भारत चला बुद्ध की ओर - वैभव से वैराग्य तक की यात्रा" "India Moves Towards Buddha – A Journey from Grandeur to Renunciation"

भारत चला बुद्ध की ओर - वैभव से वैराग्य तक की यात्रा "India Moves Towards Buddha – A Journey from Grandeur to Renunciation" भारत चला बुद्ध की ओर – भाग 2 "वैभव से वैराग्य तक की यात्रा" राजकुमार सिद्धार्थ के जन्म से ही उनके लिए एक विशेष भाग्य निर्धारित था। एक ओर वे राजा शुद्धोधन के इकलौते उत्तराधिकारी थे, जिन्हें सिंहासन संभालकर शक्तिशाली शासक बनना था, वहीं दूसरी ओर ऋषियों की भविष्यवाणी थी कि यह बालक राजा नहीं, बल्कि संन्यासी बनेगा। राजा शुद्धोधन ने यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किया कि सिद्धार्थ को वैराग्य का कोई भी संकेत न मिले। उन्होंने महल को ऐसा बनाया कि वहाँ केवल सुख और आनंद ही दिखे। सिद्धार्थ को कभी भी कष्ट, पीड़ा या मृत्यु जैसी चीजों से अवगत नहीं होने दिया गया। उनका जीवन केवल संगीत, काव्य, कला और शास्त्रों की शिक्षा में बीतता था। लेकिन क्या यह सचमुच संभव था कि कोई व्यक्ति जीवन के वास्तविक स्वरूप से अनभिज्ञ रह सके? कपिलवस्तु का राजमहल सोने-चाँदी से जड़ा था। ऊँचे-ऊँचे स्तंभों से घिरा भव्य महल किसी जादुई नगरी से कम नहीं था। हर दिन उत्सवों की धूम, संगीत...