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कर्म और भाग्य की लड़ाई|Karm aur bhagya ki ladai episode 1

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कर्म और भाग्य की लड़ाई - केदार की कलम से  चितरंजन दास और उसकी गरीबी कहते हैं, इंसान अपना भाग्य खुद लिखता है... लेकिन क्या वाकई?  या फिर भाग्य ही इंसान की राहें तय करता है?  यह कहानी है चितरंजन दास की... एक ऐसा नौजवान, जिसने गरीबी से लड़ने का संकल्प लिया, अपनों के लिए सबकुछ छोड़ दिया... लेकिन क्या वह अपने भाग्य को बदल पाया?" "यह कहानी काल्पनिक है, लेकिन समाज की सच्चाइयों से प्रेरित। इसके पात्र और घटनाएँ किसी भी जीवित व्यक्ति या स्थान से मेल खा सकती हैं, पर यह केवल एक संयोग होगा। लेखक: केदार नाथ भारतीय" कर्म और भाग्य की लड़ाई| चितरंजन दास की संघर्ष गाथा

अंजीर का जादू और एक प्रेम रहस्य|anjir ka jadu aur ek Prem rahasy|hindi stories

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अंजीर का जादू और एक प्रेम रहस्य भाग-2|Hindi stories  अंजीर का जादू – भाग 2|अतीत के दरवाजे पिछले भाग में: अद्विक को बार-बार एक सपना आ रहा था, जिसमें एक रहस्यमयी लड़की उसे अंजीर के पेड़ के बारे में सच जानने के लिए कह रही थी। गाँव के मेले में उसकी मुलाकात अदिति नाम की लड़की से हुई, जो बिल्कुल वैसी ही थी जैसी उसने सपनों में देखी थी।  अद्विक की बेचैनी रात के सन्नाटे में अद्विक अपनी खिड़की के पास बैठा था। बाहर हल्की चांदनी फैली हुई थी, और हवा में अंजीर के पत्तों की सरसराहट गूंज रही थी। उसकी आँखों में नींद नहीं थी, बल्कि हजारों सवाल थे। "अदिति... वह कौन है? क्या यह सब सिर्फ एक संयोग है, या इस अंजीर के पेड़ से मेरा कोई गहरा नाता है?" उसका मन किसी रहस्य को महसूस कर रहा था। उसने फैसला किया कि अब उसे इस पेड़ के बारे में और जानना ही होगा।  गाँव का सबसे पुराना ग्रंथ अगली सुबह अद्विक गाँव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति, पंडित सोमेश्वर जी के पास गया। वे गाँव के मंदिर के पुजारी थे और सदियों पुराने ग्रंथों के बारे में जानते थे। अद्विक: "पंडित जी, मैं अंजीर के पेड़ के बारे में कुछ जानना चाहता हू...

क्रेडिट कार्ड की अनसुनी कहानी - The Untold Story of Credit Card | कैसे एक भूला हुआ वॉलेट बना करोड़ों की क्रांति का कारण ।

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क्रेडिट कार्ड की अनसुनी कहानी - The Untold Story of Credit Card  कैसे एक भूला हुआ वॉलेट बना करोड़ों की क्रांति का कारण क्रेडिट कार्ड की अनसुनी कहानी, कैसे एक भूला हुआ वॉलेट बना करोड़ों की क्रांति का कारण (भाग- 1) साल 1949 की एक सर्द रात थी। न्यूयॉर्क के एक मशहूर रेस्तरां में कुछ दोस्त खाना खा रहे थे। ठहाके, किस्से और शानदार डिनर के बीच एक घटना हुई, जिसने दुनिया की अर्थव्यवस्था का चेहरा बदल दिया। फ्रैंक मैकनमारा नाम के एक मशहूर बिजनेसमैन ने जब बिल चुकाने के लिए अपनी जेब में हाथ डाला तो पाया कि उनका वॉलेट घर पर रह गया है। एक सफल इंसान के लिए यह बेहद शर्मिंदगी भरा पल था। लेकिन इसी लम्हे ने क्रेडिट कार्ड के बीज बो दिए। फ्रैंक के दिमाग में एक सवाल आया—क्या ऐसा कोई तरीका नहीं हो सकता, जिससे बिना नकद दिए ही पेमेंट किया जा सके? क्यों न पहचान ही भुगतान का आधार बन जाए? यह ख्याल नया था, लेकिन इसकी जड़ें सदियों पुरानी थीं। जबसे दुनिया में व्यापार शुरू हुआ, तबसे उधार की परंपरा भी रही। प्राचीन भारत में ‘हुण्डी’ व्यवस्था थी, जहां कागज की पर्चियों पर लेन-देन होते थे। पर इसमें भरोसे की ही अहमियत थी...