भारत चला बुद्ध की ओर - वैभव से वैराग्य तक की यात्रा" "India Moves Towards Buddha – A Journey from Grandeur to Renunciation"

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भारत चला बुद्ध की ओर - वैभव से वैराग्य तक की यात्रा
"India Moves Towards Buddha – A Journey from Grandeur to Renunciation"

भारत चला बुद्ध की ओर – भाग 2 "वैभव से वैराग्य तक की यात्रा"

राजकुमार सिद्धार्थ के जन्म से ही उनके लिए एक विशेष भाग्य निर्धारित था। एक ओर वे राजा शुद्धोधन के इकलौते उत्तराधिकारी थे, जिन्हें सिंहासन संभालकर शक्तिशाली शासक बनना था, वहीं दूसरी ओर ऋषियों की भविष्यवाणी थी कि यह बालक राजा नहीं, बल्कि संन्यासी बनेगा।
राजा शुद्धोधन ने यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास किया कि सिद्धार्थ को वैराग्य का कोई भी संकेत न मिले।
उन्होंने महल को ऐसा बनाया कि वहाँ केवल सुख और आनंद ही दिखे।
सिद्धार्थ को कभी भी कष्ट, पीड़ा या मृत्यु जैसी चीजों से अवगत नहीं होने दिया गया।
उनका जीवन केवल संगीत, काव्य, कला और शास्त्रों की शिक्षा में बीतता था।

लेकिन क्या यह सचमुच संभव था कि कोई व्यक्ति जीवन के वास्तविक स्वरूप से अनभिज्ञ रह सके?

कपिलवस्तु का राजमहल सोने-चाँदी से जड़ा था।

ऊँचे-ऊँचे स्तंभों से घिरा भव्य महल किसी जादुई नगरी से कम नहीं था।
हर दिन उत्सवों की धूम, संगीत-नृत्य, और शास्त्रार्थ होते रहते।
सिद्धार्थ का जीवन अत्यंत आनंदमय था।

लेकिन जैसे-जैसे वे बड़े होते गए, उनके मन में एक अजीब सी शून्यता महसूस होने लगी।
वे जब भी राजमहल की खिड़की से बाहर झाँकते, तो मन में एक प्रश्न उठता –
"क्या महल के बाहर की दुनिया भी इतनी ही सुखद है? या वहाँ कुछ और भी है?"

एक दिन सिद्धार्थ ने राजा शुद्धोधन से बाहर जाने की इच्छा व्यक्त की।

यह सुनकर राजा चिंतित हो गए। उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि मार्ग को सुंदर बनाया जाए।
मार्ग के किनारे फूल बिछा दिए गए।
केवल स्वस्थ और प्रसन्न लोग ही सड़क पर दिखें।
कोई भी बूढ़ा, बी के सामने न आए।

लेकिन नियति के आगे कोई योजना काम नहीं आई।
🔹 पहली बार सिद्धार्थ ने एक वृद्ध को देखा। झुकी हुई कमर, कमजोर शरीर, सफेद बाल, और कांपते हाथ।
"यह व्यक्ति ऐसा क्यों दिख रहा है?" उन्होंने सारथी से पूछा।
सारथी ने उत्तर दिया – "राजकुमार! हर व्यक्ति एक दिन वृद्ध होता है।"
🔹 दूसरी बार उन्होंने एक बीमार व्यक्ति को देखा। उसका शरीर दुर्बल था, वह दर्द से कराह रहा था।
"क्या यह सबके साथ होता है?"
सारथी ने कहा – "राजकुमार! कोई भी व्यक्ति कभी भी बीमार हो सकता है।"
🔹 तीसरी बार उन्होंने एक मृत व्यक्ति को देखा। चार लोग एक शव को कंधे पर ले जा रहे थे। परिजन विलाप कर रहे थे।
"क्या मैं भी मरूँगा?"
सारथी ने उत्तर दिया – "जीवन का अंतिम सत्य यही है, राजकुमार।"
🔹 चौथी बार उन्होंने एक सन्यासी को देखा। वह शांत, प्रसन्न और ध्यान में लीन था।
"यह व्यक्ति इतना सुखी क्यों दिख रहा है?"
सारथी ने उत्तर दिया – "राजकुमार! यह व्यक्ति संसार के बंधनों से मुक्त हो चुका है।"
इन दृश्यों ने सिद्धार्थ के भीतर एक तूफान खड़ा कर दिया।
🌙 महल लौटकर सिध्दार्थ की बड़ी बेचैनी ....!!!

अब सिद्धार्थ पहले जैसे नहीं रहे।
महल के भोग-विलास उन्हें अर्थहीन लगने लगे।
वे रातों को ठीक से सो नहीं पाते थे।
उनके मन में केवल एक ही प्रश्न था – "क्या जीवन केवल दुखों की शृंखला है? इससे मुक्त होने का कोई उपाय नहीं?"

एक रात वे अकेले बैठे हुए थे। उनके मन में विचार आया –
"अगर संसार में केवल जन्म, बुढ़ापा, बीमारी और मृत्यु ही सत्य हैं, तो फिर यह राजमहल, यह ऐश्वर्य किस काम का?"
अब उनका मन सत्य की खोज की ओर बढ़ने लगा।
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  -A Journey from Grandeur to Renunciation"



🔜 आगे क्या होगा? (भाग 3 में…)

  • अब सिद्धार्थ के जीवन का सबसे कठिन मोड़ आने वाला था।
  • क्या वे सच में महल छोड़ देंगे?
  • सत्य की खोज में वे किस ओर बढ़ेंगे?
  • भारत की भूमि कैसे इस महान परिवर्तन की साक्षी बनेगी?
अगले भाग में जानिए – "सिद्धार्थ का महाभिनिष्क्रमण!"
📖 भाग 1 पढ़ें: [https://www.kedarkahani.in/2025/02/india-walks-towards-buddha-spiritual.html]
📖 भाग 3 जल्द आएगा! Stay Tuned!
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