। कहीं कहीँ ढोल ताशे और नगारें भी बज रहे थे, नाच गाने भी हो रहे थे। तो कहीं-कहीं पटाखे भी फूट रहे थे। यह उत्सव का तीसरा दिन था। सभी मस्त थे सभी अपने आप में मगन थे, किंतु वहां कोई किसी से ज्यादा बातें नहीं कर पा रहा था । राघव भी सज–धज कर रंग-बिरंगे लाइटों के बीच, एक कमरे में मखमली बिस्तर पर बैठा हुआ शशि कला का इंतजार कर रहा था। शशिकला उस विशाल भब्य भवन के मध्य वाले कमरे में ,सजने सवरने के लिए अनेकों युवतियों के साथ अभी-अभी कुछ समय पहले ही वहा गई थी। शशिकला एक सुंदर सी गुलाबी रंग की  साड़ी पहने हुए,  दर्पण के सामने श्रृंगार रत मुस्कुरा रही थी।

उसकी सेवा में सारी युवतिया उसके आगे पीछे दाएं बाएं लाल लाल रंग की चुनरी पहने हुए , आभा मय श्रृंगार में दमकती हुई किसी गीत को गाए जा रही थी  । किंतु उनका  गाया जा रहा  गीत, शशिकला को बिल्कुल भी पसंद नही था , पसंद आये भी कैसे, जब गीत ही निर्थक हों...।  फ़िर भी उनका साथ देने के लिए वह मजबूर थी, ताकि उन युवतियों का दिल न टूटे  । तभी उनमे से एक वृद्ध महिला , चुपके से बाहर निकलती हुई सीधा राघव के कमरे में पहुँची।

ब—बेटा, तुम यहाँ से जितनी जल्दी हो सके बाहर निकल जाओ, फिर दुबारा लौटकर यहाँ कभी भी मत आना। क्योंकि, यह स्थान तुम्हारे रहने योग्य नहीं है।  यहाँ सब भूत आत्माएं रहती है। भागो...भागो। यहाँ से भाग जाओ बच्चे।

उसकी घरघराती हुई आवाज सुनकर राघव को जैसे सांप सूंघ गया, वह भय से कापते हुए बोला।

भ–भूत भूत, क–क्या। कहा.... यहाँ सभी भूत हैं। त–तुम,  तुम...कौन हो। क–कहीं तुम भी तो भूत नही हो । और। म–मेरी शशि।  क्या मेरी शशि भी भूत है ।

शशिकला और तुम्हारे अलावा यहां सब भूत है इसलिए यहां से शशि को लेकर तुम भाग जाओ।

राघव इससे पहले की कुछ कहता, वहां अनेकौं स्त्री आत्माएं आकर उस बुढ़िया को पकड़ कर वहां से घसीटते हुए बाहर की तरफ लेकर चली जाती है। तत्पश्चात शशिकला दौड़ती हुई राघव के पास आकर बैठ जाती हैं। और उससे कहती है..। 

क–क्या हुआ राघवेंद्र आप बहुत घबराए हुए  हैं,

राघव अचानक खड़ा होते हुए शशि कला को अपने सीने से लगाते हुए भयभीत स्वर में बोला। 

शशि.. शशि।  ए एक बुढ़िया अभी यहां मेरे पास आकर मूझसे बोल रही थी। की, कि मेरे और शशि तुम्हारे अलावा , यहां सब भूत  प्रेत  हैं।  क–क्या यह सच है ।

शशिकला राघव को अपने से अलग करती हुई बड़े प्यार से समझाते हुए बोली।

यह सब झूठ है, बकवास है, वह बुढ़िया आपसे झूठ बोल रही थी, ऐसा यहाँ कुछ भी नहीं है । जरा सोचें, आप यहां हमारे बाद आए हैं, मैं यहां बचपन से ही हूं मुझे कुछ भी ऐसी चीज यहां देखने को नहीं मिली, जिसे मैं आश्चर्य से उसे भूत प्रेत कहूं, यदि आप भूत प्रेत में विश्वास करते हैं तो उस बुढ़िया के विषय में हमें और पता लगाना चाहिए, कि ऐसा वह क्यों बोली। किस कारण से बोली थी।

कि तभी उन दोनों के कानों में,मर्मांतक चीखे सुनाई पड़ी, वे दोनों शीघ्र ही बाहर की  तरफ लपके।

हा, हा, हा,हा, हा, हा,हा!

भवन के बाहर जोर-जोर से   कोई अट्टहास कर रहा था, अट्टहास करने वाला कोई और नहीं, बल्कि वह ब्रह्मराक्षस था जो बड़ी निर्दयता से, उस बुढ़िया की पिटाई करते हुए चिल्ला रहा था।

हरामजादी, उस युवक से तुम क्या बतला रही थी बता,  ह हा हा हा हा। बता मुझे भी बता। नहीं  तो तुझे इसी चाबुक से मार मार कर, तेरी चमदियाँ उधेड़ दूंगा ।यही ढेर कर दूंगा तुझे।

  न  नहीं  नही  नही  म  मुझे मत मारो।

वह बुढ़िया पता नही अपने किस भाषा में गिड़गिड़ा रही थी, रो रही थी,तड़प रही थी,दर्द के मारे छटपटा रही थी कराह रही थी । राघव उस बुढ़िया को देखते ही तुरंत पहचान गया  और वह शशिकला को अपनी बाहों में भरते हुए धीरे से बोला। यह वही बुढ़िया है जिसने हमें बताया था कि यहां सब भूत है। तुम और शशिकला ही दो ऐसे मानव हो जो भूत नहीं हो।    बाकी के सब भूत आत्माएं है यहां।

राघव और शशिकला दोनों ही उसके खूंखार हंसी से भयभीत थे..। किंतु, वह हँसे जा रहा था।

हा हा हा हा हा हा,! हा हा हा हा हा हा हा हा!

हंसते-हंसते ही उस  बुढ़िया को बड़ी निर्दयता के साथ पीट भी जा रहा था, बुढ़िया जोर-जोर से चिल्ला रही थी, वह तड़प रही थी वह दर्द से बिलबिला रही थी,  फिर भी उस कसाई को लेसमातृ भी उस बुढ़िया पर दया नही आ रही थी, वह उसे जानवरों की तरह पीटे ही जा रहा था। राघव उस बुढ़िया की ओर देख देखकर तरस खा रहा था।

 

शशि..।शशि..। तुम देख क्या रही हो प्लीज,  उस बुढ़िया को जाकर  बचा लॉ... न,  नहीं तो वह तेरा बाबा।  उसे जान से मार डालेगा। देखो ना , वह बेचारी  कैसे छटपटा रही है। वह हमारी ही तरफ देख रही है उसे जाकर बचाओ प्लीज, तुम्हारे बाबा, कितनी बेरहमी से,चाबुकों से पीट-पीट कर उसकी चमड़ीया उधेड़ रहे हैं, और तुम, तुम हो की यहाँ खड़ी-खड़ी उसका मुह देखे जा रही हो।

क्या तुम्हें उस पर दया नहीं  आती।

राघव की याचना को नजरअंदाज करते हुए शशिकला ने कहां...।

राघवेंद्र । अभी वहां जाना उचित नहीं है यदि यहां सब भूत है और बाबा भी हमारे भूत हैं तो हमें यही से देखना होगा की एक भूत दूसरे भूत पर किस ढंग से अत्याचार करता है प्लीज अभी शांत रहो हम यहां से उस भूत का पता लगाना चाहेंगे जिस भूत के विषय में यह मार खाती हुई बुढ़िया आपको बताई थी । यदि हम इसमें थोड़ा सा भी जल्दबाजी करते हैं तो भूत सतर्क हो जाएगा और हम उस भूत के विषय मैं कुछ भी जानकारी नहीं ले पाएंगे। इसलिए यही चुपचाप शांत खड़े रहे । आगे क्या होता है, यही से देखना है हमें ।

राघव ने शशिकला की बात बड़े ध्यान से सुनकर चुपके से बोला।

शशि, आप बहुत ही बुद्धिमान हो, ठीक है हम दोनों यही से छुप कर देखते हैं । राघव और शशि कला दोनों बड़े होशियारी से एक ऊंचे टीले के नीचे शांत होकर चुपचाप बैठ जाते हैं । तभी उन दोनों के कानों में ब्रह्मराक्षस की भयानक गर्जना सुनाई पड़ी।

हा हा हा हा हा हा हा!  क्यों रे दुष्ट आत्मा तुमने क्या समझ रखा है की जो कुछ भी तो करेगी या किसी से कुछ कहेगी मुझे उसकी खबर तक  नहीं लगेगी।  हा हा हा हा हा हा हा हा।

चाबुक से मारते हुए।

तेरी भूतनी की। ए  ले, अब मै तुझे क्या बनाता हू देख। ओम मायाये नमः, ओम मायाए नमः, ओम  मायाए नमः,ओम भेड़ भेड़ भेड़ स्वाहा, ओम भेड़ भेड़ भेड़ स्वाहा, ओम भेड़ भेड़ भेड़ स्वाहा।

परंतु ये क्या। देखते ही देखते वह बुढ़िया भूतनी भेड़ बन गई , अद्भुत आश्चर्य और अविस्मरणी। वह ब्रह्मराक्षस बड़ी तेजी के साथ हँसा।

हा हा हा हा हा हा हा हा ।  क्रोध में उसका चेहरा तम तमाया हुआ था, उसकी दोनों आंखें खून से सनी हुई थी वह म्यान से तलवार निकालते हुए दहाड़ा। 

हा हा हा हा! हा हा हा हा हा हा हा!।

अब इसी  छड़ मां कालि के नाम पर इस  मूर्ख आत्मा की बलि चढ़ा  दूंगा।

हा हा हा हा हा हा हा!

वह भेड़ के निकट पहुँचते ही मंत्र का जाप करते हुए तलवार ठीक भेड़  के गर्दन पर चला दिया । एक ही झटके में  भेड़  की गर्दन कट कर ,  धड़ से अलग हो गई  । और फिर वह तेज गर्जना के साथ चिल्लाया।

तुम सब कान खोल कर सुन लो। यदि मेरे साथ किसी ने भी किसी भी प्रकार की चालाकी की या धोखा देने की कोशिश की , तो उसका भी अंत इसी प्रकार से होगा ।

उस  टीले की ओट में छिपे हुए राघव और शशिकला के होश उड़ गये।  राघव ने शशिकला के कान मे धीरे से बोला। शशि देख रही हो, यह भूत है या मानव। देख लो, तुम कहती थी न की, यहाँ कोई भूत नही है, मै कहता हूँ यहाँ कोई भूत हो या न हो किंतु तुम्हारे बाबा अवस्य भूत है।  इसलिए अब हमें यहाँ...। एक पल भी नहीं रुकना चाहिए । चलो यहाँ से। 

डर के मारे राघव का सारा शरीर पसीने पसीने हो गया।

न—नहीं, हम यहाँ से कहीं नहीं जा सकते।

शशिकला ने कहा...।

चूंकि यहाँ चारों तरफ से, बाबा की सहेजी हुई आत्माये, एक एक आत्माओं की पहरेदारी कर रही हैं, आप भूल कैसे गए, हम सभी को बचाने के लिए वह बुढ़िया, हमारे दुष्ट बाबा के हाथों बेरहमी से मारी गई। इसलिए हे  राघवेंद्र,,। हमें यहां से निकलने के लिए खुब सोच समझकर निर्णय लेना चाहिए, अभी बाबा क्या कह रहे है, उसे ध्यान से सुनो...।

  किंतु...। राघव ने शशिकला से कहा, तुम उसे अभी तक बाबा बाबा क्यों कह रही हो, यह जानते हुए भी कि वह राक्षस है । 

प्लीज राघवेंद्र अभी शांत रहो उसके विषय में ऐसे उल्टा सीधा मत बोलो और न हीं उल्टा समझो।

शशिकला समझाते हुए राघव से बोली..।

 

क्योंकि वह मन की सारी बातें जान जाता है इसलिए शांत होकर उसकी बातें सुनो ,  प्लीज इसके आगे अब कुछ भी मत बोलो सिर्फ उसकी बात सुनो बात...।

  ठीक है आप कहती हो तो मैं कुछ भी नहीं बोलूंगा । राघव शांत हो गया। उधर वह ब्रह्मराक्षस अपने कड़े लहजे में, उन ढेर सारी आत्माओं को सख्त चेतावनी देते हुए ललकारा..।

यदि उस बूढ़ी आत्मा जैसी गलतियां फिर किसी ने दोहराने की जुर्रत की तो समझो, उसकी भयानक मौत, भयानक सजा, हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा... ।और साथ ही साथ मेरे दुश्मन भी ध्यान से सुन ले।  जो अभी – अभी कुछ समय पहले ही हमारे इस पहाड़ पर पधारे हैं उनसे हमारी कोई दुश्मनी नहीं है। वे चुपचाप यहां से चले जाए, अन्यथा  उनके लिए भी परिणाम बहुत ही खतरनाक होगा। इसलिए जैसे भी आप सब यहां आए है, वैसे ही सम्मान पूर्वक यहा से चले जाये।  हम आप सबको  वचन देते हैं कि आप सबको किसी भी प्रकार  की हानि नहीं पहुंचाई जाएगी ।

तभी एक भयानक गर्जना उसकी आवाज को दबाती हुई गुर्रा उठी। 

अरे नर भक्षी, नराधम, चुप हो जा, तुम शैतान नहीं एक आदमखोर हो तुम मनुष्यों का खून पीने वाले नर पिशाच  हो, अब तेरा अंत आ चुका है, मूर्ख..!  सावधान, हो जा...!

  इतना कहते ही कई राक्षस हवा के झोंकों की तरह उसकी तरफ दौड़ पड़े...।  तभी वह गुर्राते हुए बड़ी तेजी के साथ अट्टहास करने लगा...।

हा हा हा हा हा हा हा हा....।  हा हा हा हा ...।   अरे मूर्ख अपना विनाश करने पर क्यों तुले  हुए  हो, मैं कोई बच्चों का खिलौना नहीं, जिसे हाथ लगाकर खेलने  लगो,  आओ आओ अब देखो कैसे मजा आता है।

हा हा हा हा हा हा हा हा ।

तब तक अनेकों शैतान  अपने-अपने हाथों में नंगी तलवारें  लिए, हवा में उड़ते  हुए ब्रह्मराक्षस  के उपर टूट पड़े उधर ब्रह्मराक्षस भी आकाश में उड़ते हुए हाथों में तलवार लिए उन सभी पर टूट पड़ता है हवा में ही  हैरतअंगे कलाबाजियां होती चली गई । देखते ही देखते वहां भयानक युद्ध शुरू हो गया एक ब्रह्मराक्षस के स्थान पर सैकड़ो ब्रह्मराक्षस तलवार बाजिया करते हुए दिखाई पड़ने लगे तलवार तलवार की टक्करों  से,  जो चिंगारियां निकल रही थी राघव और शशि कला ऐसे युद्ध को  देख-देख कर घबरा जाते थे।  किंतु जब  उन  राक्षसों से ब्रह्मराक्षस युद्ध करते-करते  थकने लगा तो वह अचानक युद्ध से गायब हो गया  और अदृश्य अट्टहास करने लगा ।  अब  वहाँ उससे  सारे राक्षस, आकाश में  चारों तरफ घबरा घबरा कर  उसे ढूंढने लगे। किंतु उसका काफी समय तक  कुछ भी पता नहीं चल  सका। तब सारे राक्षस क्रोधित होकर उसे अनाप- सनाप  गालियां देते हुए  चिल्लाने लगे,  तभी वह अचानक बादलों की भाँत गरजते हुए आ  पहुंचा। उसके साथ उसी के रूप में अनेकों ब्रह्मराक्षस  पुनः हवा में तैरते हुए, पुनः दिखाई पड़ने लगा।

तत्पश्चात दूर से ही , वह मंत्रोच्चारण करते हुए, उन पर तीव्र गति से फूंक मारने लगा , किन्तु यह क्या...।   वे  सारे के सारे राक्षस भेड़ बकरियां और सूअर जल्दी-जल्दी बनते  चले गए।  एक-एक करके वे सभी  चंद  मिनटों  में ही ऊपर से  नीचे  पहाड़  की ओर गिरते चले गए, अब वहां  वे  घायल जानवरों  की  भाँति अपने अपने  विभिन्न आवाजों  में  जोर-जोर से रोते हुए चिल्लाने लगे।

ब्रह्मराक्षस गरज कर अट्टहास किया।

हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा .....!

इसके तुरंत बाद  ही वह मोहनी मंत्र का प्रयोग करते हुए राघव शशिकला को भी अपने नजदीक बुलाकर उत्सव की तैयारी के विषय में महत्वपूर्ण बातों का इशारा करते हुए गायब हो गया।

सबसे बड़ा भय – भय का भय है। जो इससे मुक्त हो गया, वह मृत्यु से भी मुक्त हो गया।

बुद्ध ने कहा कि "जो देखा नहीं, अनुभव नहीं किया, उस पर विश्वास मत करो।

तो दोस्तों... देखा आपने, कैसे ब्रह्मराक्षस ने पूरे युद्ध का रुख पलट दिया...

राक्षसों को जानवर बना डाला, और अब राघव–शशिकला पर है उसका अगला निशाना।

 "पर क्या वो बच पाएंगे?"

या अब शुरू होगा एक नया, और भी खतरनाक अध्याय...?

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क्या ब्रह्मराक्षस सच में अमर है?

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लेखक — केदारनाथ भारतीय, उत्तर प्रदेश, प्रयागराज से

संपादक — नागेन्द्र बहादुर




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