विचित्र दुनिया भाग 4|Vichitra duniya 4|प्यार या मायावी जाल?|Love or a Magical Trap?
और हर आवाज़ ले चलती है आपको भावनाओं की गहराइयों तक।
कहानियों का यह जादुई सफर अभी शुरू हुआ है…
"अरे! ये क्या ?, पूरी चाय मे खून!" खून की चाय, "No.... नह्ही, ऐसा नही हो सकता!" वह आखिरकार तैस में आकर बोल ही पड़ा— ये चाय! चाय मे खून.... ये कैसी चाय है! म.... ममैं आपकी ये चाय नही पी सकता! बिल्कुल नही पी सकता।
विचित्र दुनिया — एक ऐसी दास्तान, जो आपकी सोच से परे है।
यह कहानी एक आम इंसान की है... लेकिन एक ऐसी त्रासदी से गुज़रने की है, जिसे सुनकर आपकी रूह कांप उठेगी। यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है, लेकिन इसके हर शब्द में एक सच्चाई की झलक छुपी है।
आप जिस कहानी को पढ़ रहे हैं, उसके लेखक हैं — केदारनाथ भारतीय, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) से।
वेबसाइट: www.kedarkahani.in
सरल स्वभाव और समाज की गहराई से समझ रखने वाले केदारनाथ जी ने इस कहानी को उन सच्चाइयों से प्रेरित होकर लिखा है, जो हमें अक्सर नजर नहीं आतीं।
"विचित्र दुनिया" सिर्फ एक "उपन्यास" कहानी नहीं है ! ये एक अनुभव है, जो आपको अंदर तक हिला कर रख देगा। पिछले भागों में आपने सुना —
भाग 1 में, राघव एक फाइव स्टार होटल में बैठा था, जब अचानक उसे अपने गांव में आए विनाशकारी भूकंप की खबर मिलती है। घबराकर वह गांव के लिए निकलता है, लेकिन जैसे ही वह बस से उतरता है, बस रहस्यमय ढंग से गायब हो जाती है।
भाग 2 में, राघव अपने ही गांव को खोजता फिरता है, लेकिन सब कुछ बदला-बदला सा लगता है। तभी सफेद पोशाक में एक देवदूत उसे चेतावनी देता है—"यह स्थान तुम्हारे लिए नहीं है!" और एक और आकृति डर के मारे चिल्लाती है—"मुझे बिना मृत्यु के जीना है!"
भाग 3 में, गिद्ध राघव को आकाश में उठा ले जाते हैं और उसके लिए आपस में लड़ पड़ते हैं। अचानक राघव उनके चंगुल से छूट जाता है और तेजी से गिरता है… एक ऐसी जगह जहाँ कोई इंसान या जानवर नहीं पहुंच सकता।
क्या राघव अब भी जीवित है? या कोई नई दुनिया उसका इंतज़ार कर रही है?
जानिए आगे की रहस्यमय कहानी – सिर्फ़ YouTube ऑडियो चैनल [Author Kedar] पर।
अब सुने आगे की कहानी.......कहानी के आज का शीर्षक है।
"प्यार या मायावी जाल"
राघव ने जैसे ही अपनी दोनों आंखें खोली, वह चौक सा पड़ा । अरे अरे मै कहा हूँ, ममैं तो अपने गाँव आकोडा पुर जा रहा था, यहाँ कैसे आ गया। हे भगवान! वह बिस्तर से उठते हुए कराह कर अपने आप से बोला। यहाँ तो कोई भी नही है । वह चौंकते हुए चारों तरफ निहारने लगा, जहां वह था आश्चर्य से भरा पड़ा था। छोटा सा कमरा, कूड़े करकटो का ढेर, गंदगियों का हुजूम ।भरपूर मकड़ियों की जालायें एव, पक्के टूटे – फूटे फर्श पर कहीं कहीं रक्त की फैली हुई लकीरों में सूखी हुई, काली – काली पपड़ियाँ,जमी हुई थी जिसे देखकर पत्थर दिल को भी उबकाई आने लगे, चारों तरफ बदबू ही बदबू। राघव पुराने व जर्जर तख्त से उठते हुए जैसे ही दरवाजे के करीब होकर बाहर की तरफ जाने की कोशिश किया वैसे ही अचानक वहाँ, एक अपूर्व सुंदरी का आगमन हो आया। वह सुंदरी मुस्कुरा रही थी। राघव, उसे मंत्र मुग्ध सी अवस्था में घूर – घूर कर देखे जा रहा था। उसके सुंदर अधर, बहुत ही खूबसूरत थे। उसकी लंबाई छ फुट तीन इंच के करीब थी। वह गोरी सी मासूम गुलाब रंगो में ढली, चंपा, चमेली और जुहू की सहेली लग रही थी। खुशबुओं की दोस्त एवम जल परियों की पहेली सी लग रही थी। वह मानव स्त्री नही, बल्कि स्वर्ग की कोई साक्षात् अप्सरा थी। उसके रोम रोम से इत्रो की खुशबू आ रही थी। वह सौंदर्य की देवी, आकाश मंडल से नाराज होकर किसी कारण वश धरा पे उतरी हुई छुई – मुई के समान, उषा काल की विभव प्रकाश लग रही थी। वह अद्भुत थी। वह सर्व प्रिय भू जगत निराली थी। उसकी लंबी-लंबी उंगलियां, इस बात की संकेतक थी। कि वह एक कलाकार भी हैलम्बे लम्बे घन केशो से लदी, इठलाती हुई दो मोटी – मोटी कजरारी आँखे,राघव को असहज किये जा रही थी । उसकी सुराहीदार गरदन, लाल रंग की पहनी साड़ी, अति प्रिय लग रही थी। वह देखने में उर्वशी, रंभा, मेनका और मधुबाला से भी नाजुक नरम लग रही थी । राघव के मुख से बोल तक नही फूट रहे थे। ऐसी सुंदरी वह अपने जीवन मे पहली बार देखा था। गजब की सौंदर्य प्रभा जिसकी लंबाई उचाई, द्वापर युग के नर नारियों के समान थी। वह राघव के आगे आकर बल खाती हुई बोली,हे भद्र । आप सोकर कब उठे। उसके स्वरों से जैसे सरगम. सितार के तार झंकृत होउठे हों । उसके मंद मंद मुस्कानों से अमृत के धार टपक रहे हो। उसके तन मन से सम्मोहन का ऐसा आकर्षण उत्पन्न हो रहा था,की कोई भी साधारण पुरुष उसके बस में होकर उसका दास बन जाये और, उसके पीछे पीछे दीवानों की भाँति सदा ही विचरण करता रहे । वह पुनः बोली। हे आगंतुक, हे भद्र। हे मेरे अतिथि। आप ऐसे कहा खो गये। आप बहुत ही सुंदर हैं। आइये....आइए, आप मेरे साथ आइए । वह सुंदर नव यौवना, राघव को अपनी नरम नाजुक बाहों मे भरते हुए बड़े प्यार से अपने होठो को, राघव के होठो पर रखते हुए उसी तख्त की ओर लेकर चल दी,जहा अभी कुछ समय पहले राघव उसी तख्त पर बेसुध सा पड़ा था। आप यहाँ बैठिये, हम आपके लिए, चाय बनाकर अभी लाती हूँ। उस सुंदर सी परी ने राघव से मुस्कुराते हुए कहा, और फिर गुप्त जगह रसोइये की तरफ चली गई। राघव उसे जाते हुए अपनत्व की भावना से देखता रहा। वह सोचने लगा था कि यह स्त्री कितनी खूबसूरत है, इस बियाबान भीषण जंगल में अकेली रहती है या इसके साथ और कोई रहता है अगर यह यहां अकेली रहती है तो इसे डर नही लगता। हे भगवान आप यहाँ हमें कैसे पहुँचा दिये, मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा । मुझे सिर्फ इतना याद है कि किसी पंछी ने हमें अपने पंजो में जकड़ कर, आकाश की ओर लेकर उड़ा था। उसके बाद मुझे कुछ भी नही मालूम कि आगे चलकर मेरे साथ क्या क्या हुआ था । कि तभी वह सौंदर्य आभा मैं दमकती हुई नव यौवना, ट्रे, मे दो कप चाय लेकर आई,और राघव के सपीप होकर बैठे गई। राघव से वह माधुर्य रस टपकती हुई बोली। मेरे प्रियतम, क्या सोच रहे हो, यह लो ताजी-ताजी चाय पियो। राघव हाथ में चाय का कप लिए, अचानक चौंक पड़ा। वह मन ही मन बड़बड़ाया। "मेरे प्रियतम," ऐसा क्यों बोल रही है। राघव बिना कुछ बोले, चाय का प्याला हाथ मे उठाते हुए चाय को बड़े ध्यान से देखने लगा। "अरे! ये क्या ?, पूरी चाय मे खून!" खून की चाय, "No.... नह्ही, ऐसा नही हो सकता!" वह आखिरकार तैस में आकर बोल ही पड़ा— ये चाय! चाय मे खून.... ये कैसी चाय है! म.... ममैं आपकी ये चाय नही पी सकता! बिल्कुल नही पी सकता। राघव गुस्से मे तख्त से उठते हुए बोला। वह आभामय सौंदर्य की प्रतिमूर्ति ,रूपमती, अपने अर्ध मुस्कानों के साथ राघव को किसी बच्चे की तरह फुसलाते हुए बोली। हे , प्राण! आप ऐसे क्यो रूठते हो। यह कोई खून की चाय नही। यह तो जंगली वनस्पतियों की डालियों और उनकी छालियो, तथा पत्तियों के अर्कों से बनाई हुई चाय है । इसे आप निःसंदेह पी सकते है। और हां, फर्क सिर्फ इसमें इतना सा है कि, इन पत्तियों से बनाई हुई चाय थोड़ा खून के रंग की होती हैं बस । राघव, उसकी आवाजों के लय पर, आकर्षित होता चला गया । वह चाय पीते हुए, चाय की प्रशंसा कर बैठा । राघव ने मुस्कुराते हुए कहा था, ये चाय तो बहुत ही लाजबाब है, निश्चित ही आपके हाथों में जादू होगा। चाय की चुस्की लेते हुए वह आगे बोला.... आपका क्या नाम है। आप इस बियाबान जंगल में अकेली कैसे रहती हैं। निःसंदेह आप बहुत ही बहादुर होगी । कृपया आप अपने विषय में हमें कुछ बताएं । अपने विषय में राघव के मुंह से, ऐसी प्रशंसा सुनकर वह सुंदर सी परी गद–गद हो उठी । वह मंद–मंद मुस्कान लेते हुए बोली। हे प्रियवर, मेरा नाम शशि कला है। और मैं यहां इस बियाबान जंगल में अकेली रहती हूँ। "राघव तत्क्षण उछल सा पड़ा !" आप, आप इस बियावान भयानक जंगल में अकेली रहती हैं। आश्चर्य, आश्चर्य है! क्या आपको यहां डर नहीं लगता। नहीं, मुझे यहां बिल्कुल भी डर नही लगता। और हां, जो डर हल्का फुल्का लगता भी था। वह आपके आने से, यूं ही छू मंतर हो गया। वैसे आप मुझे बहुत ही अच्छे लगते हो। वह राघव के होठों पर, अपनी उंगलियाँ रखते हुए बड़े प्यार से बोली थी। जिसे राघव ने उसकी यह चंचल–हरकत स्वीकार करने में, एक पल की भी देरी नही की। और वह उससे बड़े प्यार से बोला था। शशि कला जी, क्या मैं आपसे पूछ सकता हूं। कि इस भयानक बियाबान जंगल में आप कैसे आई। वह हँसती हुई, बल खाती , राघव को अपनी दोनों बाहों में भरती हुई बड़े प्यार से बोली....जैसे कि आप। म..... मै....मैं ओ कैसे। राघव ने उससे हकलाते हुए पूछा था। और वह उसे बड़े ध्यान से देखने लगी ।
राघव को अपने विषय में कुछ जानने की इच्छा सुनकर, वह शशि कला राघव से मुस्कुराती हुई बोली है। प्रीतम, मेरी आकांक्षा सदैव से ही आकाश मंडल में विचरण करने से जुड़ी हुई थी। इसलिए उस दिन मैं, आकाश मे घूमने के लिए चली गई थी कि अचानक जब मेरी नजरें, पृथ्वी की ओर पड़ी तो, मुझे आश्चर्य हुआ की, एक ऐसा कौन सा, सुंदर नवयुवक हैं। जो पर्वतों की तराइयों में जाकर, बेसुध–सी अवस्था में गिरा पड़ा है। मैं वहां से तत्क्षण बिना एक पल गवाये, अविलम्ब यथा स्थान पर पहुँच गई । वहां पहुंचते ही, जब उस सुंदर नव युवक को देखा तो आश्चर्यचकित रह गई । बस एक पल मे ही मैं उस पर मोहित हो गई। और अपना सब कुछ ,उस पर अर्पण कर दिया। तन, मन, दिल, यौवन और रूप सिंगार सारा का सारा न्योछावर कर उसे अपना बना लिया। और फिर, फिर उसे वहां से उठाकर अपने इसी राजमहल मे ले लाई, जो कि आज उसका पांचवा दिन है और वह नवयुवक , सुंदर सा सजीला रूप वाला कोई और नहीं बल्कि, स्वयं आप हों आप। अतः, हे शुभ अतिथि ! आप कौन हो ? आपका शुभ स्थान क्या है ? आप सच–सच बताये। हम आपको आपके, गंतव्य तक पहुंचा देगी। यह आपसे हमारी, सत्य दृढ़ निश्चय संवाद है। राघव की दोनों आँखे आश्चर्यजनक हाल में फटी की फटी रह गई, वह सोचने लगा। आखिर यह सुंदरी हैं कौन? मुझसे क्या चाहती है? कहीं यह कोई देवी तो नही! कोई अलौकिक दिव्य शक्ति तो नही! मै इसे कैसे पहचानू , हे भगवान !मैं क्या करूं ? इस छोटे से घर को, जहा गंदगियो का अंबार लगा हुआ है। इसके आने के बाद स्वर्ग जैसे दिखने लगता हैं। और इसके जाने के बाद फिर से नरक दिखाई पड़ने लगता हैं। और तो और इसी घर को यह इमारत भी कहती है। ऐसा कैसे हो सकता है? जहा कूडो करकटो का अंबार लगा हो और वह छोटा सा घर हो तो, वह कैसे एक इमारत हो सकती है? आश्चर्य है इसकी माधुर्य रस धार बोली में, जो मिश्री घुली हुई हैं वह अद्भुत है, निराली है। अब ये कहती हैं कि आप अपना परिचय बताएं। हम आपको आपके मूल स्थान तक पहुँचा दूँगी। यह मेरा दृ ढ़ संकल्प है। किंतु मै कितना अभागा हूँ, कि इस सुंदरी के सामने, मेरी सारी स्मृतियां विलुप्त सी हो जाती है। मुझे अपने घर के विषय में कुछ भी याद नहीं रहता। और यह जब मेरे सामने से कहीं दूर चली जाती है तो धीरे-धीरे मुझे सब कुछ याद आने लगता है। यह कैसा संयोग है? तभी, वह शशि कला, जो सौंदर्य की देवी थी। वह राघव को झंझोड़ती हुई बोली। अरे आप, आप ऐसे गुमसुम क्यों है? कुछ बोलते क्यों नहीं? आप क्या सोचने लगे? राघव जैसे नींद से जागा हो, वह चौंकते हुए बोला। अरे कुछ भी तो नहीं, मैं तो सोच रहा था कि आप कितनी महान है, इस बियाबान जंगल में रहकर, आप इस जंगल की शोभा बढ़ा रही है । आप यहां अकेली रहती हैं। यह कितने आश्चर्य की बात है। आपके जीवन का इतिहास क्या है? आपका परिचय क्या है? अभी तक आपने अपने विषय में हमें कुछ भी नहीं बताया। मेरी जिज्ञासा है कि आप भी, हमें अपने विषय में कुछ बताएं वह मुस्कुराई, , हे सुभग, हे शिरोमणि, आपको हमने अपना जीवन श्रृंगार चुन लिया है। अपना प्राण आधार चुन लिया है। तो आपसे हमें क्या छुपाना? यदि आप पूछ ही रहे हैं तो सुनिए। सत्य तो यही है कि मैं स्वयं अपने विषय में भी कुछ नहीं जानती। हां मैं इतना जरूर जानती हूं कि मुझे किसी दानव ने, मेरी मां को रात्रि में सो जाने के बाद मुझे उनकी बगल से घोर अंधेरे में उठाकर यहां लाया था। और फिर कुछ – साल तक मेरे साथ रहकर, मेरा लालन पालन किया था। उस समय मेरी उम्र लगभग सात वर्ष की थी। मैं उन्हें बड़े प्यार से बाबा–बाबा कहा करती थी। फिर एक दिन ऐसा आया कि मेरे बाबा भी मुझे इस घनघोर जंगल में छोड़कर हमेशा–हमेशा के लिए कहीं चले गए। आज तक मै उन्हें दोबारा नहीं देख पाई। मैं उन्हें ढूंढने की बहुत कोशिश की किंतु उनका दूर-दूर तक कहीं पता नहीं चला। मैं बाबा को खोजती रही, खोजती रही, रोती रही और तड़पती रही,भूख प्यास से व्याकुल होकर इधर-उधर भटकती रही। किंतु बाबा का कहीं भी पता नहीं चला अचानक उन्हें गायब होने से मुझे बहुत कष्ट मिलने लगे। खाने पीने के लाले पड़ गए। ऊपर से जंगली जानवरों का भय। मैं विवस् थी। मैं रो रही थी। आँखों में आँसुओं की धार लिये, तड़प रही थी। एक दिन तो ऐसा हुआ कि मै रोते रोते बेहोश हो गई। पता नही मै कब तक बेहोश रही। और जब मुझे होश आया, तो मालूम हुआ कि मैं किसी ब्रह्मराक्षस के सामने हूं। और यही ब्रह्मराक्षस मेरे बाबा है। और वह कह रहे थे की बेटा हमारा लोक बदल चुका है हमने तुम्हें अपनी महा शक्तियों से भर दिया है। अब तुम जो कुछ भी करना चाहोगी। वह सब एक पल में कर लोगी। यह मेरा तुम्हारे ऊपर आशीर्वाद है। हे पुष्पेंद्र, तुम्हारे बारे में हमने उन्हें सब कुछ बता दिया है। और वह बहुत खुश थे उन्होंने कहा है। उस युवक से हम तुम्हारी शादी रचाएंगे, इसके विषय मे तुम्हारी क्या राय है? वह अपनी त्रासदी बताते बताते अचानक रुहांसी सी हो उठी। राघव उसकी कथा व्यथा सुन सुन भय भीत होने लगा था। वह घबराने सा लगा था। उसके तन–मन मे हलचल सी पैदा होने लगी थी। वह, स्वयं अपने बगल में बैठी युवती से मौत का आभास करने लगा था। वह डर रहा था। वह धीरे धीरे सोच रहा था कि आखिर ये है कौन? ये मुझसे शादी करने के लिए भी उतावली है। जब ये शुरू – शुरू मे अपने बाबा की याद में और अन्न जल के परिपेक्ष में, रोते-रोते बेहोश हो गई थी, तो शायद उसी समय ये मर तो नहीं गई थी। या फिर इसके बेहोश शरीर को जंगली जानवर तो नही खा गये थे। या फिर इसकी आत्मा भूत तो नही हो गई थी। हे भगवान! क्या वह ब्रह्मराक्षस कोई भूत तो नहीं था? यदि वह भूत था, तो यह कौन है? निश्चित ही यह भी भूत ही होगी। चूंकि इसके अंदर जो भी गुण विशेष है वह किसी चमत्कार से कम नहीं, किसी देवीय शक्ति से कम नहीं। वैसे भी इस घनघोर जंगल में एक मनुष्य का रहना असंभव है। यदि यह मनुष्य है, तो उसका अकेले यहां रह लेना कैसे संभव हो सकता है? राघव उसके विषय में, बार-बार सोचे जा रहा था कि इसमें जरूर कोई राज है, कोई विचित्र सी बात है, विचित्र दुनिया है इसके अंदर। तभी वह शशिकला जो सौंदर्य आभा से परिपूरित थी , रुँधे हुए कंठ से बोल पड़ी। हे देव! मेरा भूतकाल, विचित्र घटनाओ से भरा पड़ा है। जिसे मैं कभी याद नही करती, बस आपके कहने से हमने अपने जीवन का अतीत याद कर लिया, वैसे हे भद्र! आपका शुभ नाम क्या है? राघव जैसे कुछ सुन ही नहीं रहा हो, वह गहरे सोच में डूबा हुआ है कि तभी, वह राघव के गाल पर प्यार से थपकी लगाते हुए बोली। क्या सोच रहे हो? क्या मेरी बात आपको सुनाई नहीं पड़ रहा? मैंने आपसे, आपका नाम पूछा किंतु आप शायद सुन नहीं पाए। बोलिए प्लीज बताइए, आपका क्या नाम है? राघव, वह सपाट लहजे में बोला,था। म–मेरा नाम राघव है, हां सच कहता हूं शायद मेरा नाम राघव ही है।राघव,"राघवेंद्र" बहुत प्यारा नाम है आपका। आज से मैं आपको राघवेंद्र ही कह कर बुलाया करूंगी। क्या आपको यह नाम अच्छा नहीं लगेगा? बोलिए अच्छा लगेगा न, हां–क्यों नहीं, अच्छा लगेगा। राघव ने मुस्कुराने का प्रयास करते हुए बोला और वह फिर सोचने लगा कि अभी मुझे अपना नाम तक नहीं याद था। किंतु अभी ऐसा क्या हुआ कि मुझे मेरा नाम याद आ गया। हे भगवान! मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? वह अपने दिमाग पर जोर देने की कोशिश करने लगा। मुझे अपने घर का पता क्यों नहीं याद आ रहा। आखिर मेरा घर कहां है? मैं इससे कह कर ,अपने घर चला जाऊं, "निश्चित ही मुझे मेरे घर पहुंचा देगी।" वह ऐसा सोच ही रहा था की शशिकला बोल पड़ी। हे राघवेंद्र! क्या आप मुझसे शादी करके मेरे बाबा की इच्छा पूर्ण करेंगे? "ना नहीं, नहीं म.. मैं आपसे शादी नहीं कर सकता! "क्यों नहीं?" "क्या मैं आपको पसंद नहीं?" शशि कला ने कहा ? "पसंद है बहुत पसंद है, किंतु मैं मनुष्य हूं आप... आप.. आप..?" राघव अपनी बात अधूरी छोड़कर चुप हो गया । शशि कला जोर-जोर से हंसते हुए बोली। क्या मैं आपको मनुष्य नहीं दिखती ? कोई राक्षसी दिखती हूं। न... नह्ह्ही.. नहीं... अ... आप आप तो कोई देवी दिखती है। आप इस धरती की नहीं, बल्कि स्वर्ग सै उतरी हुई कोई अप्सरा लगती हैं। आपसे मैं शादी कैसे कर सकता हूं। राघव ने बड़ी विनम्रता से अपनी मजबूरी बताते हुए कहां, हम तो एक साधारण से मानव जो धरती पर जीवन बिताते हैं। "अरे नहीं..!" मैं भी एक मानव पुत्री हूं। आप कैसी बातें कर रहे हैं? इतना छोटा बन जाने की महानता क्यों दिखाते हैं? मैं तो आपसे प्यार करती हूं। आपसे शादी करना चाहती हूं। बस आप अपने मुख से हां कह दीजिए। यदि आप तैयार हैं तो हमें कहां इंकार है, मैं आपसे शादी करना चाहता हूं, आपसे सिर्फ आपसे। इतना सुनते ही शशिकला खुशियों से झूमती हुई, राघव को अपने वछ स्थल से चिपका लेती हैं। और नाचने लगती है झूम झूम कर गीत–गाने लगती हैं राघव भी शशिकला का साथ देने लगता हैं। विशाल हरियालियों के मध्य, राघव और शशिकला, खुली वादियों में एक दूसरे का हाथ थामे हुए, नाचते गाते और झूमते–झूमते फिर उसी स्थान पर पहुंच जाते हैं जहां ओ पहले थे। किंतु ये क्या? अब वहां न टूटा फूटा घर था और न ही घर के अंदर ओ तख्त और न ही कूड़ा करकट और न ही ओ ढेर सारी गंदगियां। वहां तो सब कुछ बदल चुका था। पहले जैसा अब वहां कुछ भी नहीं था वह छोटा सा घर अब एक खूबसूरत आलीशान मकान मैं तब्दील हो चुका था ,। सुंदर-सुंदर खिड़कियां हो गई थी। "तोषक तकिये और रजाई गद्दे हो गए थे, मकान पूरी तरह से स्वच्छ और खूबसूरत था।"
Author Kedar प्रस्तुत करते हैं एक रहस्यमयी सफ़र
🔔 इंतज़ार कीजिए — 'विचित्र दुनिया' का अगला भाग जल्द ही आपके सामने होगा!
क्या अगले भाग में शशिकला का प्रेम–जाल सफल हो पाएगा ?
क्या राघव " शशिकला" से विवाह कर लेगा?
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क्योंकि कहानियाँ सिर्फ सुनाई नहीं जातीं — महसूस कराई जाती हैं।
बुद्ध ने कहा है — "जो बीत गया, वह बीत गया। जो आने वाला है, वह अभी आया नहीं है। बस इस पल को देखो।"
यह बुद्ध का विचार "वर्तमान में जीने" की गहरी शिक्षा देता है।
आपके प्यार और समर्थन के लिए धन्यवाद!
🙏 धन्यवाद!
कहानियाँ जो दिल से निकलती हैं, उन्हें सुरक्षित रखना हमारी ज़िम्मेदारी है। Stories that come from the heart, protecting them is our responsibility.
✍️ लेखक: केदारनाथ भारतीय
🎙️ प्रस्तुतकर्ता : नागेन्द्र भारतीय
📚 यह कहानी "विचित्र दुनिया" शृंखला का भाग ४ है।
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विचित्र दुनिया "लेखक - केदारनाथ भारतीय भाग 1
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